क्या साहस वही होता है जो हम समझते हैं?

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  04-Apr-2024 | संजय श्रीवास्तव




साहसी बनो
अपने अधिकारों के लिए
साहसी बनो
कमजोरों के लिए
साहसी बनो
हार को सहने के लिए
साहसी बनो
खुद को मजबूत करने के लिए
साहसी बनो
उन्हें माफ करने को, जिन्होंने तुम्हारे साथ गलत किया
साहसी बनो
ये जानने को कि कब लड़ना है

अंग्रेजी की ये कविता (हिंदी अनुवाद) साहस को व्यापक अर्थों में पेश करती है। ये जितना छोटा शब्द है उतना ही करिश्माई। साहस के सामने दुुनिया की बड़ी से बड़ी ताकतें, महाशक्तियां भी बौनी पड़ चुकी हैं। साहस ने युग बदले हैं, बदली हैं बड़ी से बड़ी ताकत के नशे में चूर सत्ताएं। इसने धूल में मिलाया है तानाशाहों का दर्प। साहस का अन्याय और प्रतिकार से गजब का रिश्ता है। दुनिया के सभी शास्त्रों में साहस को सभी मानवीय गुणों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जिस व्यक्ति में ये गुण होता है, वो दूसरे मानवीय नैतिक गुणों से भी उतने ही गहरे से जुड़ा होता है।

प्राचीन समय में साहसी लोग समाज के नायक माने जाते थे। उन्हें खास सम्मानीय दर्जा मिलता था। ये साहस ही है, जिसने इस धरती को बदला, सभ्यताओं के लिए रास्ते बनाये, बेहतर जीवन शैली और विचारों के लिए जगह बनाई। साहस का इतिहास उतना ही पुराना है जितना लंबा मानवीय इतिहास। हजारों-लाखों सालों के मानवीय सफर में साहसी लोगों को दबाने की भी चेष्टाएं हुईं लेकिन हर बार ये कुंदन की तप कर सामने आया, हर बार अनूठी परिभाषा गढ़ी।

साहस का रिश्ता न तो हमारी लंबी चौड़ी कद काठी से होता है और न धन दौलत और पावर की अकड़ में। मोहनदास करमचंद गांधी दुबले-पतले थे। अपने साहस के तपोबल से उन्होंने ऐसी सत्ता को हिला दिया जिसके बारे में कहा जाता था कि सूरज तो अस्त हो सकता है कि लेकिन अंग्रेजों के साम्राज्य का सूरज कभी अस्त नहीं हो सकता। आंग सान सुई का बचपन और जवानी विदेशों के एशोआराम में बीती थी, वहीं उनकी पढ़ाई लिखाई हुई थी। जब वह अपने पिता के देश बर्मा लौटीं तो न तो उनका मकसद वहां रुकने का था, न ही दिलचस्पी वहां की राजनीति में थी। वह अस्सी के दशक में वहां बीमार मां की देखभाल के लिए गईं थीं, पिता को सेना कभी का सत्ता से बेदखल कर चुकी थी। बर्मा में उन्होंने जनता को परेशानहाल पाया, दमन चक्र जारी था- आंदोलन और प्रदर्शन हो रहे थे। आंग सान की अंतरात्मा ने आवाज दी और वह आंदोलन में कूद पड़ीं। अन्याय से लड़ने का साहस बढ़ता गया। उन्होंने चुनाव जीता लेकिन सत्ता पर आसीन सैनिक शासकों ने उन्हें फरमान सुनाया कि या तो देश से बाहर चली जाओ या फिर ताजिंदगी घर में नजरबंद होकर बिताओ। उन्होंने विदेश लौटकर आलीशान जिंदगी जीने की बजाये घर में नजरबंद रहना उचित समझा। ये उनका साहस ही है जो म्यांमार के जुंटा सैनिक शासकों के पसीने लगातार छूट रहे हैं। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है। साहस ही है जब हम किसी के लिए जान जोखिम में डाल देते हैं, साहस वो भी है जब हम किसी अच्छे उद्देश्य के लिए समाज की प्रचलित मान्यताओं और धारा के खिलाफ खड़े हो जाते हैं।

दरअसल महान लक्ष्य हमेशा साहस देते हैं। तब बाधाएं और जीवन का भय छोटा लगने लगता है। मनोविज्ञान कहता है कि बड़े और जनकल्याण से जुड़े काम हमेशा एक खास तरह के साहस का इनपुट मानव में भरते हैं। समाज या देश में सच्चा नायक बनने की प्रवृत्ति भी साहस को कई गुना बढ़ा देती है। जाहिर सी बात है कि साहस तभी आता है जब आपके पास एक मकसद हो, जुनून हो, पक्की लगन हो। कह सकते हैं कि साहस एक जिजीविषा है, इसका स्थान ज्यादा बड़ा इसलिए भी हो जाता है कि इस प्रवृत्ति से समाज और मानवता को लाभ पहुंचा है।

महान जहाजी कोलंबस अपनी सारी सुविधाओं और बेहतर नौकरियों को छोड़कर दुस्साहसिक यात्राओं पर निकल पड़ते थे। हेनसांग और फाहयान तो पैदल ही चीन से हिमालय के मुश्किल रास्तों को बाधाओं को लांघते हुए भारत आ पहुंचे। इस दौरान उन पर कई हमले हुए, जान जोखिम में पड़ी लेकिन वो डिगे नहीं। दसवीं से चौदहवीं सदी के बीच जब खोजी यात्री अपने घरों से निकलते थे तो वापस जिंदा लौटने की उम्मीदें न के बराबर होती थीं। जब वो लौटते थे तो इसे उनका नया जीवन माना जाता था। उनकी इसी साहसिक प्रवृति ने लोगों को दुनिया की अनजाने देशों, जगहों, जंगलों, खतरों से रू-ब-रू कराया।

साहस में जब ज्ञान और लोकोपयोग जुड़ जाता है तो वह जीवन को बदलता है, नये प्रभाव डालता है। मध्यकाल में सामंती और लार्ड व्यवस्था को बदलना कोई आसान काम नहीं था। बड़े विद्रोह भी हुए। हजारों मजदूर, दास, किसान मारे गये लेकिन इन्हीं लोगों के साहस ने मध्ययुग के अंधेरे को भी हराया।

हालांकि साहस सबमें तो नहीं होता, हजारों लाखों में कुछ मुट्ठी भर लोग ही ऐसी जीवटता दिखा पाते हैं। हालात और समय जब भी कोई मुश्किल चुनौती पेश करते हैं और साहस की परीक्षा का समय आता है तो ज्यादातर लोग हिम्मत नहीं जुटा पाते, ऐसे मौके अक्सर जिंदगियों में आते हैं। ऐसे में ये सवाल लाजिमी है कि साहस कुछ मुट्ठी भर लोगों में ही क्यों होता है। इसे लेकर मनोवैज्ञानिकों की असली दिलचस्पी पिछली सदी के आखिर में जगी। कई किताबें लिखी गईं।

मनोवैज्ञानिकों ने कई पहलू से इस पर काम किया। वर्ष २००४ में क्रिस्टोफर पैटरसन और मार्टिन सेलिगमन की किताब चरित्र, क्षमता और नैतिक गुण प्रकाशित हुई, जिसमें साहस के मनोविज्ञान पर खासतौर पर प्रकाश डाला गया। उसे जीवन के उत्कृष्ट नैतिक गुणों से जोड़ा गया। इन दोनों मनोवैज्ञानिकों ने साहस को छह खास मानवीय गुणों के साथ जोड़ा। जो छह खास मानवीय गुण उन्होंने मानव में देखे वो इस तरह हैं - विवेक, ज्ञान, साहस, मानवता, न्याय, संयम और उत्कृष्टता।

यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया के स्टेनली जे रेचमन ने 1970 में भय और साहस का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि पैराट्रूपर्स जब विमान से पहली बार कूदते हैं तो उनका व्यवहार हवा में ठीक कूदने से पहले तीन तरह का होता है- कुछ लोग बहुत ज्यादा डरते हैं और इसके चलते हिम्मत छोड़ देते हैं और कूदने से पहले पसीना-पसीना हो जाते हैं, उनके हाथ पैर सुन्न होने लगते हैं और चूंकि वो अभी विमान के बोर्ड पर ही होते हैं, लिहाजा कूदने से मना कर देते हैं। दूसरे लोग निर्भीक होते हैं, कोई डर नहीं दिखाते, न वो पसीने से तरबतर होते हैं, न उनकी आवाज कंपकंपाती है। बहुत शांति के साथ वो हवा में छलांग लगा देते हैं, उन्हें इसमें कोई दिक्कत नहीं होती। तीसरी तरह के लोग यद्यपि कूदने से पहले डरे जरूर होते हैं लेकिन जब हवा में कूदने का समय आता है तो झिझकते नहीं। डॉ. रेचमन ने माना ये आखिरी तरह के लोग ही सबसे साहसी होते हैं, जो डर महसूस करने के बाद भी काम को अंजाम देते हैं। बहुत से दार्शनिक और महान चिंतकों ने साहस के प्रदर्शन का सबसे बेहतर स्थल युद्ध के मैदान को माना। उन्होंने हमेशा कहा कि असली साहस का प्रदर्शन वास्तव में एक सैनिक करता है जो अपने दुश्मन से ये जानते हुए भिड़ने के लिए तैयार रहता है कि इसमें उसकी मौत भी हो सकती है। कुछ का कहना है कि बहादुर लोग वो होते हैं जिनमें भय लेशमात्र भी नहीं होता।

विज्ञान साहस को अलग तरह से देखता है। वैज्ञानिक लगातार ये प्रयोग करने में लगे हैं कि मनुष्यों में साहस, कायरता या जोखिम लेने की प्रवृत्ति क्यों होती है, आखिर हममें कुछ चंद लोग कुछ खास क्षणों में किस तरह साहस का परिचय देते हैं। इजरायल के वैज्ञानिकों को मस्तिष्क के उस हिस्से और वहां होने वाली प्रक्रिया का पता लगाया, जहां मानवीय साहस और बहादुरी के तत्व होते हैं। उनके अनुसार मनुष्य के मस्तिष्क में एक भाग होता है, जिसे सब जेनुअल एनटेरियर सिंगुलर कार्टेक्स (एसजीएसी) कहा जाता है। ये तब सक्रिय होता है जब व्यक्ति कोई साहस भरा काम करता है। इस खोज से हो सकता है कि आने वाले समय में लोगों के भय को दूर करने में मदद मिले। वैज्ञानिकों ने ये भी पाया कि भय और साहस के क्षणों में हमारा ब्रेन सिकुड़ता और फैलता भी है। इस शोध के दौरान ये भी पता चला कि विभिन्न स्थितियों में अलग अलग तरह के मानवीय व्यवहार के दौरान मस्तिष्क किस तरह काम करता है।

वैज्ञानिक एक और अलग तरह के शोध पर भी काम कर रहे हैं। इसके जरिए वो ये जानने की कोशिश करेंगे कि कुछ लोग कुछ मौकों पर क्यों दूसरों की तुलना में ज्यादा साहसी और पराक्रमी साबित होते हैं। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जब बहुत से लोग आपदाओं, दुर्घटनाओं या भयभीत कर देने वाली घटनाओं के समय विचलित नहीं होते बल्कि ठंडे दिमाग से इसका सामना करते हुए इससे निकलने के बारे में सोचते हैं। बहुत से लोग इसलिए महान बने क्योंकि उन्हें डर से निपटना आता था, वो उन पर जीत हासिल करना जानते थे।

ये तो तय है कि कुछ लोगों के शरीर और दिमाग में कुछ ऐसे तत्व होते हैं जो उन्हें पैदा होते ही डर पर जीत हासिल करना सीखा देते हैं। ये तत्व जीन में भी हो सकते हैं। वैसे बच्चों में बहादुरी की भावना आमतौर पर ज्यादा होती है। ऐसे बहुत से उदाहरण है जबकि बच्चों ने जान जोखिम में डालकर दूसरों को बचाया।

दुनिया के सभी मुख्य धर्मों में साहस को श्रेष्ठ स्थान दिया गया है और इसकी अलग अलग तरीके से व्याख्या की गई है। हिंदू धर्म में भी सात मुख्य मानवीय लक्षणों में साहस भी एक है। हर समाज और युग में साहस को दाद मिलती रही है। यूनान में मध्य काल के दिनों में साहसी युवकों को पुरस्कृत करने की प्रथा रही है। इसी साहस को प्रोत्साहन देने के लिए वहां ओलंपिक खेलों की नींव पड़ी। इन खेलों के दौरान ऐसे जबरदस्त मुकाबले होते थे, जिसमें हिस्सा लेना और जीत हासिल करना हंसी का खेल नहीं होता था। उस समाज में साहसी लोग देश के हीरो होते थे। उन्हें राज-परिवार की ओर से खास पदवी और सम्मान हासिल होता था। यूनान ही क्यों, दुनियाभर में इस तरह की प्रतियोगिताएं आयोजित करने का रिवाज था, ताकि लोगों को साहस और पराक्रम का मौका मिल सके।

साहस और सकारात्मकता

साहस का सकारात्मकता के बीच बहुत गहरा रिश्ता है। ये सकारात्मकता ही तो थी कि कोपर्निकस, अरस्तु, सुकरात गैलिलियो जैसे लोग बड़े उद्देश्य के लिए साहस का प्रदर्शन कर पाये। हमेशा आपके आसपास ऐसे ढेरों लोग होते हैं जो अपनी नकारात्मकता से आपको भ्रमित या भयभीत कर सकते हैं। ऐसे लोग हर युग में हुए हैं लेकिन सकारात्मक दृष्टिकोण लाते ही नकारात्मक पहलू कमजोर दिखाई देते हैं। हम बड़े-बड़े साहस के काम कर गुजरते हैं। सकारात्मकता नैतिक साहस को बढ़ाती है। आमतौर पर युगों को बदलने वाले नायकों में ऐसे ही लक्षण देखने को मिलते हैं। प्लेटो ने कहा था कि साहस हमें डर से मुकाबला करना सिखाता है। साहस हम सभी के भीतर होता है, बस जरूरत उसे बाहर लाने की होती है।



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