हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा

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  05-Sep-2024 | डॉ. निर्भय कुमार अग्रहरि




विद्यार्थी जीवन अपने आप में किसी योगी के जीवन से कम नहीं होता। हममें से ज्यादातर लोग विद्यार्थी जीवन में अभाव के दिन काटते हैं। जीवन के इन कठिन दिनों पर विद्यार्थी अकेले ही सामाजिक, आर्थिक, भावनात्मक इत्यादि मोर्चों पर जूझते हैं। जीवन का यह फेज न सिर्फ अनिश्चितताओं व तनावों से भरा होता है बल्कि सबसे ज्यादा संघर्ष का भी फेज होता है। बार-बार असफल होने, बार-बार प्रयास करने; बार-बार धक्के खाने, बार-बार उठ खड़े होने; बार-बार अकेला महसूस करने और बार-बार दुनिया से कदमताल करने की जद्दोजहद में जुट जाना मानों विद्यार्थी जीवन की नियति होती है। इस दौरान कई बार ऐसे समय आते हैं, जब लगता है कि अब हमसे नहीं हो पाएगा, कई बार ऐसा लगता है, जैसे हम रास्ते में भटक गये हैं; अकेले पड़ गये हैं। उस समय हम ईश्वर को कोसते हैं, भाग्य को कोसते हैं। किराये के मकान में महीना पूरा होते-होते मकान मालिक को किराया देने से लेकर बचे हुए पैसों को फूंक-फूंककर खर्च करते हुए महीने भर के बज़ट साधने की उधेड़बुन भी बनी रहती है। यही वो दौर है, जब हमें ‘गुनाहों का देवता’ और ‘आसाढ़ का एक दिन’ रुलाता है। यहीं वो उम्र होती है, जब हमारी चेतना में बुद्ध, विवेकानंद, कबीर से लेकर अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर, डॉ कलाम, ई श्रीधरन, टी शेषन और लता मंगेशकर इत्यादि का विकास होता है, जब हम उनसे प्रभावित होते हैं, उनपर वाद-विवाद करते हैं, विमर्श करते हैं। इसी उम्र हमें अक्सर विद्यार्थी नई-नई भावनाओं के ज्वार का उठना भी महसूस करते हैं। कभी सबकुछ फतह करने लेने की उमंग तो कभी सबकुछ त्याग देने का वियोग और कभी प्रेयसी को मना लेने का आत्मविश्वास इत्यादि सभी भावनाएं इसी उम्र में उमड़ती हैं। समाज में चारों तरफ लिप्सा, भोग, विलास, शोहरत और उसके प्रति दुनिया की लोलुपता देखकर उनके मन में भी उन्हें किसी भी हद तक जाकर पा लेने की आकांक्षाओं का अंकुरण होता है। ऐसे में सबसे भयावह परिणाम तब आते हैं, जब उन्हें राह दिखाने वाले शिक्षक और अभिभावक अपनी जिम्मेदारियों के प्रति निष्कृय अथवा सुप्तावस्था में होते हैं। नतीजन इसी उम्र में युवा भावनाओं के ज्वार-भाटा में बहते हैं। कुछ इतना बह जाते हैं कि रास्ते से भटक जाते हैं, जबकि कुछ उस संघर्ष से हार मानकर छोड़ देते हैं। ऐसे में यह बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि शिक्षक अपनी भूमिका की महत्ता को समझें और विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करें। क्योंकि यह कहा जाना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि किसी भी राष्ट्र का भविष्य वहां के विश्वविद्यालयों के गर्भ में पलता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर आज शिक्षक दिवस के शुभावसर पर यह कविता शायद विद्यार्थियों में सकारात्मक ऊर्जा भर सके, उन्हें सही राह दिखा सके-

हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा
माना कि हर क्षण मुश्किल में तेरा रण होगा,
होगी सफलता में तेरी देरी, धुंधला हर भौतिक रिश्ता भी होगा
पर धुंधले पड़ते इन रिश्तों में रौनक लाने को चेहरे पर
एक मित्र खड़ा तेरे संग होगा...!!
हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा

बिन असफलताओं और दुनिया की किये चिंता,
इस भौतिकवादी दुनिया में, लक्ष्य का तुझको करना चिंतन होगा
पर ध्यान को लक्ष्य पे केंद्रित करना थोड़ा तो मुश्किल अवश्य होगा
लेकिन ध्यान को लक्ष्य पर बिन किये केंद्रित, हासिल भी तो न कुछ होगा
इसलिए भौतिक सुखों का त्यागकर, ध्यान को एक बार तो लक्ष्य पे केंद्रित करना होगा..!!
हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा

मानकर यह सदा चलना कि,
भाग से मिला वही दुनिया में, जो कर्मठ से बच जाता होगा,
लेकिन यह अटल सत्य भी रख ध्यान कि,
बिन भाग्य भी, नहीं यहां कुछ किसी को मिलता होगा,

इसलिए हो अगर तुम कभी असफल
तो कोसना ना अपनी मेहनत को,
क्योंकि कई बार तुम्हारा भाग्य ही खुद न तुम्हारे संग होगा..!!
हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा

लेकिन तुम्हारी नित मेहनत से,
इक दिन भाग को भी तेरे सम्मुख झुकना होगा,
सौ बात की एक बात यही है कि
तुम्हारी मेहनत से ही तुमको लक्ष्य तुम्हारा हासिल होगा..!!
हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा

जब भी होगे सफल तुम जीवन में,
लोगों को तुम में दिखता एक घना गुरुत्वाकर्षण होगा
हर धुंधला पड़ता भौतिक रिश्ता,
फिर से तुम्हारे संग आने को व्याकुल होगा...!!
हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा

लोगों की जुबा पे दिखता
अब एक बड़ा सा अंतर होगा,
हर वह व्यक्ति तुम्हारी सफलता पर
तुमको महान बतायेगा,
जिसको तुम्हारी असफलता के दिनों
एक नाकारा तुममें दिखता होगा…!!
हे विद्यार्थी! सदा न तेरा ये संघर्ष होगा, सदा न तेरा ये संघर्ष होगा!



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