क्रिकेट अमेरिका क्यों पहुंचा, इससे किसका फायदा

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  12-Jun-2024 | संजय श्रीवास्तव




जब आप ये लेख पढ़ रहे होंगे तब आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप चल रहा होगा, जो 01 जून से अमेरिका के तीन शहरों में शुरू हो चुका है। इसका पहला चरण अमेरिका में होगा तो आगे की प्रतियोगिता फिर अमेरिका के पड़ोस के कैरिबियन देशों में शिफ्ट हो जाएगी। क्या आपने कभी सोचा कि क्रिकेट अमेरिका में क्यों पहुंचा? क्या क्रिकेट की लोकप्रियता वहां बढ़ गई या क्रिकेट को अमेरिका की जरूरत है या फिर सारा खेल ही पैसे का है? हालांकि इसका एक इतिहास भी है। 19वीं सदी की शुरुआत में क्रिकेट अमेरिका पहुंचा और वहां इसे कमोवेश नकार दिया गया। अब करीब 100 सालों बाद ये वहां फिर जड़ें जमाने की कोशिश कर रहा है। 

टी20 वर्ल्ड कप अमेरिका में जिन तीन शहरों में हो रहा है, वो न्यूयॉर्क, फ्लोरिडा और टैक्सास हैं। न्यूयॉर्क में तो क्रिकेट को समर्पित एक खासा बड़ा स्टेडियम ही बन चुका है, जहां इस प्रतियोगिता के कई मैच होंगे। तो कुल मिलाकर ये मानिए अमेरिका को फिर से क्रिकेट का बड़ा केंद्र बनाने की तैयारी है। खेल आजकल किसी व्यवसाय से कम नहीं हैं। जहां खिलाड़ी खेलते हैं, मालामाल होते हैं लेकिन उनसे भी ज्यादा मालामाल होती हैं वो संस्थाएं जो इसे कंट्रोल करने और संचालित करने का काम करती हैं। क्रिकेट का अमेरिका पहुंचना पैसे और प्रसार दोनों ही दृष्टि से अहम माना जा रहा है। दुनिया में क्रिकेट को चलाने वाली संस्था इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) की ओर से करीब दो दशक पहले कहीं ज्यादा सक्रियता से ये कोशिश शुरू हुई थी कि अब अमेरिका को भी वर्ल्ड क्रिकेट के मानचित्र पर ले आया जाए, क्योंकि उसके हरे-हरे डॉलर में इतनी ताकत है कि वो इस संस्था को और मालदार बना देगा।  

अब आइए जरा अमेरिका में 18वीं सदी की शुरुआत की ओर चलते हैं। तब ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में भी क्रिकेट की शुरुआत की। हालांकि वहां इसे कभी व्यापक लोकप्रियता नहीं मिली। उस समय अमेरिका के सुपरहिट खेल बेसबॉल ने इसे कुछ यूं हाशिए पर पहुंचाया कि अमेरिका में करीब एक सदी तक क्रिकेट का नामोनिशान ही नहीं रहा। क्रिकेट का सिक्का तब अमेरिका में क्यों नहीं चल पाया, इसकी कई वजहें रहीं। लेकिन ये मानना होगा कि अमेरिका में क्रिकेट तब शायद आगे बढ़ने में चूक गया और ये भी हो सकता है कि बेसबाल की लोकप्रियता इतनी जबरदस्त थी कि इसकी जरूरत ही महसूस नहीं की गई। इंग्लैंड की तरह अमेरिका ने भी अपने देश में कई खेलों को ईजाद किया, कई खेलों को अपने हिसाब से बदला भी। 

क्रिकेट के पैर अमेरिका से उखड़ने की वजहें तब सियासी भी थीं और लोकप्रियता से जुड़ी भी। पहली बात तो यही है कि 19वीं शताब्दी के मध्य में बेसबॉल एक लोकप्रिय खेल के रूप में उभरा। इसे दर्शकों से जोड़ने के लिए अधिक आसान किया गया। नियम भी बदले गए। गोल बल्लों के आगमन ने इसे क्रिकेट से अलग कर दिया।  

जब 1909 में इंपीरियल क्रिकेट कॉन्फ्रेंस (आईसीसी) का गठन किया गया तो ये केवल राष्ट्रमंडल देशों के लिए खुला था। संयुक्त राज्य अमेरिका को इसमें हिस्सा लेने से बाहर रखा गया। इसने देश में खेल के विकास और व्यावसायीकरण को सीमित कर दिया। फिर जब शुरू में खेल में अमेरिका में अंग्रेजों द्वारा लाया गया तो इसे अमीरों द्वारा खेला जाता था। लिहाजा ये आम लोगों तक नहीं पहुंच पाया तो इसकी संरचना भी नहीं बन सकी। 

बेसबॉल की ताकत और लोकप्रियता को तुरंत वहां के व्यवसायियों ने समझ लिया। इसकी मार्केटिंग बेहतर हुई। कुछ असर सांस्कृतिक धारणाओं की वजह से भी पड़ा। जहां अमेरिका में शुरू में बेसबाल को मर्दांनगी से जुड़ा खेल माना गया तो क्रिकेट को "स्त्रीवी" कहकर अपमानित किया गया। अब हो ये रहा था कि बेसबाल लगातार लोकप्रिय और पेशेवर होता जा रहा था तो क्रिकेट, जो थोड़ा बहुत अमेरिका में था भी, वो भी सिमट गया, या फिर मान लें कि खत्म हो गया। वहीं अमेरिका के पड़ोसी कैरिबियन देशों में उसी दौरान बेसबाल नहीं बल्कि क्रिकेट उत्साह ला रहा था। इसके पीछे थे वो अप्रवासी, जो ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप से मजदूरों के तौर पर इन वेस्टइंडीज देशों में भेजे गए। लिहाजा क्रिकेट हमेशा वेस्टइंडीज के छोटे-छोटे देशों में लोकप्रिय रहा। वहां के जीवन और जड़ों के साथ जुड़ गया।

इस बीच दुनिया के खेलों में बहुत कुछ हुआ। क्रिकेट को 20 के दशक के आसपास ओलंपिक में शामिल किया गया। फिर ये वहां से भी रुखसत हो गया। वजह शायद यही थी कि उसको राष्ट्रमंडलीय देशों का खेल माना गया। ब्रिटेन, यूरोप, रूस और अमेरिकी के बीच ताकत की खींचतान में जो खेल सबसे पहले शहीद हुआ, वो क्रिकेट ही था। लिहाजा ये खेल दशकों तक केवल ब्रिटिश उपनिवेशों में ही खेला जाता रहा।    

90 के दशक में जब बाजार पूरी दुनिया में हावी होना शुरू हुआ और खेल मुनाफे के बड़े व्यावसाय में तब्दील होने लगे तब एक बड़ा बदलाव क्रिकेट में भी हुआ। इसके खुद को ब्रिटेन के कंट्रोल से छुड़ा लिया। अब इस पर भारत और एशियाई देशों का वर्चस्व बढ़ रहा था। बाजार का असर बढ़ रहा था। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल में अंग्रेजों का नियंत्रण खत्म होते ही इसने खुद को बदलना और फैलाना शुरू कर दिया। इसे बाजार से जोड़ने और ज्यादा लोकप्रिय बनाने का काम शुरू हो गया। अकूत पैसा क्रिकेट में आ रहा था। एशियाई लोकप्रियता ने इसे बड़ी उछाल दी। बाजार और टीवी प्रसारण अधिकारों ने इसकी संरचना को बेहतर करना शुरू किया। यही वो दौर था जब आईसीसी ने तेजी से स्थायी सदस्यों के साथ सहयोगी सदस्यों के तौर पर करीब 70 देशों को जोड़ा। इसी में अमेरिका भी था। 90 के दशक में अगर ये पूछा जाता था कि क्या अमेरिका जैसे देश में भी क्रिकेट खेला जा सकता है तो लोग मुंह बिचका लेते थे। किसी को विश्वास ही नहीं था कि ऐसा हो सकता था। क्योंकि ये माना जा चुका था कि अमेरिकी क्रिकेट को नापसंद करते हैं और उनका बाजार शायद ही इसे स्वीकार करे।   

20वीं सदी के शुरू होते ही वेस्टइंडीज से जुड़े एक उद्योगपति स्टनफोर्ड ने कोशिश की कि अमेरिका में क्रिकेट को लाएं लेकिन ये शख्स खुद पैसों के फ्राड में फंसा और जेल पहुंच गया। लेकिन जो चीज सबसे बड़ी हुई वो ये था कि बड़े पैमाने पर दक्षिण एशियाई, ब्रितानी और आस्ट्रेलियाइयों के साथ कैरिबियन देशों के लोग अप्रवासी के तौर पर अमेरिका पहुंच चुके थे। वो क्रिकेट के लिए दीवाने लोग थे। वो वहां क्रिकेट की कमी को महसूस करते थे। अपने अपने तरीकों से कम्युनिटी के बीच छोटे मोटे मैदानों या घर के पिछवाड़े खेलते थे। जब वर्ल्डकप या आईपीएल होते थे तो वो अपने टीवी सेट पर क्रिकेट को देखते थे। ये फीगर अच्छा खासा बड़ा था। टीआरपी में साफ नजर आने लगा कि अमेरिका में अप्रवासियों का तबका क्रिकेट देख रहा है और दूसरे खेलों को देखे जाने से कहीं ज्यादा है। फिर ये अप्रवासी भारतीय, एशियाई वहां के समाज में ज्यादा संपन्न और अधिकार हासिल हो रहे थे। राजनीति से लेकर बड़ी भूमिकाओं में आ रहे थे। वास्तव में यही समय था, जब अमेरिका में भी लोगों की समझ में आया कि यहां क्रिकेट को संरचना बनाकर शुरू किया जा सकता है।      

विशेष रूप से दक्षिण एशियाई प्रवासियों ने अमेरिका में क्रिकेट को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के अप्रवासियों ने अमेरिका में क्रिकेट लीग और टूर्नामेंट की स्थापना करके खेल के प्रति अपना प्यार अमेरिकी तटों तक पहुंचाया। क्रिकेट में इस नई रुचि ने खेल के विकास को बढ़ावा दिया। फिलाडेल्फिया अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट महोत्सव और मेजर लीग क्रिकेट (एमएलसी) जैसे आयोजनों ने इसे और मजबूत किया। आईसीसी तो चाहती ही यही थी। उसने भी भरपूर मदद की। शुरुआती फंडिंग की। बढ़ती दक्षिण एशियाई अमेरिकी आबादी क्रिकेट के पुनरुत्थान में एक प्रमुख कारक रही। दक्षिण एशियाई जनसंख्या 2010 में 3.4 मिलियन से बढ़कर अब 5.4 मिलियन हो चुकी है जो अमेरिका में क्रिकेट के फलने-फूलने को बड़ा आधार देती है

ज्यादा जनसंख्या जब किसी भी खेल को देखती या खेलती है तो बाजार अपने आप उसे लपकने लगता है। अमेरिका में भी अब क्रिकेट में पैसा लग रहा है। ब्रांड साथ आ रहे हैं। टीवी पर खूब देखा जा रहा है। अमेरिका में दक्षिण एशियाई की बढ़ चुकी आर्थिक संपन्नता ने इसे नए पंख दिये हैं। वर्ष 2023 में अमेरिका में क्रिकेट की नई और बड़ी क्रिकेट लीग शुरू हुई-मेजर लीग क्रिकेट यानि एमएलसी, जिसमें निवेशकों के समूह के 120 मिलियन डॉलर का निवेश किया। कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) फ्रेंचाइजी ने लॉस एंजिल्स स्थित ट्वेंटी-20 टीम में निवेश किया, ये तस्वीर बड़ी हो रही है। अब टी20 वर्ल्ड कप में स्टेडियमों में बढ़ती भीड़ बता रही है कि ये अमेरिका में बड़े खेलों में शुमार हो रहा है।     

निवेशकों ने अमेरिका में क्रिकेट की विकास क्षमता पर खासा विश्वास दिखाया है। इसके विस्तार प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए 1 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश हो चुका है। इन निवेशों का बड़ा हिस्सा आगामी एमएलसी लीग के लिए क्रिकेट स्टेडियमों के निर्माण में लगाया जा रहा है। कुछ सालों में पूरे अमेरिका में केवल क्रिकेट को समर्पित कई बड़े स्टेडियम होंगे जो क्रिकेट के अंतरराष्ट्रीय आयोजनों का केंद्र बनेंगे। सुविधाओं के लिहाज से अमेरिका दुनिया की बड़ी खेल प्रतियोगिता का बेहतरीन मेजबान रहा है।  

विशाल अमेरिकी बाज़ार में इस नए खेल क्षेत्र के आकर्षण ने निवेशकों को मंत्रमुग्ध कर दिया है। वे बड़े पैमाने पर इसमें व्यावसायिक लाभ की संभावना देखते हैं। अमेरिका के आंकड़े जाहिर करते हैं कि दक्षिण एशियाई प्रवासी समूह देश के अन्य जनसांख्यिकीय समूहों के बीच सबसे अधिक औसत घरेलू आय रखते हैं।

अकेले डलास-फोर्ट वर्थ क्षेत्र में 220,000 से अधिक भारतीय-अमेरिकियों की आबादी है, जिसे बड़ा ही कहा जाएगा। पूरे अमेरिका में 200,000 से अधिक क्रिकेट के पंजीकृत खिलाड़ी हैं, जो देशभर में कई प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं।

क्रिकेट के वैश्विक प्रसार में सबसे बड़ी बाधा पांच दिनों का टेस्ट मैच होता था। इसके बाद जब एकदिवसीय मैच आए तो क्रिकेट की अपील दुनिया में बढ़ने लगी। फिर टी20 के फारमेट ने तो क्रांति ही कर दी। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि ये टी20 क्रिकेट का फारमेट विशुद्ध तौर पर ब्रिटेन के एक स्पोर्ट्स मार्केटिंग एक्सपर्ट की देन है। जब 90 के दशक में काउंटी क्रिकेट में दर्शकों की संख्या कम हो चुकी थी। इंग्लैंड के स्टेडियमों में दर्शकों की तादाद घटने लगी थी। काउंटीज को घाटा हो रहा था। इसका असर इंग्लैंड एंड काउंटी क्रिकेट बोर्ड की कमाई पर भी पड़ने लगा था तो चिंतित इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड को नई चीज चाहिए थी। शख्स था स्टुअर्ट राबर्टसन। वो इंग्लैंड काउंटी क्रिकेट बोर्ड के साथ मार्केटिंग मैनेजर के रूप में काम कर रहा था, उसने ये फॉर्मेट इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड को सुझाया। और अब ये फॉर्मेट सुपरहिट है। क्रिकेट को असल में दुनियाभर में बढ़ा रहा है। इसमें तेजी है, मनोरंजन है, रोमांच है और ये लोकप्रिय अमेरिकी खेलों की तरह गजब का रोमांचक तमाशा पेश करता है। टीवी के लिए और ज्यादा मुफीद है।

वैसे हम अभी ये नहीं कह सकते कि अमेरिका में क्रिकेट हिट हो गया है लेकिन वहां पर इसके लोकप्रिय होने के सारे तत्व मौजूद हैं। ये जरूर मानना चाहिए कि अभी अमेरिका में क्रिकेट की लोकप्रियता बाहरी देशों से वहां बसे गए अप्रवासियों के कारण ज्यादा है, इसे मुख्यधारा के लोगों तक आने में समय लगेगा। ये भी मत भूलिए कि टीवी पर देखे जाने वाले या स्टेडियम में दर्शकों के लिहाज से क्रिकेट अब फुटबॉल के बाद दूसरा वैश्विक पापुलर गेम है। पर्याप्त निवेश, बढ़ती दक्षिण एशियाई आबादी और टी20 प्रारूप इसे अमेरिका में रचने बसने और हिट होने की पूरी गुंजाइश देता है।

अमेरिका में क्रिकेट को ज्यादा लोकप्रिय बनाने और अमेरिकी-यूरोपीय लोगों तक ले जाने की कोशिश भी हो रही है। मेजर लीग क्रिकेट को लेकर काफी मार्केटिंग हो रही है। टीवी प्रसारण के दौरान इसे अमेरिकी जीवनशैली से जोड़ा जा रहा है। इसे उसी शैली में प्रेजेंट किया जा रहा है, जिस तरह अमेरिकी खेलों में होता है। कमेंटेटरों का लहजा भी वैसा रखा जा रहा है। वो प्रसारण के दौरान टेक्सन काउबॉय टोपी पहनते हैं। अमेरिका में क्रिकेट स्टेडियम और ट्रेनिंग सेंटर पर क्रिकेट की ट्रेनिंग के काम हो रहे हैं। क्रिकेट से लोगों को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया सहित डिजिटल प्लेटफार्मों का इस्तेमाल हो रहा है।

टी20 वर्ल्ड कप की मेजबानी तीन अमेरिकी शहरों को देने को भी इसी से जोड़कर देखा जाना चाहिए। आईसीसी ने संयुक्त राज्य अमेरिका को विकास के लिए एक रणनीतिक बाजार के रूप में पहचाना है। निश्चित तौर पर अमेरिका में टी20 विश्व कप की मेजबानी से वहां क्रिकेट को मुख्यधारा में शामिल करने में मदद मिलेगी। नए दर्शको, नए प्रशंसक मिलेंगे और स्टेडियम से लेकर टीवी और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर व्यापक दर्शक वृद्धि हो सकती है।

आईसीसी को भी मालूम है कि अमेरिका उसके राजस्व में बढोतरी करने वाला बड़ा बाजार है। अमेरिका में अगर क्रिकेट की जड़ें जमीं और ये लोकप्रिय हो गया तो विश्व स्तर इस खेल को बड़ी पहचान और उछाल मिलेगी। वहां से मिलने वाले राजस्व का उपयोग विश्व स्तर पर क्रिकेट विकास कार्यक्रमों में होगा, जो क्रिकेट को और बढ़ाएगा या लोकप्रिय करेगा। आईसीसी को अब तक ये अहसास हो चुका है कि अमेरिकी बाज़ार में बड़े पैमाने पर दर्शक मौजूद हैं। बस उसे वहां तक पहुंचना और उनके लिए अमेरिका में ढांचा खड़ा करना है। आईसीसी का लक्ष्य वर्ष 2028 लासएंजिल्स ओलंपिक तक दस लाख बच्चों तक पहुंचना है।

अमेरिका में किसी खेल का सफल होना ना केवल अतिरिक्त फंडिंग और ताकतवर डॉलर की कमाई देता है बल्कि इसका उपयोग ब्रांडिंग को मजबूत करने में होगा। ऐसे भी क्रिकेट को ओलंपिक में शामिल हो चुका है। अगर अमेरिका वर्ष 2030 तक आईसीसी का पूर्ण सदस्य बन जाता है, तो आईसीसी को कई फंडिंग लाभ प्राप्त होंगे।

कुल मिलाकर संयुक्त राज्य अमेरिका में क्रिकेट तेजी से बढ़ रहा है, जिसमें बुनियादी ढांचे के विकास, खेल को बढ़ावा देने और सभी स्तरों पर भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है। कई शहरों में मजबूत क्रिकेट संस्कृति है, जिसमें महत्वपूर्ण दक्षिण एशियाई प्रवासी आबादी और अच्छी तरह से बनाए गए क्रिकेट मैदान हैं, जो उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका में क्रिकेट गतिविधि का केंद्र बन चुके हैं।



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