नर हो न निराश करो मन को
« »06-May-2024 | शालिनी बाजपेयी
कहते हैं इच्छाशक्ति हो तो इंसान आसमान को भी झुका सकता है। यह वाक्य संयुक्त राज्य अमेरिका में मेडिकल स्कूल से स्नातक करने वाली पहली महिला डॉक्टर एलिजाबेथ ब्लैकवेल पर सटीक बैठती है। इंग्लैंड में जन्मी एलिजाबेथ ब्लैकवेल वित्तीय उथल-पुथल के चलते अपने परिवार के साथ सयुंक्त राज्य अमेरिका में बस गयीं। कुछ समय बाद उन्होंने अपनी मेडिकल की शिक्षा किताबों और निजी प्रशिक्षकों को नियुक्त करके शुरू की, पर बात नहीं बनी। फिर उन्होंने मेडिकल की शिक्षा के लिए स्कूलों में आवेदन करना शुरू किया पर महिला होने के कारण उनके आवेदन को स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने हार नहीं मानी और करीब 29 मेडिकल स्कूलों से आवेदन निरस्त होने के बाद अंततः हॉबर्ट कॉलेज में उन्हें एडमिशन मिल गया। कॉलेज में भी कई डॉक्टरों ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया था लेकिन उन्होंने कड़ी मेहनत और परिश्रम से अपनी शिक्षा पूरी की और अमेरिका में मेडिकल की डिग्री हासिल करने वाली पहली महिला बनीं। महिलाओं के प्रति ऐसी असमानता को देखते हुए साल 1857 में बहुत विरोध के बावजूद उन्होंने न्यूयॉर्क इन्फर्मरी की स्थापना की, जहाँ महिलाएँ इंटर्नशिप कर सकती थीं। और उन्होंने इस इन्फर्मरी में महिलाओं के लिए चिकित्सा शिक्षा का पूरा पाठ्यक्रम जोड़ा। और बाद में वह लंदन स्कूल ऑफ मेडिसिन फॉर वुमेन की भी संस्थापक बनीं।
कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि इच्छशक्ति और दृढ़ संकल्प के जरिए इंसान क्या नहीं कर सकता। अगर ब्लैकवेल हार मानकर संघर्ष छोड़ देती तो क्या मेडिकल शिक्षा में महिलाओं को अमेरिका में जगह मिल पाती। बुद्ध कहते हैं, ''असफलता हारने वाले को डराती है पर जीतने की इच्छाशक्ति रखने वाले को प्रेरणा देती है। असफलताएं भी जीवन का हिस्सा होती हैं और जो असफल होते हैं वही सीखते भी हैं। महान वैज्ञानिक थॉमस एल्वा एडिसन को बल्ब के फिलामेंट को ढूढ़ने में हज़ार बार असफलता हाथ लगी। इतने प्रयासों के बाद भी सफलता न मिलने पर उनका सहयोगी अवसाद की स्थिति में चला गया। और उसने पूछा आखिर इतनी मेहनत के बाद भी हमें कुछ नहीं मिला, एडिसन ने हँसते हुए कहा,'' तुम ये कैसे कह सकते हो कि हमें कुछ नहीं मिला ? हमने इतने प्रयोगों से ये जाना कि इन हज़ार तरीकों से फिलामेंट नहीं बनाया जा सकता। सोचिए अगर वास्कोडिगामा और मॉर्को पोलो यात्रा के लिए निकलने का साहस ही न जुटा पाते, तो क्या दुनिया उस समय नए द्वीपों और भारत को जान पाती, यह उनका साहस ही था जिसने पूरे इतिहास को ही परिवर्तित कर दिया। हमारे संत महात्मा भी कहा करते थे, ''इस नश्वर संसार में हमें अपना प्रभाव छोड़ने का बहुत कम समय मिला है।''
वहीं, द्वितीय विश्वयुद्ध में परमाणु हमले की विभीषिका झेल चुके जापान के लिए गिरकर संभलना कितना मुश्किल रहा होगा, वो भी तब जब जापान में प्राकृतिक संसाधनों की बेहद कमी है। पर देश के नेतृत्व ने इससे बाहर निकलने की ठानी और मानव संसाधन व नवाचार आधारित अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाकर विकसित जापान की नींव रखी। आज जापान दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश तो है ही साथ में नवाचार और तकनीक के मामले में भी अग्रणी राष्ट्र है। वहीं, एक गैरेज से शुरू हुई एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स को अपनी ही कंपनी से हटा दिया गया था। इस स्थिति में भी अवसाद में न जाकर उन्होंने अपने जुनून और कड़ी मेहनत से पिक्सर और नेक्स्ट जैसी कंपनियां बनायीं, और बाद में वे फिर से एप्पल कंपनी के सीईओ बन गए। स्टीव जॉब्स ने एप्पल से निकाले जाने के बाद कहा था, ''तब मैं इसे सही से समझ नहीं पाया था, पर अब मुझे लगता है कि एप्पल से निकाला जाना मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत घटना थी।'' सच ही कहा गया है ''मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।''
राजाराम मोहन रॉय, गांधी जी, अंबेडकर, ज्योतिबा फुले, पेरियार और रानाडे जैसे समाज सुधारकों ने उस समय समाज सुधार का बीड़ा उठाया जब भारतीय समाज में कुरीतियों (जैसे-सतीप्रथा, जाति-पाति और बाल विवाह आदि) का बोलबाला था। आवाज उठाना भर समाज से खतरे को मोल लेना था, कई बार इन समाज सुधारकों की जान पर भी बन आयी पर यह उनका साहस ही था जिससे समाज में सुधार की नयी बयार बह सकी और समाज में नए परिवर्तन आना शुरू हुए। नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने नस्लवाद के खिलाफ अनगिनत तकलीफें सही पर मानवीय समानता के मूल्यों में दृढ़ विश्वास रखने वाले इन महानायकों ने इसे मिटाने के लिए जो आंदोलन छेड़ा उसकी मिशाल मिल पाना मुश्किल है। श्रमिक और महिला अधिकारों, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा और एलजीबीटीक्यू के अधिकारों के लिए आज 21वीं शताब्दी में भी संघर्ष करना पड़ रहा है। लोकतंत्र, मौलिक अधिकार, वोट और समानता जैसे अधिकार आज जितनी आसानी से हम सबको सुलभ हैं, इन्हें हासिल करने के लिए हमारे पुरखों ने राज्य के खिलाफ कितना संघर्ष किया, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, और कईयों को तो जान से भी हाथ धोना पड़ा। तब जाकर आज हम खुली हवा में इन अधिकारों को जी पा रहे हैं। सत्य के प्रति अटूट आस्था का ही नतीजा है कि हम अपनी कमजोरियों के खिलाफ इतना संघर्ष कर सके और आज अपनी सभ्यता को इस ऊंचाई पर लाने में सक्षम हुए। प्रसिद्ध कवि कुँवर नारायण की पंक्तियाँ इन उदाहरणों पर सटीक बैठती हैं-
कोई दुख मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं
वही हारा जो लड़ा नहीं।
इसी कड़ी में अशोक खेमका, टी एन शेषन और आर्मस्ट्रॉन्ग पेम जैसे सिविल सेवकों को भी भूला नहीं जा सकता है। उनके साहस का ही नतीजा है कि आज लाखों युवा इस नौकरी के लिए बिना ठगमगाए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। बिना किसी भय के अशोक खेमका लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। वहीं, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने चुनाव आयोग की शक्तियों का सही उपयोग करके चुनावों में निष्पक्षता को सुनिश्चित किया। मिरैकल मैन के नाम से मशहूर मणिपुर के युवा आईएएस अधिकारी आर्मस्ट्रॉन्ग पेम साल 2012 में जब तौसेम के एसडीएम बने तो यह देखकर दंग रह गए कि जिला मुख्यालय से महज 50 किलोमीटर दूर स्थित तामेंगलोंग तक पहुंचने के लिए लोगों को 5 घंटे पैदल चलना पड़ता था। पेम ने ठान लिया था कि वह अब इस सड़क को बना कर ही दम लेंगे। इसके लिए उन्होंने सरकार को कई पत्र लिखे, लेकिन कभी भी संतोषजनक जवाब नहीं आया। बाद में उन्होंने सोशल मीडिया में लोगों से मदद की अपील की और स्थानीय लोगों की मदद से 100 किलोमीटर लंबी सड़क बना डाली। लोगों की मदद से बनी इस सड़क को आज सब पीपुल्स रोड के नाम से जानते हैं। यह सड़क अब मणिपुर को असम तथा नागालैंड से जोड़ती है। किसी ने सही ही कहा है कहीं पर पहुँचने के लिए कहीं से निकलना ज़रूरी होता है। इस संदर्भ में राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियाँ समीचीन प्रतीत होती हैं-
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़,
मानव जब ज़ोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।
बात करें चांद तक पहुंचने की, तो जिस चंद्रयान की सफलता पर आज हम फूले नहीं समा रहे हैं उसके लिए इसरो को पहले कई आलोचनाएँ सहनी पड़ी थीं। पर इसरो के हौंसले और 'चरैवेति चरैवेति' के आदर्श ने आज भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्रों की सूची में खड़ा कर दिया है। वहीं, मध्य काल में विज्ञान और नवाचार पर चर्च का कठोर नियंत्रण था; खोजों और आविष्कारों से चर्च की जमीन खिसकती थी और जो लोग चर्च से अच्छे संबंध रखते थे, उन्हें कई लाभ मिलते थे। ऐसी स्थितियों के बीच भी कॉपरनिकस और गैलीलियो जैसे वैज्ञानिकों का साहस नहीं डिगा उन्होंने अपने सिद्धांत दुनिया के सामने रखे और बताया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है न कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर। ऐसी घोषणाओं के लिए उनको कई यातनाएँ सहनी पड़ीं। लेकिन आधुनिक विज्ञान आज उनके साहस की नींव पर ही फल-फूल रहा है।
वहीं, आज के उपभोक्तावादी दौर में जब सब एक दूसरे से आगे निकलने में लगे हैं। हमने अपनी मानसिक शांति भौतिकता के हवाले कर दी है। आध्यत्मिकता और मुक्ति जैसे पहलू कहीं पीछे छूट गए हैं, जो कि हमारी पूँजी हुआ करते थे। हालांकि, इस परिदृश्य में भी ऐसे कई लोग हैं जो भौतिक सुखों को छोड़कर मानवता को प्रेम और मुक्ति की राह दिखा रहें हैं। जिनमें दलाई लामा और श्री श्री रविशंकर का नाम लिया जा सकता है। इसके अलावा आम जन जीवन में भी हाल के समय में ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं जिनमें कई बड़े व्यापारियों और समृद्ध परिवार के लोगों ने अपनी करोड़ों की संपत्ति छोड़कर साधुता का मार्ग चुना। सच्चा जीवन सिद्धार्थ से बुद्ध तक की यात्रा की तरह होना चाहिए। जहां न अतिशय भोगवाद हो और न ही हर चीज का त्याग।
हो सकता है कि जीवन के इस युद्ध में आपकी बनायीं कई योजनाएँ असफल हो जाएँ, पर यही असफलताएँ आपके लिए नए रास्तों का सृजन करती हैं। महान वैज्ञानिकों, बड़े व्यवसायियों और खिलाड़ियों को जीवन में कई बार असफलता की कड़वी दवाई पीनी पड़ी, पर इन्हीं असफलताओं से सबक लेकर उन्होंने नए कीर्तिमानों को रचा। यकीन मानिए आपको आप से बेहतर और सलाह देने वाला और कोई नहीं है।आज के युवा परंपरागत नौकरियों वाले क्षेत्रों से हटकर नए व्यवसायों को अपना रहे हैं जिससे स्टार्टअप कल्चर को बढ़ावा मिल रहा है। ज़रूरत है सरकार द्वारा उनके हौसले को पंख देने की और असफल होने की स्थिति में उन्हें सहारा देने की। तभी इतनी भारी विविधता और जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ हम उठा पाएंगे और देश को शिखर में ले जा पाने में सक्षम होंगे। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, ''एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने दिमाग, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है।''
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