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खेलों और जिंदगी में उम्र क्या वाकई केवल नंबर है?

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  12-Feb-2024 | संजय श्रीवास्तव



43 साल 329 दिन की उम्र में भारत के रोहन बोपन्ना ने केवल आस्ट्रेलियन ओपन का डबल मेंस खिताब ही नहीं जीता बल्कि इस उम्र में वह दुनिया में डबल टेनिस के नंबर वन खिलाड़ी बन गए। सबसे ज्यादा उम्र के खिलाड़ी के तौर पर उन्होंने ये दोनों काम किये। यानि इस तरह उन्होंने साबित कर दिया कि उम्र केवल एक नंबर है, अगर आप चाहें उम्र का असर शरीर पर नहीं होता। लंबे समय से उम्र और शरीर पर इसके प्रभाव को लेकर बहस चलती रही है। कई शोध हुए हैं। ये मान लिया जाता है कि एक उम्र के बाद आप चूकने लगते हो और शरीर जबाब देने लगता है लेकिन बोपन्ना ने ही नहीं बल्कि बहुत से खिलाड़ियों ने दिखाया है कि ये वाकई नंबर है। असली चीज होती है दिमागी तौर पर जीवटता, जो आपके शरीर को लंबे समय तक जवां रख सकती है।

रोहन बोपन्ना कर्नाटक में कुर्ग कोडागु के हैं। इस इलाके कोड़वा लोग अपनी जीवटता और क्षमता के लिए जाने जाते हैं। यहां का हर तीसरा शख्स सेना में है तो खेलों में भी यहां काफी लोगों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन किया है। हमारी हॉकी टीम में हमेशा इस इलाके का एक खिलाड़ी जरूर होता है, कई बार तो एक से ज्यादा भी।

रोहन बोपन्ना और मैथ्यू एब्डेन (36 साल) आस्ट्रेलिया ओपन के डबल्स फाइनल में इतालवी जोड़ी साइमन बोलेली और एंद्रेस वावासॉरी को सीधे सेटों में हराया। ये किसी भी तरह की ग्रैंड स्लैम प्रतियोगिता के किसी भी कैटेगरी में उनकी 61वीं कोशिश थी। आखिरकार वो उस मुकाम तक पहुंच ही गए, जिसके लिए कोशिश कर रहे थे। हालांकि एक समय उनकी जिंदगी में ऐसा भी आया था जब उनके घुटने जवाब देते हुए लगे थे। तब उन्होंने खेल छोड़ देने का इरादा भी बना लिया था। उन्होंने दो साल पहले बेंगलुरु में आयंगर योग शुरू किया, जिससे ना केवल उनके घुटनों में नई जान आ गई बल्कि वह नई ऊर्जा और फिटनेस से भर गए। आखिर इस उम्र में कौन सी बात खिलाड़ियों को आगे बढ़ाती है! वैसे आपको बता दें कि दुनियाभर में फिटनेस के कारण लोग ज्यादा युवा दिखने और फील करने लगे हैं। 40 इज न्यू 20 यानि अब लोग 40 साल की उम्र में भी 20 की तरह दिखते और फील करते हैं।

वैसे रोहन बोपन्ना ने तो जीत के बाद कहा, मुझे लगता है कि मेरे अंदर की दृढ़ता ने मुझे आगे बढ़ाया। आगे हम देखेंगे कि किस तरह खेलों की दुनिया में इससे पहले भी खिलाड़ियों ने उम्र को धता बताते हुए लोगों को हैरान किया है।

माना जाता है कि 40 साल के बाद क्षमता कम होने लगती है, स्फूर्ति और चपलता साथ छोडने लगती है लेकिन ये गुजरे जमाने की बातें हैं अगर उत्साह और ऊर्जा बनी हुई है तो यकीन मानिए कि उम्र पर हमेशा आपका नियंत्रण होगा। बढ़ती उम्र के बावजूद आप जोश, दमखम और उत्साह से युवाओं से मुकाबला कर सकते हैं। तरोताजा रह सकते हैं। खुद को बेहतर पा सकते हैं। ये बात भी सही है कि उत्साह और ऊर्जा भी तभी आती है जब आप हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हों। हर स्थिति में निराशा को परे झटकने की कला जानते हों।

94 साल के फौजा सिंह लंदन की सडकों पर रोज कई किलोमीटर दौड़ते थे। दुनियाभर की मैराथन दौड़ों में इसी उम्र में उन्होंने हिस्सा लिया। रेकार्ड बनाये। फौजा ने लंबी दूरी के बुजुर्ग धावक के रूप में अपना करियर शुरू किया-81 साल में। सोनल मानसिंह 80 साल से अधिक की उम्र में भी नृत्य का रियाज जरूर करती हैं। हेमामालिनी 60 साल से कहीं अधिक की उम्र में स्टेज पर जब परफार्म करती हैं तो नये दौर की अभिनेत्रियों पर भारी बैठती हैं। 94 साल की उम्र में भी एमएफ हुसैन जब कूचियों से रंग भरते थे तो लोग वाह-वाह कर बैठते थे। वो घंटों बैठकर अपनी पेंटिंग पर काम करते रहते थे। उत्साह और ऊर्जा का तो कोई ठिकाना नहीं।

पहाड़ों पर चढने के बारे में आपका क्या ख्याल है-खासा जीवट और क्षमता वाला काम है। पहाड़ों की चोटियों पर चढने वालों से पूछिये कि एक-एक कदम ऊपर बढाने में शारीरिक स्तर से लेकर मानसिक स्तर तक कितनी चुनौतियां हर पल मुंह बाए खड़ी रहती हैं। अच्छे-अच्छे युवा और दमखम वालों के भी छक्के छूट जाते हैं। जब प्रेमलता अग्रवाल ऐवरेस्ट पर चढ़ीं तो वह 50 साल की हो रही थीं। वो अपने उत्साह और जीवटता के मामले में 25 से 30 वर्ष के युवाओं को भी मात देती थीं। हर साल वह ऊंची चोटियों पर चढाई करती थीं। वैसे उम्र को थामना एक कला है और ये तभी आती है जब आपको खुद पर विश्वास हो…हौसले हो…दृढइच्छाशक्ति हो। कहा गया है कि मानवीय शरीर अपरंपार क्षमताओं और असीमित ताकत से भरा है। इसे सही तरीके से चार्ज करना आना चाहिए फिर तो सबकुछ मुमकिन है।

वैसे आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि किसी भी खेल में पेशेवर एथलीटों के लिए औसत रिटायरमेंट एज 33 साल है। जिम्नास्ट और भी जल्दी संन्यास ले लेते हैं। क्रिकेट में सजगता 35 साल की उम्र के बाद कम होने लगती है। लेकिन हकीकत ये है कि पूरी दुनिया में ये पैरामीटर्स खेलों की दुनिया में टूट रहे हैं। अब मेंटल टफनेस और फिजिकल फिटनेस के बल पर खिलाड़ी इससे ज्यादा उम्र तक खेलों में ना केवल रुके रहते हैं बल्कि श्रेष्ठता वाला प्रदर्शन भी करते हैं।

सचिन 40 साल की उम्र तक इंटरनेशनल क्रिकेट में खेलते रहे और अच्छा खेलते रहे। महेंद्र सिंह धोनी 41 साल की उम्र में भी आईपीएल में खूब बढ़िया खेल रहे हैं। लिएंडर पेस 42 साल की उम्र में भी 50 साल के आसपास की मार्टिना नवरातिलोवा के साथ मिक्स्ड डबल्स खेलने विंबलडन में उतरे। इससे पहले उन्होंने पूर्व नंबर वन महिला खिलाड़ी मार्टिना हिंगिस के साथ जोमिलकर मिक्स्ड डबल्स का खिताब जीत लिया। पेस भी विश्व टेनिस सर्किट में खेलने वाले सबसे ज्यादा उम्र के खिलाड़ी थे। 30 सालों से कहीं अधिक समय तक वह प्रोफेशनल टेनिस में खेलते रहे।

वैसे ये बात सही है कि एक खास उम्र के बाद खेलों में ढलान नजर तो आती है लेकिन इसके बाद भी कुछ खिलाड़ी कमाल करते हैं। अगर स्पोर्ट्स फिटनेस एक्स्पर्ट्स की मानें तो 25 से लेकर 28 साल की उम्र के बीच में हर खिलाड़ी अपनी शारीरिक क्षमताओं की दृष्टि से बेहतरीन दौर में होता है। यही उम्र का वो दौर होता है, जब खिलाड़ी असाधारण प्रदर्शन करके दिखाते हैं, मानवीय सीमाओं का दायरा बड़ा कर देते हैं। 28 के बाद शारीरिक स्थितियां शिथिल पडने लगती हैंं। हालांकि अनुशासन, फिटनेस, प्रैक्टिस और मेडिसिन से उन्हें साधा जाने लगा है। ऐसे में बहुत से खिलाड़ी 32-33 साल या इसके कुछ समय बाद तक भी मैदान पर चमक दिखाते रहते हैं। हालांकि ये इस पर भी निर्भर करता है कि आप किस खेल में हैं। फुटबाल के 90 मिनट के मुकाबले में औसतन एक खिलाड़ी को 10 किलोमीटर लगातार ही भागना होता है, जबरदस्त ऊर्जा खर्च होती है। उसी तरह हॉकी, बैडमिंटन और टेनिस में भी होता है। इस तरह देखें तो क्रिकेट में मैदान पर शायद इतना पसीना नहीं बहता। तो, ये पक्का मानिए रोहन बोपन्ना, लिएंडर पेस और मार्टिना नवरातिलोवा ने अगर 40 साल की उम्र के बाद भी टेनिस जैसे खेल में चमक दिखाई तो उन्होंने असाधारण काम किया। मार्टिना नवरातिलोवा तो तो ओपन टेनिस में 50 साल की उम्र तक खेलती रहीं।

विलियम्स बहनें भी लंबे समय तक खेलती रहीं। क्रिस्टियानो रोनाल्डो अगला फुटबॉल वर्ल्ड कप खेलते हैं तो वह 41 साल के हो जाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो वह जबरदस्त मिसाल पैदा करेंगे। टेनिस लीजेंड रोजर फेडरर 41 साल की उम्र तक टेनिस कोर्ट पर उतरते रहे। भारत की महिला बॉक्सिंग चैंपियन मैरी कोम खुद 40 साल से ज्यादा होने के बाद भी खुद को फिट और बेहतर पाती हैं और लगातार मुकाबलों में उतरती हैं।

दरअसल हम जिन खिलाड़ियों की बात कर रहे हैं, उनके मामलों में बात केवल फिटनेस की ही नहीं है बल्कि मानसिक मजबूती, आत्मविश्वास और खेल के प्रति समर्पण के साथ अनुशासन की भी है, ये वो तत्व होते हैं जो खास बनाते हैं, भीड़ में अलग खड़ा करते हैं। सचिन तेंदुलकर ने जब खेलना शुरू किया तो वह 16 - 17 साल के थे। 40 साल की उम्र में उन्होंने इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायरमेंट जरूर लिया लेकिन आईपीएल में तो 42 की उम्र तक खेलते रहे।

यूरोप में आजकल एक बात जोर-शोर से कही जाती है- ‘40 इज न्यू 20’ यानि 40 की उम्र में भी 20 साल सरीखे दिखने का नया दौर। बेहतर खानपान, फिटनेस और नई चिकित्सा सुविधाओं से ये कुछ हदतक संभव हो रहा है।

वैसे आपको बता दें कि भारतीय क्रिकेट टीम के कई खिलाड़ी अब उस उम्र से ज्यादा के हो गए हैं, जो एक जमाने में क्रिकेट से संन्यास की उम्र मानी जाती थी और अब भी वो खिलाड़ी अच्छा कर रहे हैं। रोहित शर्मा 36 साल के हैं, विराट कोहली 35 साल के तो मोहम्मद समी के 33 साल के हैं। ये सभी पूरी ऊर्जा और दमखम के साथ अपने खेल की चमक से युवाओं को भी मात दे रहे हैं।

दुनिया में जब भी कोई साइक्लिस्ट के बतौर करियर शुरू करता है तो उसको इयान हाइबेल की मिसाल जरूर दी जाती है, जो 71 साल की उम्र तक साइकिल चलाते रहे और पूरी दुनिया में साइकल से ही यात्रा करते रहे। उन्होंने कभी थकान का अनुभव नहीं किया। हर बार वह जोश और ऊर्जा से लबालब होकर साइकल से नई लंबी यात्रा पर निकल जाते थे। एक दिन में 40-50 किलोमीटर साइकल चला ही लेते थे। कई बार इससे ज्यादा भी चला लेते थे। उन्होंने अपनी साइकल यात्राओं के आधार पर कई किताबें लिखीं। इन यात्राओं में उन्हें ना जाने कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। वह मौत के मुंह में भी जाते-जाते बचे लेकिन साइकिलिंग से उन्हें इस कदर प्यार था कि वह कभी नहीं रुके।

जॉर्ज फ़ोरमैन और लैरी होम्स जैसे बॉक्सर तो 50 साल की उम्र तक रिंग में टिके रहे। हालांकि जब हम उम्र और खेल के रिश्ते की बात कर रहे हैं तो ये तय है कि सभी खिलाड़ी ज्यादा उम्र तक फिट और एक्टिव नहीं रह पाते। कुछ ही ऐसा कर पाते हैं। सुनील गावस्कर ने जब अपने अंतिम टेस्ट में शानदार 96 रन बनाए तो उन्हें लगने लगा कि अब संन्यास ले लेना चाहिए तो उन्होंने 36 साल की उम्र में खेल को अलविदा कह दिया। हम सभी ने देखा कि कपिलदेव को आखिरी समय में किस तरह भारतीय टीम ढो रही थी। वो उस तरह प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे। ये सवाल उठने लगे थे कि वह कब संन्यास लेंगे। वैसे खिलाड़ियों को अंदाज हो जाता है कि उन्हें कब खेल से अलग हो जाना है। उस समय तक या तो खेल से उनका मन भर चुका होता है या खेल के प्रति समर्पण कम होना शुरू हो जाता है। उनका मन भरने लगता है, लिहाजा दिमागी और शारीरिक तौर पर भी वो फिर उस क्षमता का अनुभव करना बंद कर देते हैं लेकिन ये बात सही है कि दृढ़ता एक ऐसा पहलू है, जो हर राह को आसान बना देता है या हर राह को संभव कर देता है, चाहे फिर उम्र को मुट्ठी में लेकर दुनिया को ये दिखाना ही क्यों ना हो कि अभी तो मैं जवां हूं।



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