प्रकृति का भी संगीत होता है, जरा इसे भी सुनिए
« »15-Mar-2024 | संजय श्रीवास्तव
प्रकृति का भी एक संगीत है। ये संगीत इसमें हमेशा बहता है। इसके फूलों, पत्तियों, घास, नदियों, पहाड़ों ...सबका एक संगीत है..सबकी एक लय है। इसका संगीत इसके फूलों के मनोहारी रूपों, विविध रंगों, हिलते हुए पेड़-पौधों, नदी-झरनों और हजारों-लाखों प्रजातियों के जीव-जंतुओं में बहता रहता है। प्रकृति की दुनिया में एक गजब का लय और तर्क है।
हम अगर प्रकृति के आयामों को महसूस करें तो इसमें एक गजब का राग मिलेगा। मशहूर ब्राजीली लेखक पाउलो कोल्हो कहते हैं कि ज्योंही आप किसी जंगल में प्रवेश करते हैं, आप एकदम अलग अहसास से भर जाते हैं, जंगल की आवाज अलग संगीत पैदा करती है। नदियों के बहते पानी में अलग संंगीत होता है। ...कल-कल का संगीत...। जलप्रपात की धाराएं जब ऊपर से नीचे गिरती हैं तो वो उन रोबीली गर्जनाओं में भी संगीत की एक कशिश होती है..जरा सुनिये तो सही, थोड़ी ही देर में खुद को इस संगीत से जुड़ा पाएंगे। समुद्र की लहरों की आवाजें कभी वीतराग पैदा करती हैं तो कभी जवार भाटे की गर्जना में अजीब सा डर। हल्की फुल्की बारिश की फुहारें पड़ती हैं तो बूंदों की टपटपाहट की आवाज दिलोदिमाग को सुकुन से भर देती है, टप-टप करती हुई इस आवाज को सुनिये, एक खास शांति महसूस होगी। तन-मन चैन से भर उठेगा। हृदय की धडक़नें शांत होने लगेंगी, आप रिलैक्स हो जाएंगे।
प्रकृति की हर क्रिया के साथ एक आवाज गुथी होती है। आवाजों की ये दुनिया भी गजब की भरी-पूरी है। पहाडों की गूंज में एक रहस्य होता है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों और वादियों के बीच संगीत किसी दूसरे लोक से आती लगती हैं। इन्हीं पहाड़ों और वादियों के बीच फर और साल के लंबे लंबे पेड़ों के बीच से गुजरिये तो हवा सम्मोहित करने वाला संगीत सुनाती हुई मिलेगी। ये आवाज सीधे मन तक पहुंचती है । ऋषि मुनि और तपस्वी लोग इन आवाजों को आध्यात्मिक संगीत मानते थे-ऐसी आवाज जो सीधे आपके भीतर झांके, आत्मा के करीब पहुंच जाये। माना जाता है कि इन शांत और सुरम्य वादियों के बीच आप अगर कहीं ध्यान लगाकर बैठे तो आपका अनुभव वाकई अलौकिक होता है, आपको लगेगा ऐसी आवाज आपके रोम रोम में समा रही है, जो जादुई है, एक अजीब सा सुख देने वाला संगीत।
कभी आपने किसी बाग-बगीचे में सुबह-सुबह कलरव की ध्वनि सुनी है? ढेर सारे पंक्षियों की आवाजें जब सूरज की पहली किरण के साथ शुरू होती हैं, तो शायद आह्वान कर रही होती हैं कि उठो काम पर लग जाओ, दिनभर में बहुत से काम करने हैं। हर पंक्षी एक अलग तान देता है, व्यस्तता, बेचैनी और बेताबी की मनोदशा कलरव से झांकती है। हमारे यहां तो अलग अलग समय और मौसम के राग भी अलग अलग तरह के होते थे क्योंकि वो समय के साथ एक खास तरह की ध्वनि से अलग प्रभाव पैदा करने में समर्थ थे।
संगीत भोर का...
भोर में आकाश की ओर देखिये, बडी जादुई बेला होती है ये। रात का अंतिम प्रहर और सुबह के उजाले के पहले पल का संधिस्थल क्या गजब का होता है। जादुई सा लगता है ये पल ...ताजी हवा...निर्मल सुबह का आगाज...मंदिर की घंटियां..अजान की आवाजें.. तन मन को तरोताजगी में नहला देने वाली हवा... ऐसे में किसी कोने से अगर राग मल्हार की आवाज हवा में तैरती हुई आपके कानों को स्पर्श करे तो इस बेला के साथ संगीत का ये संगम गजब का होता है। मन अपने आप रागतरंग में नृत्य करने लगता है। मन जब नृत्य करता है तो पूरा शरीर नृत्य करने लगता है। खुशी और उत्साह की अनगिनत लहरों के उठने और गिरने का फिर कहना ही क्या। कहा जाता है कि जब तानसेन तान छेडते थे तो खुद प्रकृति के मन बन जाते थे और पूरी कायनात को उमंग में भरकर नचाने लगते थे। गजब का केमिकल लोचा करता है ये संगीत। इससे ज्यादा पावरफुल तो कुछ है ही नहीं। भटके हुए निराश मन में उम्मीदें जगा दे, हताश हृदय में उत्साह के हजारों दीये जला दे।
संगीत मुस्कुराहट का...
दलाई लामा अक्सर कहते हैं, अगर वह ज्यादा मुस्कराएं नहीं तो लोगों को अकेले बूढ़े आदमी लगने लगेंगे। उन्हें लगता है कि उनका ये साधारण सा फिजिकल एक्ट उन्हें सभी के साथ प्यार की डोर से जोड़ देता है। क्या आपको लगता नहीं कि दिन में अगर आपको मुस्कराते हुए कुछ लोग भी मिल जाएं तो आपका पूरा दिन चमत्कृत तरीके से बदल जाता है? मुस्कुराहट में भी एक संगीत है, जो न जाने कैसे बहता है और अजीब से रिश्तों में बांध देता है।
भारत ने आये एक विदेशी पर्यटक ने अपने ब्लॉग में लिखा कि सारनाथ में किसी रेस्टोरेंट में कुछ खाने के बाद वह बुरी तरह से फूड प्वाइजनिंग के शिकार हो गये। हालत खराब हो रही थी। ऐसे में उन्हें सहारा दिया सारनाथ के ही दो बौद्ध भिक्षुओं ने। उनमें से एक भिक्षु रातभर उनके पास बैठकर उन्हें नमक और चीनी के घोल पिलाता रहा ताकि वो डिहाइड्रेशन के शिकार न हो जाएं। वह जब भी उसके चेहरे की ओर देखते वो उन्हें देखकर मुस्कराता मिलता, मानो उन्हें ढांढ़स बंधा रहा हो कि चिंता की कोई बात नहीं, सबकुछ ठीक हो जायेगा। बाद में उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा कि उस दिन मुझे लगा कि मुस्कान में वाकई एक जादुई संगीत होता है, जो ताकत भी देता है।
कुछ लोग मानते हैं कि मुस्कान तो कृत्रिम होती है, क्या हमेशा मुस्काते रहना भी मुमकिन है? जवाब होगा क्यों नहीं आप खुद सोचिये कि आपको अपनी कौन तस्वीर ज्यादा पसंद आती है, जिसमें आपके चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान खिली हो या वो जहां चेहरा भावहीन और सपाट सा दिख रहा हो। जब आप फोटो खींचवाते हैं तो कोशिश करके खुद पर मुस्कान बिखेरने की कोशिश करते हैं, यानि आपको मालूम है कि मुस्कान का महत्व क्या है। मुस्कान रूपी संगीत से वाकई वो हजार काम बन जाते हैं, जो यूं नहीं बन पाते। मुन्नाभाई एमबीबीएस की जादू की झप्पी दरअसल प्यारी सी मुस्कराहट ही थी, जो खुद ब खुद एक संगीतमय संदेश देती थी-ऑल इज वेल। तो इसे प्रकृति और संगीत का अनमोल तोहफा मानकर कबूल करिये और मुस्काइये।
संगीत प्रार्थना का...
हां, प्रार्थना का भी एक संगीत होता है..वह संगीत जो हमें एक दैवीय शक्ति से बांधता सा लगता है। प्रार्थना अपने आप में एक संगीत है..आज से नहीं बल्कि हजारों सालों से..वैदिक काल में हमारी प्रार्थनाएं संगीतमय ही होती थीं। भजन और मंत्रों की ऋचाओं का अलौकिक संगीत वातावरण में जादुई लहरें पैदा करता था। कहा तो ये भी जाता है कि दरअसल संगीत बचा ही रह गया क्योंकि प्राचीन काल से पूरी दुनिया में इसे प्रार्थना के तमाम तौरतरीकों से जोड़ दिया गया। प्राचीन काल में अगर भारत में प्रार्थना का संगीत मंदिर में फला-फूला तो यूरोप में चर्चो ने इस संगीत को नया आयाम दिया।
दरअसल प्रार्थना में ऐसा संगीत है जो हममें अंतर्जागृत ज्यादा करता है। ये संगीत हमें जीवन में एक नया दृष्टिकोण ही नहीं देता बल्कि जीने का नया सलीका भी सिखाता है। क्या आपने कभी लोहे के साधारण से छोटे से टुकड़े को देखा है। आप कहेंगे लोहे के एक छोटे से टुकड़े में क्या खास होता है, कुछ भी नहीं। साधारण सा लोहा साधारण इसलिए होता है क्योंकि उसके अणु बिखरे होते हैं, वो एक सही दिशा में नहीं होते। जब यही अणु व्यवस्थित हो जाते हैं तो उसमें चुंबक की ताकत आ जाती है। यानी साधारण से असाधारण हो जाता है। इसी तरह हम और आप होते हैं, अदृश्य ताकत से सहारा लेने के लिए प्रार्थना के संगीत का सहारा लेते हैं। सच्चे मन से निकले प्रार्थना के संगीत के बाद हम अक्सर देखते हैं कि हमारा मन शांत महसूस होने लगता है, तनाव गायब होने लगता है, नया हौसला सा मिल जाता है। क्या आपने जाना ऐसा क्यों होता है क्योंकि प्रार्थना रूपी संगीत के जरिए हम अपने अंदर ही बैठी अदृश्य ताकत को जगाने में कामयाब हो जाते हैं।
ओशो कहते थे, आप किसी नदी के किनारे चले जाइये। बहते हुए जल को देखिये। आसमान पर उड़ते परिंदों पर नजर डालिये। तैरते सफेद बादलों के रहस्य को महसूस करिये। इस संगीत को अपने अंदर बहने दें। तब प्रकृति की संगीत के साथ आत्मसात करके सच्चे मन से की गई इस प्रार्थना की बात ही अलग होगी। ऐसा करते हुए आपका मन नितांत निर्मल और पवित्र होगा।
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