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संबंध: खेल और स्वास्थ्य का

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  16-Apr-2024 | संजय श्रीवास्तव



प्राचीन यूनान में जब ओलंपिक खेलों की शुरुआत हुई तो उसकी मुख्य अवधारणा यही थी कि खेलों के जरिए समाज और लोगों को स्वस्थ रखा जा सकता है। इन खेलों के जरिए स्वास्थ्य को लेकर एक खास संदेश दिया जाता था। समाज इसे ग्रहण भी करता था। चूंकि यूनान के बहुसंख्य लोग इसमें हिस्सा लेते थे, इसी का नतीजा था कि यूनान को तब दुनिया के सबसे स्वस्थ लोगों का देश भी माना जाता था। अब भी वो देश और समाज ज्यादा खुशहाल और स्वस्थ हैं, जहां रोजमर्रा के जीवन खेलों की अनिवार्य भूमिका है, चाहे वो नियमित रनिंग या दौडऩे में हो या तेज वॉक , सायकलिंग, तैराकी या फिर अन्य उन खेलों में, जिनके जरिए हमारा पूरा शरीर हरकत में आता है। जितना सकारात्मक असर खेलों का हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है, उतना शायद ही किसी और बात का पड़ता हो। लिहाजा अब आमतौर पर डॉक्टरों से लेकर फिटनेस गुरु तक एक ही संदेश लोगों को देते हैं कि अपने जीवन में खेलों को किसी न किसी रूप में शामिल जरूर करें, इससे स्वास्थ्य पर गुणात्मक असर पड़ेगा। आप शारीरिक से लेकर मानसिक तौर पर ज्यादा स्वस्थ और खुश महसूस करेंगे, ज्यादा फिट रहेंगे। समाज में खेलों का रिश्ता उतना ही पुराना है, जितनी हमारी सभ्यता की ओर आगे बढऩे की कहानी। तमाम खेल नैसर्गिक तौर पर हमारी जिंदगी में शामिल होते चले गए। एक प्रसिद्ध मुहावरा है, स्वस्थ बुद्धि स्वस्थ शरीर में होती है, इसलिए कि मन व शरीर का परस्पर तालमेल बहुत जरूरी है।

अंग्रेजी में एक कहावत है- आर यू गेम यानि आप जीवन के लिए तैयार हैं। हालांकि इस कहावत के मूल में खेल ही हैं, जिनका आशय है कि जीवन और खेलों का खास संबंध है। हमारे प्राचीन समय में खेलों के महत्व को बखूबी को समझा जाता था। हम अपने रोज के जीवन में काम के दौरान ही तमाम बातें ऐसी करते थे, जो हमें खेलों के करीब ही रखती थीं-मसलन हम तब रोज पैदल चलते थे, दौड़ते थे, वर्जिश करते थे। ऐसे काम करते थे, जो हमारे पूरे शरीर में हरकत लाते रहते थे, इससे हम ज्यादा आक्सीजन लेते थे, खून का बहाव शरीर में ज्यादा व एकसमान होता था, पैर से लेकर सिर तक रक्त का बहाव अवरुद्ध नहीं होता था, इससे हम रक्त चाप और डायबिटीज की उन बीमारियों से दूर रहते थे, वो बीमारियां पास भी नहीं फटकती थीं, जो आजकल जीवनशैली के जरिए हमारे अंदर जगह बना रही हैं। अगर प्राचीन भारत के ही जीवन पर गौर फरमाएं तो आपको लगेगा कि तब हमारा समाज खेलों के कितने करीब था, जब हम खेलों की बात करते हैं तो यकीनन इसका मतलब उन शारीरिक प्रक्रियाओं से होता है, जो खुशनुमा तरीके से सारे शरीर को ज्यादा हरकत देने वाली होती थीं। तब सुबह की शुरुआत भोर में होती थी। योग, व्यायाम, कुश्ती, घुड़सवारी और शस्त्रकला से जुड़ी शालाएं सक्रिय दिखने लगती थीं। जो लोग यहां नहीं जा पाते थे, वो घरों में योग और व्यायाम कर लेते थे। ये आमतौर पर सभी के लिए अनिवार्य था और हर कोई किसी न किसी तरह इनसे जुड़ा था। इसी का नतीजा था कि समाज ज्यादा स्वस्थ समाज था, लोग लंबे समय तक निरोग रहते थे, खुश रहते थे और बलिष्ठ रहते थे। कुछ धर्मों में तो बकायदा खेलों की खासतौर पर पैरवी की गई। तैरने, निशानेबाजी, घुड़सवारी पर जोर दिया गया है।

बदलते समाज और दौर में जैसे जैसे हम मशीनों और आरामतलब जिंदगी की गिरफ्त में आते चले गए, हमारा शरीर अस्वस्थ होने लगा, हम ज्यादा जल्दी और कहीं ज्यादा बीमारियों की पकड़ में आने लगे। आलस्य एवं शारीरिक निष्क्रियता शरीर को कमज़ोर करती है या बहुत अधिक मोटा बना देती है, ऐसे लोग मानसिक रूप से शांत एवं प्रफुल्लित नहीं रह सकते। ऐसे लोग सामान्य रूप से चिड़चिड़े, झगड़ालू, टाल मटोल करने वाले हो जाते हैंं। उनके शरीर पर भी बुरा प्रभाव पडऩे लगता है।

हमारी प्रतिरोधक क्षमता कम होती जा रही है। ऐसे हालात में खेलों का महत्व फिर से बढ़ा भी है और समझा भी जाने लगा है। स्कूलों में अब खेलों को अनिवार्य करने की मांग उठ रही है लेकिन हकीकत ये है कि ज्यादातर स्कूल अब पढ़ाई के साथ खेलों और फिटनेस पर भी उतना ही जोर दे रहे हैं। कोशिश की जा रही है कि बचपन से ही बच्चों को खेलों से जोड़ा जाए। यूरोप और अमेरिका में खेल अनिवार्य तौर पर लोगों की जिंदगी से जुड़े हैं। सुबह की शुरुआत किसी न किसी रूप में खेलों से होती है-चाहे वो

रनिंग हो, सायकलिंग हो या फिर तैराकी या कोई और टीम खेल। इसके अलावा सप्ताहांत तो हर हाल में मुख्य तौर पर ऐसी गतिविधियों के करीब होता है, जहां कुछ न कुछ खेला जाए या फिर एडवेंचर गतिविधियों मसलन माउंटेनरिंग, ट्रैकिंग आदि की जाए।

बच्चों और किशोरों के लिए खेलों के खासे फायदे हैं। इसमें हिस्सा लेने से न केवल स्वास्थ्य और पूरे जीवन पर सकारात्मक असर पड़ता है बल्कि अलग अलग खेलों की शारीरिक गतिविधियों से हम अपनी सामान्य फिटनेस को बेहतर कर सकते हैं। बीमारियों से भी दूर रह सकते हैं। खेल यादाश्त भी मजबूत करते हैं, तनाव और दबाव में कमी लाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। शरीर का वजन नहीं बढ़ेगा। शरीर में अतिरिक्त वसा इकट्ठा नहीं होगी। हड्डियों के क्षय की शिकायत नहीं होगी। वर्ष 2007 मेंं ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोट्र्स मेडिसिन में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ, उसके अनुसार अलग खेलों के फायदे शरीर में अलग तरह से होते हैं। मसलन टेनिस खिलाडिय़ों को जीवन में बाद में भी हड्डियों की शिकायत नहीं होती। यहां तक की अगर आप नियमित तौर टेनिस नहीं भी खेलते है तो हडिड्यों का क्षय कम होता है। शोध में कहा गया कि टेनिस के कारण बोन मिनरल का नुकसान कम होता है। यहां तक की जिन लोगों ने अपने किशोरवय में टेनिस खेली है, उसका फायदा उन्हें वृद्धावस्था में भी होता है।

इसी तरह एक और अध्ययन दूसरे विश्व युद्ध के 50 साल पूरे होने पर उन लोगों पर किया गया, जिन्होंने एक सैनिक या सैन्य अधिकारी के रूप में विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था और जीवित थे। रिपोर्ट के अनुसार, वो सैन्यकर्मी, जिन्होंने हाईस्कूल में स्पोट्र्स में हिस्सा लिया था, उन्हें डॉक्टरों की जरूरत कम पड़ती है, वो हर साल डॉक्टरों के पास कम जाते हैं। अध्ययन के समय ये सभी लोग 70 वर्ष या ऊपर के थे और बेहतर व स्वतंत्र जिंदगी बिता रहे थे।

कुछ खेलों से आप लगातार अपने शरीर को बेहतर स्थिति में रख सकते हैं। मसलन तैराकी को ही लें। इससे आपकी मांसपेशियां और हृदय धमनियां मजबूत होती हैं। महज दस मिनट की तैराकी से ही पूरे शरीर का वर्कआउट हो जाता है। अगर आप तैरने को और ज्यादा समय देते हैं तो इसके फायदे कहीं ज्यादा होते हैं। शरीर का गठीलापन और लचीलापन बढ़ता है। जोड़ों की समस्या दूर होती हैै। यानि घुटने और कोहनी में आप दिक्कत महसूस नहीं करेंगे। इसमें आप ज्यादा कैलोरी खर्च करते हैं और शरीर के अनावश्यक वजन को कम करने में सफल रहते हैं। दरअसल तैराकी से शरीर में ज्यादा वसा में कमी आती है। अगर आपकी निचली मांसपेशियां कमजोर हैं और शरीर के संतुलन की दिक्कत है तो ऐसे लोगों को तैराकी की सलाह दी जाती है। पानी में आप भाररहित होते हैं और वहां तैरने से मांसपेशियों की एक्सरसाइज हो जाती है। संतुलन में असरदार ढंग से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हृदय और फेफड़े भी मजबूत होते हैं। सप्ताह में कम से कम तीन दिन की तैराकी दमखम, मांसपेशियों की मजबूती और वजन कम करने के लिए सटीक कही गई है। अमेरिकन कॉलेन ऑफ स्पोट्र्स मेडिसिन के एक शोध के अनुसार एक घंटे की तैराकी से आप 8७8 कैलोरी बर्न करते हैं। जिससे शरीर में हल्कापन और ताजगी महसूस करने लगते हैं। अक्सर पीठ की शिकायत करने वालों को तैराकी की हिदायत दी जाती है, इससे ये असरदार ढंग से दूर हो जाती है।

दौडऩे से भी शारीरिक क्षमता और मांसपेशियों में वृद्धि होती है। दौडऩे से रक्तचाप कम रहता है। हार्ट अटैक का खतरा कम होता है। फिटनेस स्तर बेहतर होता है। दौडऩे वाले धावकों की हृदय की धमनियां जहां बेहतर रहती हैं वहीं पैर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। उनका क्षरण कम हो जाता है। इससे आप लंबे समय तक जवान बने रहते हैं। हड्डियों के कमजोर होने की समस्या कम होती है। शरीर पर नियंत्रण बढता है और स्फूर्ति के साथ चपलता में बढोतरी होती है। कमजोर निचली मांसपेशियों से संबंधित लोगों को हर हाल में दौडऩे भागने की सलाह दी जाती है।

घुड़सवारी भी शारीरिक संतुलन और मांसपेशियों को पुष्ट करने में मददगार है। इससे शरीर मजबूत होता है। यहां तक की शारीरिक तौर पर कमजोर बच्चों के घुड़सवारी आश्चर्यजनक ढंग से वरदान साबित हो सकती है। वेस्ट वर्जीनिया विश्व विद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि जो किशोर शारीरिक तौर पर सक्रिय रहते हैं और टीम खेलों में होते हैं वो ज्यादा संतुष्ट और जीवन में अधिक खुश होते हैं।

कहा जाता है कि अगर आप फुटबाल खेल रहे हैं तो शरीर की कंपलीट एक्सरसाइज करते हैं। इस खेल में पैरों का तालमेल गेंद के साथ जितना जरूरी होता है, उतना ही तेजी से दौड़ते हुए शरीर का संतुलन भी, आंखें पैनी होनी चाहिए, हेडर के लिए सिर की मजबूती चाहिए तो चपलता भी खासी जरूरी है। लिहाजा ये खेल पूरे शरीर की एक्सरसाइज करा देता है। ये भी माना जाता है कि फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी हर तरह से संपूर्ण एथलीट होता है। ये खेल आपके पूरे शरीर का जहां खेल में झोंक देता है तो शरीर को उसी तरह स्वस्थ भी रखता है। शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं है, जिसपर इस खेल के दौरान सकारात्म असर नहीं पड़ता हो। बहुत से लोग वर्कआउट के तौर पर आमतौर पर सुबह फुटबाल खेलना पसंद करते हैं।

योग का अभ्यास तन और मन दोनों को स्वस्थ रखता है। इसे खेलों की ही कैटेगरी में रखा जाता है। दुनिया धीरे धीरे अब इसके महत्व को समझने लगी है। इसी का नतीजा है कि इसका तेजी से प्रसार हो रहा है। रोज कम से कम दस मिनट का योग भी दमखम बढ़ाने से लेकर एकाग्रता और मानसिक मजबूती में सार्थक होता है।

खेलों का जितना असर प्रत्यक्ष तौर पर शारीरिक रूप से होता है, उतना ही मानसिक भी। स्पोर्ट फिटनेस का मानसिक भी है। खेलों से हम पूरे शरीर में ज्यादा ऑक्सीजन लेते हैं। दिमाग में ऑक्सीजन की बहुलता ज्ञानात्मक क्षमताओं में इजाफा करता है। यादाश्त में बढोतरी के साथ दिमाग को ज्यादा फोकस करता है। खेलों और एरोबिक्स से दिमाग संबंधी बीमारियां अल्जाइमर का खतरा कम हो जाता है। शीजोफ्रेनिया पास नहीं फटकेगी। दिमाग जब बेहतर महसूस करेगा और उसे आक्सीजन के रूप में ज्यादा ऊर्जा मिलेगी तो शरीर का तालमेल भी अच्छा होगा। अच्छी नींद आएगी। नार्वे के शोधकर्ताओं ने पाया कि लोग शारीरिक रूप से जितने अधिक सक्रिय रहते हैं, उनके अवसादग्रस्त होने की आशंका उतनी कम होती है। जो लोग अपने खाली समय में सक्रिय नहीं रहते, उनके अवसादग्रस्त होने की आशंका दोगुनी हो जाती है।

शारीरिक तौर पर देखें स्वास्थ्य और फिटनेस का सीधा ताल्लुक खेलों से है। खेलों से शरीर के समग्र अवयवों की हरकत बढ़ती है। खेल अगर कम सघनता वाली लिपो प्रोटींस को कम करते हैं तो ज्यादा सघनता वली लिपो प्रोटींस को बढाते हैं, नतीजा होता है कि शरीर में बेहतर कोलेस्ट्राल की मात्रा। इससे रक्त चाप नियंत्रित रहता है और ये स्थिति नकारात्मक रूप से हाइपरटेंशन की स्थितियों से बचाता है और हार्ट अटैक और स्ट्रोक की आशंका कम हो जाती है। खेलों के लाभ इतने ज्यादा हैं कि पूछिए मत। खेलों के दौरान हम जिन शारीरिक एक्सरसाइज से रू-ब-रू होते हैं,वो डायबिटीज और आस्टियोपोरोसिस से भी हमारी रक्षा करती है। विश्व प्रसिद्ध मेयो क्लीनिक का एक शोध बताता है कि स्पोट्स और अन्य एरोबिक एक्सरसाइज कुछ तरह के कैंसर से भी बचाव करता है। शोध से पता चलता है कि खेलकूद एवं व्यायाम की स्थिति में मांसपेशियों को आराम की तुलना में 10 से 18 गुना अधिक ख़ून की ज़रूरत होती है, 20 गुना अधिक शर्करा एवं ऑक्सीजन उपयोग करती हैं, 50 गुना अधिक कार्बोनिक गैस छोड़ती हैं, इन आंकड़ों से ही खेलकूद एवं व्यायाम के दौरान हृदय के काम का महत्व पता लग जाता है। खेलकूद से रक्तचाप और यहां तक कि रक्त की भौतिक और रासायनिक संरचना में परिवर्तन हो जाता है। खेलकूद एवं व्यायाम से कुछ समय बाद हृदय की धडक़नों में संतुलन आ जाता है। कुछ समय तक व्यायाम करने से शरीर भोजन का सही उपयोग करता है। आंतरिक ग्रंथियों की गतिविधियां बेहतर हो जाती हैं।

खेल हमारी मनोदशा पर भी असर डालते हैं। हमारे मूड को बदल देते हैं। हम जब खेलते हैं तो हमारा शरीर इंडोरफिंस जारी करता है। खेलों के दौरान इसका उत्पादन ज्यादा होने लगता है, जिसकी वजह से हम खुश महसूस करते हैं। खेलों को इसीलिए आमतौर पर निराशा और हताशा से लडऩे का सबसे कारगर हथियार माना जाता है। इसी तरह तनाव के हारमोंस कम होते हैं।

खेलों का सामाजिक प्रभाव भी है, जब हम टीम में खेलते हैं तो एक दूसरे से मिलते हैं। एक दूसरे अपनी भावनाओं को साझा करते हैं। साथ में खेलना यहां तक एक दूसरे के खिलाफ खेलना भी कुल मिलाकर खुशी में बढोतरी करता है। जीत आपके भावनात्मक स्वास्थ्य को उम्दा रखती है, आपके आत्मविश्वास

को बढाती है। जो लोग अपने स्कूल और कालेज के दिनों में खेलते हैं तो बाद के दशकों में भी सक्रिय महसूस करते हैं. बदले में उनका स्वास्थ्य और मानसिक दमखम औरों की तुलना में अच्छा रहता है। एक हेल्थ पत्रिका का सर्वे कहता है कि वो अपने उम्र के पचास और साठ के दशक में कहीं ज्यादा फिट और स्वस्थ रहते हैं।



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