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लिव-इन-रिलेशनशिप का बढ़ता चलन

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  11-Jan-2024 | शालिनी बाजपेयी



कुछ समय पहले एक खबर खूब चर्चा में रही कि आफ़ताब नाम के एक युवक ने अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या करके उसके शव को 35 टुकड़ों में काटकर अलग-अलग जगहों पर फेंक दिया। श्रद्धा वॉकर हत्याकांड की चिंगारी बुझी नहीं थी कि मुंबई से एक और दिल दहला देने वाला मामला सामने आ गया। यहां पर रहने वाले मनोज साने ने अपनी लिव-इन पार्टनर सरस्वती वैद्य की हत्या करके, उसके शव के टुकड़े ही नहीं किए, बल्कि शव के टुकड़ों को प्रेशर कुकर में उबाल डाला। वहीं, एक अन्य जगह लिव-इन पार्टनर द्वारा शादी से मना करने के बाद प्रेमिका ने आत्महत्या कर लिया। ऐसी एक-दो नहीं बल्कि अनगिनत घटनाएं हैं जिन्हें आप और हम चाय की चुस्की लेते हुए सरसरी नज़र से पढ़कर एक किनारे कर देते हैं। यहां तक कि हम ऐसी मौतों पर दुख भी नहीं जताते। मैंने कई बार अपने आस-पास लोगों को यह कहते हुए सुना है कि ऐसी चरित्रहीन लड़कियों के साथ ऐसा ही होता है। जबकि हम यह भूल जाते हैं की जिस तरह से भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप का चलन बढ़ रहा है, कल को इसी परिस्थिति में हमारे घर के बेटे या बेटियाँ भी हो सकते हैं। इसलिए अब समय की मांग है कि इसको नज़रअंदाज करने की बजाय इसकी तह तक जाकर समझने का प्रयास किया जाए।

हम इसके विभिन्न पहलुओं को भलीभांति समझ सकें इसके लिये ज़रूरी है कि पहले यह जान लें कि आखिर ये लिव-इन-रिलेशनशिप है क्या? 

आसान शब्दों में कहें तो लिव-इन-रिलेशनशिप 'बिन फेरे, हम तेरे' का रिश्ता है, जिसमें विपरीत लिंग के दो बालिग लोग एक ही छत के नीचे बिना शादी किए पति-पत्नी की तरह साथ रहते हैं। इतना जानने के बाद, हो सकता है आपके मन में यह जिज्ञासा उठे कि यदि कोई प्रेमी-प्रेमिका कुछ दिन, सप्ताह भर या महीने भर के लिये साथ रहते हैं तो इसे भी लिव-इन-रिलेशनशिप ही माना जाएगा? तो इसका जवाब है, ‘नहीं'। लिव-इन पार्टनर की कैटेगिरी में वही जोड़े आएंगे जो लंबे समय से एक-दूसरे के साथ रह रहे हों।

लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर क्या कहता है हमारा कानून?

यह सच है कि भारतीय समाज और लोगों की नज़र में लिव-इन-रिलेशनशिप को अच्छा नहीं माना जाता है लेकिन देश का कानून इसे गलत नहीं मानता। हमारे संविधान में वर्णित अनुच्छेद-21, दो बालिग लोगों को शादी करने के बाद या बिना शादी किए एक छत के नीचे रहने का अधिकार देता है।

हालांकि इस संबंध में देश में अलग से कोई कानून नहीं बनाया गया है जिसके चलते कई बार लिव-इन में रह रहे जोड़ों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में अलग-अलग परिस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों द्वारा सुनाए गए फैसले ही इस रिश्ते को मान्यता देने का कार्य करते हैं। 

उदाहरण के तौर पर देखें तो 2001 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पायल शर्मा बनाम नारी निकेतन केस में कहा कि किसी महिला और पुरुष का बिना शादी किए एक साथ रहना गैरकानूनी नहीं है। वहीं साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने लता सिंह बनाम यूपी राज्य मामले में कहा कि विपरीत लिंग के दो शख्स अगर एक साथ रह रहे हैं तो ये गैरकानूनी या अपराध नहीं है। 

क्यों बढ़ रहा भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप का चलन? 

  • भारत में मेट्रोपॉलिटन शहरों में लिव-इन-रिलेशनशिप का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि बड़े-बड़े महानगरों में लोगों को रहने के लिये आसानी से फ्लैट मिल जाते हैं, और बगल में रहने वाला इंसान भी नहीं जानता कि उसके आस-पास कौन रह रहा है? इसके साथ ही, मकान मालिक को भी किराए से मतलब होता है, उसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि साथ रहने आए जोड़ों ने शादी की है या नहीं।
  • वहीं, लिव-इन में रहने वाले अधिकतर युवा नौकरीपेशा होते हैं। ये ज़ल्दी शादी नहीं करना चाहते, लेकिन इमोशनल और फिजिकल ज़रूरतों के लिये ये पार्टनर चाहते हैं। ऐसे में लिव-इन में रहना इन्हें आसान रास्ता नज़र आता है। 
  • जब दो लोग शादी करने के बारे में सोचते हैं तो वे यह जानने के लिये कि सामने वाले इंसान के साथ उसका सामंजस्य ठीक तरीके से हो पा रहा है या नहीं, वे लिव-इन में रहने का फैसला करते हैं।  
  • आज भी भारतीय समाज में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है। जिसके चलते यदि एक बार कोई जोड़ा शादी के बंधन में बंध गया तो अनबन होने के बाद भी पारिवारिक व सामाजिक दबाव के चलते वह ज़ल्दी रिश्ते को तोड़ने के बारे में नहीं सोच सकता है, जबकि लिव-इन-रिलेशनशिप में ऐसा कोई दबाव नहीं होता है। वे जब चाहें रिश्ते को खत्म कर सकते हैं।   

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी लिव-इन से जुड़े एक मसले पर शादी की महत्ता को समझाते हुए कहा कि जानवरों की तरह हर मौसम में पार्टनर बदलने का चलन एक सभ्य और स्वस्थ समाज की निशानी नहीं हो सकता। शादी में जो सुरक्षा, सामाजिक स्वीकृति और स्थायित्व मिलती है, वह लिव-इन रिलेशनशिप में कभी नहीं मिल सकती।  

  • एक पहलू यह भी है कि पश्चिमी सभ्यता का असर होने के चलते आजकल कई युवाओं को ऐसा लगता है कि शादी की ज़रूरत ही नहीं है। वहीं, कुछ लोगों के मन में ये डर होता है कि कहीं शादी के बाद तलाक न हो जाए; कहीं वे शादी के बाद की ज़िम्मेदारियां नहीं संभाल पाए तो...। इसलिये वो लिव-इन में रहना ज़्यादा पसंद करते हैं।  

भारत में नई नहीं है लिव-इन-रिलेशनशिप की अवधारणा:  

गौर फरमाए तो हम पाएंगे कि भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप बिल्कुल नया नहीं है। ऐतिहासिक रूप से इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। मनुस्मृति के अनुसार, वैदिक काल के बाद से दो लोगों के बीच में ऐसे रिश्ते हमें देखने को मिलते रहे हैं। वेदों में भी आठ तरह की शादियों का जिक्र किया गया है जिसमें से एक गंधर्व विवाह था, जिसकी कई विशेषताएं लिव-इन-रिलेशनशिप से मिलती-जुलती हैं।  

क्या लिव-इन में रह रही महिलाएं भी घरेलू हिंसा होने पर ले सकती है कानून का सहारा?  

आफताब के हाथों अपनी जान गंवाने वाली श्रद्धा के पिता ने बताया कि आफताब अक्सर श्रद्धा के साथ मारपीट करता था, लेकिन उसने एक बार भी इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई। शायद श्रद्धा को ये डर रहा होगा कि वह लिव-इन में रह रही है इसलिए कोई भी उसका साथ नहीं देगा। वह यह भूल गई थी कि एक बार समाज के लोग उसका साथ भले ही न दें लेकिन कानून उसका साथ ज़रूर देता। उसके पास ये अधिकार था कि वह घरेलू हिंसा कानून के तहत संरक्षण प्राप्त कर सकती थी। हां, सही पढ़ा आपने! साल 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने इंद्र शर्मा बनाम वी.के.वी. शर्मा मामले में कहा कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रही महिलाओं को भी घरेलू हिंसा कानून-2005 के तहत संरक्षण हासिल है। इस एक्ट के भाग 2(f) में घरेलू संबंध की परिभाषा दी गई है। लिव-इन रिलेशन भी उसके दायरे में आता है।  

क्या लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रही महिलाएं कर सकती हैं भरण-पोषण की मांग?  

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फैसलों में ये कहा है कि अगर कोई जोड़ा लंबे समय से लिव-इन में रह रहा है; घर की जिम्मेदारियों को संयुक्त रूप से उठा रहा है; तो उन्हें पति-पत्नी के जैसा ही माना जा सकता है। ऐसे मामलों में अलग होने पर महिलाएं भरण-पोषण का भी दावा कर सकती हैं।   

मई 2022 में सर्वोच्च न्यायालय ने ललिता टोप्पो बनाम झारखंड राज्य के मामले में कहा था कि लिव-इन में रह रही महिलाएं भी घरेलू हिंसा कानून, 2005 के प्रावधानों के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती हैं। 

लिव-इन-रिलेशनशिप में जन्में बच्चे के अधिकार: 

अक्सर यह प्रश्न उठता है कि जिस समाज में लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को ही नैतिकता, आचरण व संस्कृति के पतन की नज़र से देखा जाता है, ऐसे में उसमें जन्में बच्चों को कितनी सामाजिक व कानूनी स्वीकृति मिल पाती होगी? तो आपकी जानकारी के लिये बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने 1993 के एस.पी.एस. बालासुब्रमण्यम बनाम सुरुत्तायन मामले और जून 2022 में कट्टुकंडी एदाथिल कृष्णन व अन्य बनाम कट्टुकंडी एदाथिल वालसन और अन्य मामले में फैसला सुनाया कि लंबे समय तक चले लिव-इन रिलेशन से पैदा हुए बच्चे को भी शादीशुदा जोड़े के बच्चों की ही तरह पैतृक संपत्ति से लेकर उत्तराधिकार तक सभी अधिकार मिलेंगे। 

अलग-अलग देशों में लिव-इन-रिलेशनशिप की कानूनी स्थिति:

  • अमेरिका में साथ रह सकते हैं लेकिन लीगल पार्टनर का दर्जा नहीं दिया गया है।  
  • ब्रिटेन में बिना शादी साथ रहने वालों को भी लीगल पार्टनर का दर्जा प्राप्त है।  
  • ऑस्ट्रेलिया में शादीशुदा लोगों के लिव-इन-रिलेशनशिप भी वैध माने जाते हैं।  
  • कनाडा में कुछ मामलों में लिव-इन-जोड़ों को भी शादीशुदा जैसे अधिकार दिए गए हैं।  
  • फ्रांस में लिव-इन-रिलेशनशिप दो लोगों के बीच कॉन्ट्रैक्ट माना जाता है।    
  • वहीं, ईरान, इराक, सऊदी अरब और इंडोनेशिया जैसे देशों में 'लिव-इन रिलेशनशिप’ को बड़ा अपराध माना जाता है। शरिया कानून में इसे ‘जिना’ यानी गैर-कानूनी यौन संबंध के तौर पर देखा जाता है। कई इस्लामिक देशों में इसके लिये पत्थर या कोड़े मारने जैसी कठोर सज़ा का प्रावधान है।  

भारत में लिव-इन-रिलेशनशिप के सफल न होने का कारण?  

पश्चिमी देशों में लिव-इन-रिलेशनशिप का चलन काफी समय से है। वहां शादी को पवित्र या सात जन्मों के बंधन की तरह नहीं देखा जाता है। दूसरी चीज़ ये कि वहां पर किसी प्रकार का सामाजिक व पारिवारिक दबाव नहीं होता है। इसलिए जब भी दो वयस्कों को लगता है कि वे साथ रहकर खुश रहेंगे तो वे लिव-इन में रहने लगते हैं और जब अलग होना चाहते हैं तो उतनी ही समझदारी से अलग हो जाते हैं।   

लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। भारत में बिना शादी के साथ रहने वालों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता है। खासकर लड़कियों को लेकर लोग तरह-तरह की बातें बनाते हैं। अक्सर उसके घरवाले भी ऐसे मामलों में साथ छोड़ देते हैं, जिसके चलते जब भी कोई लड़की लिव-इन में रहने का फैसला करती है तो वह अपने पार्टनर से शादी जैसी सुरक्षा और शादी जैसा ही कमिटमेंट की उम्मीद करने लगती है। और जब उसे ये सुरक्षा नहीं मिलती या लड़का शादी से इनकार कर देता है तो झगड़े व मनमुटाव शुरू हो जाते हैं। इस दौरान वे मेच्योरिटी के साथ इस रिश्ते से बाहर निकलने की बजाय एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना शुरू करते हैं। जिसके बाद कई बार पुरुष इस समस्या से बाहर निकलने के लिये महिला पार्टनर की हत्या तक कर देते हैं। 

डब्ल्यूएचओ के एक आंकड़े के मुताबिक, दुनिया भर में महिलाओं की जितनी हत्याएं होती हैं उनमें से 35 फीसदी हत्याएं ब्वायफ्रेंड, पति या एक्स ही करते हैं। इसके उलट, कई बार लड़कियां भी अपने पुरुष पार्टनर को रेप व अन्य आरोपों में फंसाने का प्रयास करती हैं। इसके अलावा, कई बार लड़कियां आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेती हैं। 

सार रूप में कहें तो लिव-इन-रिलेशनशिप न तो पूरी तरह से गलत है और न ही पूरी तरह से सही। यह महज समय के साथ बदलती सोच व बदलते समाज का परिणाम है। और इस परिवर्तन को अपनाने के लिये यह ज़रूरी है कि इसके लिये भी कुछ नियम व कायदे कानून बनाए जाएं। साथ ही यह भी ज़रूरी है कि, युवा लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने से पहले उसके सभी पहलुओं पर अच्छे से विचार कर लें, और अपने माता-पिता को भी इस बारे में ज़रूर बताएं। माता-पिता को भी चाहिए कि बच्चों के फैसले का सीधा विरोध करने की बज़ाय उन्हें समझें और उनके साथ खड़े रहें। ताकि कल को अगर आपकी बेटी या बेटे के साथ कुछ गलत हो, तो आपको पता हो और आप उसकी मदद कर सकें। इसके अलावा, अगर साथ रहने के दौरान दोनों पार्टनर के बीच अनबन होती है तो जबरदस्ती रिश्ते को ढोने से अच्छा है कि समझदारी व आपसी सहमति से रिश्ते को खत्म कर दिया जाए। साहिर लुधियानवी के गीत की ये पंक्तियाँ भी कुछ इसी तरफ इशारा कर रही हैं-

 तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस को भूलना बेहतर 

 तअ'ल्लुक़ बोझ बन जाए तो उस को तोड़ना अच्छा

 वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन

उसे इक ख़ूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा…



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