पश्चिमी घाट

पर्यावरण और पारिस्थितिकी


 15-Jan-2025

चर्चा में क्यों?  

IUCN ने भारत के पश्चिमी घाट को लुप्तप्राय अलवणीय जल की प्रजातियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण हॉटस्पॉट के रूप में पहचाना है। अध्ययन में बताया गया है कि वैश्विक अलवणीय जल की 25% प्रजातियों के विलुप्त होने का उच्च जोखिम है, जिसमें पश्चिमी घाट जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।  

पश्चिमी घाट: प्रमुख बिंदु 

  • अवलोकन: पश्चिमी घाट या सह्याद्रि पहाड़ियाँ जैव विविधता का एक हॉटस्पॉट हैं, जिन्हें UNESCO विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह पर्वतमाला महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु तक विस्तृत है और भारत की पारिस्थितिकी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  
  • भूविज्ञान: पश्चिमी घाट या तो ब्लॉक पर्वत हैं या दक्कन पठार के दोषपूर्ण किनारे हैं। प्रमुख चट्टानों में बेसाल्ट, चार्नोकाइट्स, ग्रेनाइट नीस और मेटामॉर्फिक नीस शामिल हैं।  
  • भौगोलिक विस्तार: सतपुड़ा पर्वतमाला से कन्याकुमारी तक 1,600 किमी. तक विस्तृत, 140,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तारित है, घाट अरब सागर से 30-50 किलोमीटर की  गहराई तक विस्तृत हैं।  
  • पर्वत शृंखलाएँ: नीलगिरि पर्वतमाला शेवरॉय और तिरुमाला पर्वतमाला से जुड़ती है। अनामुडी चोटी सबसे ऊँची चोटी है।  
  • नदियाँ  
    • पेरियार, भरतपुझा और शरावती जैसी पश्चिम की दिशा में प्रवाहित होने वाली नदियाँ तेज़ी से बहती हैं और जल विद्युत उत्पादन के लिये अनुकूल हैं।
    • गोदावरी, कृष्णा और कावेरी जैसी पूर्व की दिशा में प्रवाहित होने वाली नदियाँ धीरे-धीरे बहती हैं और अंततः बड़ी नदियों में समाहित हो जाती हैं। 
  • जलवायु और वनस्पति: घाटों के पश्चिमी ढलानों पर उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन और पूर्वी ढलानों पर पर्णपाती वन हैं, जिनका भारतीय मानसून पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।  
  • वन्यजीव: यह क्षेत्र नीलगिरि तहर और लायन-टेल्ड मकाक या सिंह-पूँछ मकाक जैसी स्थानिक प्रजातियों के साथ-साथ 325 वैश्विक रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों का आवास है।  
  • संरक्षित क्षेत्र: इसमें 2 बायोस्फीयर रिज़र्व, 13 राष्ट्रीय उद्यान और कई अभयारण्य शामिल हैं, जिनमें नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व सबसे बड़ा संरक्षित क्षेत्र है।  
  • महत्त्व: पश्चिमी घाट जैव विविधता संरक्षण, जल संसाधन और पूरे क्षेत्र में पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने हेतु आवश्यक हैं।  

IUCN (अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ)  

  • स्थापना: 1948 में स्थापित
  • उद्देश्य: वैश्विक पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करना।  
  • रेड लिस्ट: संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट बनाए रखती है तथा प्रजातियों के विलुप्त होने के जोखिम का आकलन करती है।  
  • सहयोग: सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ कार्य करता है।  
  • मिशन: सतत् विकास को बढ़ावा देना और विश्व भर में पर्यावरण नीतियों को प्रभावित करना।  
  • गतिविधियाँ: अनुसंधान आयोजित करना, विशेषज्ञ सलाह प्रदान करना तथा विश्व स्तर पर संरक्षण पहलों का समर्थन करना।