स्वतः संज्ञान के मामले
भारतीय राजनीति
21-Jan-2025
स्वतः संज्ञान के मामले
- परिभाषा: भारत में स्वतः संज्ञान क्षेत्राधिकार न्यायिक सक्रियता का एक पहलू है, जहाँ न्यायालय महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दों, विशेष रूप से मानवाधिकार उल्लंघन और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये स्वतंत्र रूप से कार्यवाही शुरू करती हैं।
- उद्देश्य
- यह उन वंचित समूहों के लिये न्याय सुनिश्चित करता है जो स्वयं न्यायालयों तक पहुँचने में असमर्थ हैं।
- आलोचकों का तर्क है कि इससे शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन हो सकता है।
- कानूनी ढाँचा: स्वतः संज्ञान क्षेत्राधिकार के लिये कोई विशिष्ट कानून नहीं है, लेकिन इसे सर्वोच्च न्यायालय नियम (2014) के तहत मान्यता प्राप्त है।
- ऐतिहासिक मामले
- साइलेंट वैली केस: पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर जनहित याचिका (PIL) आंदोलन की शुरुआत की।
- सरीन मेमोरियल लीगल एड फाउंडेशन बनाम पंजाब राज्य (2017): सुखना झील के जलग्रहण क्षेत्र में अतिक्रमण से संबंधित मामला।
- दून घाटी मामला: सर्वोच्च न्यायालय ने एक पत्र को अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका माना, जिसके परिणामस्वरूप देहरादून में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
क्या आप जानते हैं?
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