06-Mar-2025
सर्वोच्च न्यायालय ने दिव्यांगता अधिकारों को मौलिक अधिकार माना
भारतीय राजनीति
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि दृष्टिबाधित उम्मीदवार न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल हो सकते हैं, तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि दिव्यांगजन सशक्तिकरण अधिनियम, 2016 के तहत दिव्यांगता आधारित भेदभाव के खिलाफ अधिकार एक मौलिक अधिकार है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की मुख्य बातें
- भेदभावपूर्ण नियम निरस्त : मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम (1994) के नियम 6A को अमान्य कर दिया गया, क्योंकि इसमें दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को उनकी योग्यता के बावजूद नियुक्ति पर रोक लगाई गई थी।
- समानता का अधिकार : दिव्यांगजनों का बहिष्कार अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 15 (गैर-भेदभाव) का उल्लंघन है।
- सकारात्मक कार्यवाही : न्यायालय ने दान-आधारित उपचार की अपेक्षा अधिकार-आधारित दृष्टिकोण पर जोर दिया।
- उचित आवास :
- यदि पर्याप्त दिव्यांग अभ्यर्थी उपलब्ध न हों तो पात्रता में छूट (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अभ्यर्थियों के समान)।
- दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों के लिये अलग कट-ऑफ (इंद्रा साहनी निर्णय के अनुसार) ।
- UNCRPD एवं RPwD अधिनियम, 2016 के साथ संरेखण।
भारत में दिव्यांगजनों की स्थिति
- जनसंख्या : वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 2.21% (2.68 करोड़)।
- मान्यता प्राप्त दिव्यांगताएँ : RPwD अधिनियम, 2016 के तहत 21 प्रकार, जिनमें दृश्य और श्रवण दोष, सेरेब्रल पाल्सी और बौनापन शामिल हैं।
कानूनी एवं संवैधानिक प्रावधान
- मौलिक अधिकार : अनुच्छेद 14, 19, 21
- DPSP : अनुच्छेद 41 ( दिव्यांगजन कल्याण के लिये राज्य का कर्त्तव्य)।
- स्थानीय शासन :
- 11वीं अनुसूची (समाज कल्याण, अनुच्छेद 243-G की प्रविष्टि 26)।
- 12वीं अनुसूची ( कमज़ोर वर्गों का संरक्षण, अनुच्छेद 243-W की प्रविष्टि 9)।
दिव्यांगजनों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कानून
- RPwD अधिनियम, 2016: समान अवसर और अधिकार संरक्षण सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय ट्रस्ट अधिनियम, 1999: ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी और बहु दिव्यांगता वाले दिव्यांगजनों को सहायता प्रदान करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017: मानसिक स्वास्थ्य अधिकारों और गरिमा की रक्षा करता है।