सरदार पटेल
विविध
25-Nov-2024
सरदार पटेल:
- जन्म: 31 अक्तूबर , 1875
- उन्होंने कानून की पढ़ाई की और एक कुशल वकील बने जो अपनी तीक्ष्ण कानूनी कुशलता के लिये जाने जाते थे।
- सरदार पटेल अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद वर्ष 1910 में कानून की पढ़ाई करने लंदन चले गये।
- अहमदाबाद में कॅरियर: भारत लौटने के बाद पटेल अहमदाबाद में बस गए, जहाँ वे कानूनी पेशे में एक प्रमुख व्यक्ति बन गए।
- उन्होंने स्वयं को एक सफल आपराधिक वकील के रूप में स्थापित किया और जटिल कानूनी मामलों को संभालने की अपनी क्षमता के लिये सम्मान अर्जित किया।
- राजनीति की ओर झुकाव: प्रारंभ में पटेल का राजनीति की ओर कोई झुकाव नहीं था, लेकिन समय के साथ महात्मा गांधी के प्रभाव में वे स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय संघर्ष में गहराई से शामिल हो गए।
- वर्ष 1917 तक पटेल गांधीवादी आंदोलन में शामिल हो गये और उन्होंने गांधीजी के अहिंसा और सत्य (सत्याग्रह) के दर्शन को अपना लिया।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:
- खेड़ा सत्याग्रह (1917):
- उन्होंने खेड़ा सत्याग्रह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ गुजरात के किसान अंग्रेज़ों द्वारा लागू की गई अनुचित कर नीतियों के खिलाफ विरोध कर रहे थे।
- उन्होंने गांधीजी के साथ मिलकर आंदोलन का नेतृत्व किया, किसानों को संगठित किया और करों में कमी तथा अकाल से प्रभावित लोगों को राहत प्रदान करने के लिये दबाव बनाया।
- उनके नेतृत्व ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया।
- असहयोग आंदोलन (1920-22) :
- वह असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी विरोध था ।
- उन्होंने गुजरात में आंदोलन की कमान संभाली, बड़ी संख्या में लोगों को संगठित किया तथा भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में 300,000 नये सदस्य बनाये।
- उन्होंने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार को बढ़ावा देने और स्वदेशी आंदोलन का समर्थन करने में भी प्रमुख भूमिका निभाई, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक खादी का व्यापक उपयोग भी शामिल था।
- बारडोली सत्याग्रह (1928):
- उनके नेतृत्व में बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक घटना बन गयी।
- यह आंदोलन अंग्रेज़ों द्वारा भू-राजस्व में भारी वृद्धि के विरोध में शुरू किया गया था।
- भयंकर अकाल की स्थिति के बावजूद उन्होंने किसानों का अहिंसक विद्रोह का नेतृत्व किया और अंग्रेज़ों को कर वृद्धि वापस लेने पर मज़बूर होना पड़ा।
- इस सफलता के कारण उन्हें 'सरदार' (अर्थात नेता या प्रमुख) की उपाधि दी गयी।
- खेड़ा सत्याग्रह (1917):
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में नेतृत्व
- वर्ष 1931 में कराची अधिवेशन:
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में उनका प्रभाव महत्त्वपूर्ण था और वर्ष 1931 में उन्होंने कराची में आयोजित कॉन्ग्रेस के 46 वें अधिवेशन की अध्यक्षता की।
- यह सत्र मौलिक अधिकार प्रस्ताव के पारित होने के लिये विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो भारत के भावी संविधान का आधार बना।
- 1934 कॉन्ग्रेस में भूमिका:
- वर्ष 1931 में कराची अधिवेशन:
- सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34)
- नमक सत्याग्रह और व्यक्तिगत भागीदारी:
- वह नमक उत्पादन पर ब्रिटिश एकाधिकार और उसके दमनकारी कराधान के खिलाफ गांधीजी के नेतृत्व में नमक सत्याग्रह में प्रमुख भागीदार थे।
- प्रसिद्ध दांडी मार्च सहित विरोध प्रदर्शनों के आयोजन में उनका योगदान महत्त्वपूर्ण था और बाद में आंदोलन में शामिल होने के कारण उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था।
- उनके प्रयास पूरे देश में अहिंसक प्रतिरोध के विचार को फैलाने में केंद्रीय थे।
- बहिष्कार और अहिंसक विरोध:
- इस आंदोलन के दौरान, पटेल ने ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार, करों की अस्वीकृति और स्वदेशी के विचार के प्रसार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा के लिये उनका समर्थन स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख पहलू बन गया।
- नमक सत्याग्रह और व्यक्तिगत भागीदारी:
- भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
- भारत छोड़ो आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका: वर्ष 1942 में, वे भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक के रूप में उभरे, जिसका उद्देश्य भारत से अंग्रेज़ों की तत्काल वापसी था।
- उन्होंने पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन, हड़ताल और सविनय अवज्ञा के आयोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उनका नेतृत्व जनसंख्या के बड़े हिस्से को संगठित करने तथा उनसे सामूहिक कार्रवाई के माध्यम से स्वतंत्रता की मांग करने का आग्रह करने में महत्त्वपूर्ण था।
- भारत छोड़ो आंदोलन में नेतृत्वकारी भूमिका: वर्ष 1942 में, वे भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक के रूप में उभरे, जिसका उद्देश्य भारत से अंग्रेज़ों की तत्काल वापसी था।
- राष्ट्रीय लामबंदी और रणनीति: उन्होंने लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिये प्रेरित करते हुए शक्तिशाली भाषण दिये और ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार तथा सिविल सेवाओं को बंद करने के अभियानों का नेतृत्व किया।
- उन्होंने आंदोलन के लिये वित्तीय सहायता भी जुटाई और राष्ट्रीय नेताओं को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार होने से बचाने के लिये भी कार्य किया।
स्वतंत्रता के बाद भारत के एकीकरण और राष्ट्र निर्माण में योगदान
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