पवित्र उपवन

पर्यावरण और पारिस्थितिकी


 19-Dec-2024

चर्चा में क्यों?  

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को देश भर में पवित्र उपवनों के प्रबंधन के लिये एक व्यापक नीति बनाने का निर्देश दिया।  

पवित्र उपवन या वृक्षवाटिका (Sacred Groves): मुख्य बिंदु  

पवित्र उपवन क्या हैं?  

स्थानीय समुदायों द्वारा पूर्वजों की आत्माओं या देवताओं को समर्पित प्राकृतिक या लगभग प्राकृतिक वनस्पति।  

  • सरना (झारखंड), देवगुड़ी (छत्तीसगढ़) और ओरण (राजस्थान) के नाम से जाना जाता है।  
  • इनका आकार छोटे समूहों से लेकर बड़े क्षेत्रों तक होता है; कुछ में एक ही पवित्र वृक्ष होता है।  
  • कानूनी संरक्षण: वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के तहत पवित्र उपवनों को 'सामुदायिक रिज़र्व' के अंतर्गत संरक्षित किया गया है।  

विस्तार और वितरण  

  • लगभग 33,000 हेक्टेयर, जो भारत के भूमि क्षेत्र का 0.01% है, को कवर करता है।  
  • भारत भर में 13,000 से अधिक पवित्र उपवनों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।  
  • समृद्ध पवित्र उपवन वाले राज्य: केरल, पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र, मेघालय, राजस्थान, तमिलनाडु।  
  • महाराष्ट्र में लगभग 3,000 प्रलेखित उद्यान हैं।  

जैव विविधता और सांस्कृतिक महत्त्व  

  • पवित्र उपवन जैव विविधता के केंद्र हैं।  
  • जनजातीय समुदायों का इन वनों से गहरा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध है।  
  • आध्यात्मिक संहिताओं और शासन के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक।  

जलवायु लक्ष्यों में भूमिका  

  • पवित्र वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायता करते हैं।  
  • वर्ष 2070 तक भारत के नेट-जीरों लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये संरक्षण महत्त्वपूर्ण है।  
  • प्रभावी प्रबंधन मानव-प्रकृति के बीच संबंध को बनाए रखने में सहायता करता है।  

संरक्षण दृष्टिकोण (OECM)  

  • पवित्र उपवनों में "अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय" (OECM) दृष्टिकोण का पालन किया जाता है।  
  • समुदायों द्वारा प्रबंधित, जैव विविधता संरक्षण में सांस्कृतिक मूल्यों को एकीकृत करना।  
  • जैव विविधता का दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित करता है।  

सरकारी पहल  

  • झारखंड में घेरावबंदी (2019) में पेड़ों की सुरक्षा के लिये चारदीवारी की शुरुआत की गई।  
  • छत्तीसगढ़ में नवीकरण परियोजनाओं का उद्देश्य वृक्षों का पुनरुद्धार करना है।  
  • सीमित सामुदायिक भागीदारी और आरक्षित वनों पर ध्यान केंद्रित करने के कारण पवित्र उपवनों की अक्सर उपेक्षा की जाती है।