राज्यसभा का नियम 267

भारतीय राजनीति


 06-Dec-2024

नियम 267: 

  • यह विधेयक सांसदों को दिन के एजेंडे में शामिल न किये गए अत्यावश्यक मामलों पर चर्चा करने के लिये नियमों को स्थगित करने का प्रस्ताव रखने की अनुमति देता है। 
  • सांसदों को उस दिन सुबह 10 बजे से पूर्व सूचना देनी होगी जिस दिन वे नियम 267 लागू करना चाहते हैं। 
  • नियम को निलंबित करने का प्रस्ताव मतदान के लिये रखा जाता है और यदि पारित हो जाता है, तो नियम को उस विशेष चर्चा के लिये अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाता है। 
  • 1990 के बाद से इस नियम का 11 बार उपयोग किया गया है, जिसमें खाड़ी युद्ध, भ्रष्टाचार और विमुद्रीकरण जैसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा भी शामिल है। 
  • नियम 267 का अंतिम बार प्रयोग वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण के विषय पर किया गया था। 
  • सभापति एम. वेंकैया नायडू ने वर्ष 2017 से नियम 267 को लागू करने के सैकड़ों नोटिसों को खारिज कर दिया है, जिसमें राफेल सौदा और GST कार्यान्वयन जैसे मुद्दे शामिल हैं, जिससे इसके उपयोग में पाँच वर्ष का अंतराल हो गया है। 

नियम 176 : 

  • महत्त्वपूर्ण विषयों पर अल्पकालिक चर्चा की सुविधा प्रदान करता है, जो आमतौर पर ढाई घंटे से अधिक नहीं चलती। 
  • नियम 176 के लिये किसी औपचारिक प्रस्ताव या मतदान की आवश्यकता नहीं है; सांसद इस मुद्दे पर संक्षिप्त वक्तव्य दे सकते हैं। 
  • संबंधित मंत्री संक्षिप्त उत्तर देते हैं तथा अन्य सांसद सभापति की पूर्व अनुमति से इसमें भाग ले सकते हैं। 
  • अध्यक्ष यह सुनिश्चित करने के लिये कि चर्चा संक्षिप्त रहे, भाषणों के लिये समय-सीमा निर्धारित कर सकते हैं।
  • नियम 176 के तहत चर्चा का निर्धारण सदन के नेता या विधान परिषद के नेता के परामर्श से किया जाता है।
  • नियम 176 समसामयिक विषयों पर त्वरित चर्चा के लिये स्थापित किया गया है और यह नियम 267 की अपेक्षा कम औपचारिक प्रक्रिया है।

नियम 267 और नियम 176 के बीच मुख्य अंतर : 

 

  • उद्देश्य: नियम 267 का उपयोग उन मामलों पर चर्चा करने के लिये किया जाता है, जो अत्यावश्यक होते हैं और जिनके लिये वर्तमान नियमों को निलंबित करने की आवश्यकता होती है। वहीं, नियम 176 महत्त्वपूर्ण विषयों पर संक्षिप्त और अनुसूचित चर्चा के लिये है, जो तत्काल अत्यावश्यक नहीं होते।
  • प्रक्रिया: नियम 267 में नियमों को निलंबित करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है, जिसके लिये सांसदों को सभापति से अनुमति प्राप्त करनी होती है। वहीं, नियम 176 में कोई औपचारिक प्रस्ताव या मतदान की आवश्यकता नहीं होती और यह अधिक अनौपचारिक तरीके से संचालित होता है।
  • उपयोग की बारंबारता: नियम 267 का उपयोग पिछले कुछ वर्षों में काफी सीमित रहा है, 1990 से लेकर अब तक इसका उपयोग केवल 11 बार किया गया है, जबकि नियम 176 का उपयोग राज्य सभा में त्वरित चर्चा के लिये नियमित रूप से किया जाता है।