रॉलेट एक्ट एवं जलियाँवाला बाग नरसंहार
इतिहास
15-Nov-2024
रौलेट एक्ट 1919
- यह भारत रक्षा विनियमन अधिनियम, 1915 का विस्तार था।
- इसे आधिकारिक तौर पर अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम कहा गया।
- यह भारतीय लोगों की देशद्रोही साजिश की जाँच के लिये ब्रिटिश न्यायाधीश सिडनी रौलेट की अध्यक्षता में रौलेट आयोग की सिफारिश पर आधारित था।
- वर्ष 1919 में इंपीरियल विधान परिषद द्वारा अधिनियमित।
- इसने ब्रिटिश सरकार को आतंकवादी गतिविधियों के संदिग्ध किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार दिया।
- इसने सरकार को ऐसे लोगों को बिना मुकदमा चलाए 2 साल तक हिरासत में रखने का अधिकार भी दिया
- इसने राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं पर बिना जूरी के मुकदमा चलाने या यहाँ तक कि बिना सुनवाई के जेल में डालने की अनुमति दे दी।
- इसने पुलिस को बिना वारंट के किसी स्थान की तलाशी लेने का अधिकार दिया।
- इसने प्रेस की स्वतंत्रता पर भी कड़े प्रतिबंध लगा दिये।
- यह अधिनियम परिषद के भारतीय सदस्यों के सर्वसम्मत विरोध के बावजूद पारित किया गया, जिनमें से सभी ने विरोध में त्याग-पत्र दे दिया था।
- ये सदस्य थे मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय और मज़हर उल हक।
- इस अधिनियम के माध्यम से, भाषण और सभा की स्वतंत्रता पर युद्धकालीन प्रतिबंध भी पुनः लगा दिये गये।
रौलट सत्याग्रह
- इस अधिनियम के प्रतिक्रियास्वरूप गांधीजी ने 6 अप्रैल, 1919 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया ।
- गांधीजी ने एक सत्याग्रह सभा का आयोजन किया और होम रूल लीग तथा पैन इस्लामिस्टों के युवा सदस्यों को इसमें शामिल किया।
- जब कुछ प्रांतों, विशेषकर पंजाब में दंगे भड़क उठे, जहाँ स्थिति गंभीर थी, तो गांधीजी ने आंदोलन रद्द कर दिया।
- ब्रिटिश सरकार का प्राथमिक उद्देश्य देश में बढ़ते राष्ट्रवादी आंदोलन को दबाना था।
- जब यह कानून लागू हुआ, तो विरोध अत्यंत बढ़ गया और स्थिति को नियंत्रित करने के लिये पंजाब में सेना को तैनात करना पड़ा।
- दो लोकप्रिय कॉन्ग्रेसी नेता सत्यपाल और डॉ. सैफुद्दीन किचलू को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड
- पंजाब में स्थिति चिंताजनक थी क्योंकि वहां रौलेट एक्ट के विरुद्ध दंगे और विरोध प्रदर्शन हो रहे थे।
- पंजाब में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया, जिसका अर्थ था कि एक स्थान पर 4 से अधिक लोगों का एकत्र होना गैरकानूनी हो गया।
- उस समय पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ'डायर थे और लॉर्ड चेम्सफोर्ड भारत के वायसराय थे।
- 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन जलियाँवाला बाग में अहिंसक प्रदर्शनकारियों की भीड़ बैसाखी मनाने के लिये एकत्र हुई थी।
- जनरल रेजिनाल्ड डायर अपने सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचे और बगीचे के एकमात्र संकीर्ण प्रवेश द्वार को बंद कर दिया।
- फिर, बिना किसी चेतावनी के, उन्होंने अपने सैनिकों को निहत्थे भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें बच्चे भी शामिल थे।
- इस अंधाधुंध गोलीबारी में लगभग एक हज़ार लोग मारे गए और अनेक घायल हो गए।
- यह त्रासदी भारतीयों के लिये एक बड़ा झटका थी तथा इसने ब्रिटिश न्याय प्रणाली में उनकी आस्था को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
- राष्ट्रीय नेताओं ने इस कृत्य और डायर की स्पष्ट रूप से निंदा की।
- इस नरसंहार के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दी और गांधीजी ने अपनी उपाधि 'कैसर-ए-हिंद' त्याग दी, जो उन्हें दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध के दौरान उनकी सेवाओं के लिये अंग्रेज़ों द्वारा प्रदान की गई थी।
- बाद में उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर की हत्या कर दी, जिसने इस क्रूर हमले की अध्यक्षता की थी।
- उधम सिंह को उनके कृत्य के लिये 1940 में फाँसी दे दी गई।
हंटर समिति
- भारत के विदेश मंत्री एडविन मोंटेगू ने एक जाँच समिति के गठन का आदेश दिया।
- अक्तूबर 1919 में भारत सरकार ने डिसऑर्डर इन्क्वायरी कमेटी के गठन की घोषणा की, जिसे हंटर समिति के नाम से जाना गया।
- समिति का नाम स्कॉटलैंड के तत्कालीन सॉलिसिटर जनरल लॉर्ड विलियम हंटर के नाम पर रखा गया था।
- अन्य उल्लेखनीय सदस्य सर चिमनलाल सेटावद, पंडित जगत नारायण और सरदार साहिबज़ादा सुल्तान अहमद खान थे।
- समिति ने कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की, क्योंकि डायर के कृत्यों को उसके विभिन्न वरिष्ठों ने समर्थन दिया था।
- इसके अलावा, हंटर समिति द्वारा अपनी कार्यवाही शुरू करने से पहले, सरकार ने अपने अधिकारियों की सुरक्षा के लिये एक क्षतिपूर्ति अधिनियम पारित किया था।