भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भारतीय राजनीति
01-Nov-2024
- यह एक दस्तावेज़ का परिचयात्मक वक्तव्य है जो इसके दर्शन और उद्देश्यों को स्पष्ट करता है।
- एक संविधान अपने निर्माताओं की मंशा, इसके निर्माण के पीछे के इतिहास, राष्ट्र के मूल मूल्यों और सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करता है।
- भारतीय प्रस्तावना मूलतः निम्नलिखित का विचार देती है:
- संविधान का स्रोत
- भारतीय राज्य की प्रकृति
- इसके उद्देश्यों का विवरण
- इसके अपनाने की तिथि
- ये आदर्श जवाहरलाल नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव द्वारा निर्धारित किये गये थे, जिसे 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था ।
- इसे 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ
- यह अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से उत्पन्न हुई है।
- यद्यपि यह न्यायालय में लागू नहीं किया जा सकता, लेकिन यह संविधान के उद्देश्यों को बताता है तथा जब भाषा अस्पष्ट हो तो अनुच्छेदों की व्याख्या के दौरान सहायता के रूप में कार्य करता है।
- संबंधित मामले
- बेरुबारी मामला, 1960: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 'प्रस्तावना निर्माताओं के मस्तिष्क को खोलने की कुंजी है', लेकिन इसे संविधान का हिस्सा नहीं माना जा सकता। इसलिये, यह न्यायालय में लागू नहीं किया जा सकता।
- केशवानंद भारती मामला, 1973: यह किसी प्रतिबंध या निषेध का सर्वोच्च शक्ति अथवा स्रोत नहीं है, लेकिन संविधान के कानूनों और प्रावधानों की व्याख्या में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- LIC ऑफ इंडिया मामला, 1995: सर्वोच्च न्यायालय ने पुनः माना कि प्रस्तावना संविधान का अभिन्न अंग है।
- 42वाँ संशोधन अधिनियम, 1976
- केशवानंद भारती मामले के फैसले के बाद यह स्वीकार किया गया कि यह भारतीय संविधान का हिस्सा है।
- संविधान के एक भाग के रूप में, इसमें संविधान के अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधन किया जा सकता है, बशर्ते कि इसकी मूल विशेषताओं में कोई संशोधन न किया जाए।
- अब तक, प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है, जिसमें प्रस्तावना में तीन नए शब्द - समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए हैं।