एक राष्ट्र एक चुनाव
भारतीय राजनीति
18-Dec-2024
चर्चा में क्यों?
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान विधि मंत्री द्वारा लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने के लिये दो विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किये गए।
एक राष्ट्र एक चुनाव (ONOE) के बारे में: ONOE भारत में लोकसभा (राष्ट्रीय) और सभी राज्य विधानसभाओं और संभवतः स्थानीय निकाय चुनावों (नगर पालिकाओं, पंचायतों) के लिये एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव है।
उद्देश्य: इसका उद्देश्य विभिन्न सरकारी स्तरों पर चुनावी चक्रों को संरेखित करना है, जिससे चुनावों की आवृत्ति कम हो सके।
ऐतिहासिक संदर्भ: भारत में 1951 से 1967 तक समकालिक चुनाव होते रहे, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और विधानसभाओं के शीघ्र विघटन के कारण यह प्रथा समाप्त हो गई।
समितियों की अनुशंसाएँ
- उच्च स्तरीय समिति (कोविंद समिति)
- चरणबद्ध कार्यान्वयन: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं से शुरुआत करें, उसके बाद स्थानीय निकाय चुनाव करवाएँ।
- संवैधानिक संशोधन: एकल मतदाता सूची और शीघ्र विघटन के प्रावधानों सहित परिवर्तनों का प्रस्ताव।
- पहले की रिपोर्ट
विधि आयोग (2018) और संसदीय समिति (2015) ने समकालिक चुनावों के लाभों पर ज़ोर दिया, लेकिन तार्किक और संवैधानिक चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE) के लाभ
- लागत में कमी: एक साथ चुनाव कराने से कई चुनावों पर खर्च होने वाले संसाधनों में कमी आती है।
- शासन निरंतरता: कम चुनाव नीतिगत निष्क्रियता और भ्रष्टाचार को कम करते हैं।
- व्यवधानों में कमी: कम चुनाव होने से स्कूलों सहित दैनिक जीवन में व्यवधान कम हो जाता है।
- मतदाता भागीदारी में वृद्धि: कम चुनावों से मतदाता थकान कम हो सकती है तथा मतदान प्रतिशत बढ़ सकता है।
- आर्थिक विकास: एक साथ चुनाव होने से सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि हो सकती है और काले धन में कमी आ सकती है।
- बेहतर चुनाव निगरानी: कम चुनाव निगरानी को अधिक कुशल बनाते हैं।
- प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि: चुनावों पर व्यय किये गये संसाधनों का बेहतर उपयोग शासन के लिये किया जा सकता है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव की चुनौतियाँ
- संघवाद के लिये खतरा: राष्ट्रीय मुद्दे स्थानीय चिंताओं पर हावी हो सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।
- तार्किक चुनौतियाँ: एक साथ चुनाव आयोजित करने के लिये महत्त्वपूर्ण संसाधनों और तैयारी की आवश्यकता होती है।
- संवैधानिक चिंताएँ: संविधान और चुनाव कानूनों में बड़े संशोधन की आवश्यकता है।
- शासन शून्यता: विधानसभाओं के शीघ्र विघटन से राष्ट्रपति शासन लग सकता है, जिससे अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
- कम जवाबदेही: कम चुनावों से राजनीतिक जवाबदेही कम हो सकती है।
- चुनाव मशीनरी पर दबाव: एक साथ चुनाव कराने से चुनाव आयोग पर दबाव बढ़ सकता है।
आगे की राह
- राष्ट्रीय संवाद: राजनीतिक दलों और जनता से समर्थन और फीडबैक प्राप्त करना।
- क्रमिक कार्यान्वयन: राष्ट्रव्यापी रोलआउट से पहले पायलट कार्यक्रमों के साथ शुरुआत करना।
- कानूनी और संवैधानिक संशोधन: ONOE को समर्थन देने के लिये आवश्यक कानूनी परिवर्तन करना।
- संघवाद की रक्षा करना: सुनिश्चित करना कि स्थानीय मुद्दों और क्षेत्रीय दलों की अनदेखी न की जाए।
- चुनाव आयोग को सुदृढ़ बनाना: एक साथ चुनाव कराने के लिये EVM सहित संसाधनों में सुधार करना।
- सार्वजनिक परामर्श: नागरिकों को ONOE के निहितार्थों के संदर्भ में शिक्षित करना।