उपराष्ट्रपति का कार्यालय

भारतीय राजनीति


 11-Dec-2024

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में राज्यसभा में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है जिसमें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को सदन के सभापति के पद से हटाने की मांग की गई है। 

परिचय 

  • उपराष्ट्रपति भारत में दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण पद है और यह राष्ट्रपति के बाद आधिकारिक प्राथमिकता क्रम में दूसरे स्थान पर आता है।
  • अमेरिकी उपराष्ट्रपति के समान, उनकी मुख्य ज़िम्मेदारी राज्यसभा की अध्यक्षता करना और कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति के कार्यों का पालन करना है।

चुनाव प्रक्रिया 

  • अप्रत्यक्ष चुनाव: राष्ट्रपति की तरह, उपराष्ट्रपति का चुनाव भी संसद के दोनों सदनों (निर्वाचित और मनोनीत सदस्य) के सदस्यों वाले निर्वाचक मंडल द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। 
  • राष्ट्रपति चुनाव से अंतर: 
    • उपराष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में राष्ट्रपति के निर्वाचन के विपरीत संसद के मनोनीत सदस्य शामिल होते हैं। 
    • राज्य विधानसभाएँ उपराष्ट्रपति के चुनाव में भाग नहीं लेती हैं, क्योंकि उनकी भूमिका मुख्य रूप से राज्य स्तरीय शासन से संबंधित होती है, न कि राज्यों की संघीय परिषद (राज्यसभा) से। 

भारत के उपराष्ट्रपति के लिये अहर्ताएँ  

उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने के लिये उम्मीदवार को निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना होगा: 

  1. नागरिकता: भारत का नागरिक होना चाहिये। 
  2. न्यूनतम आयु: कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिये। 
  3. सदस्यता योग्यता: राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के लिये अर्हता प्राप्त होनी चाहिये। 
  4. लाभ के पद पर प्रतिबंध: संघ या राज्य सरकार, स्थानीय प्राधिकरण या किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के अधीन लाभ का कोई पद धारण नहीं करना चाहिये।

भारत के उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया 

  • भारत के उपराष्ट्रपति, जो राज्यसभा के सभापति के रूप में भी कार्य करते हैं, को संविधान में उल्लिखित एक विशिष्ट प्रक्रिया के माध्यम से हटाया जा सकता है। इसमें शामिल हैं: 
    • राज्यसभा में प्रस्ताव प्रस्तुत करना: हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, लोकसभा में नहीं। 
    • अग्रिम सूचना: प्रस्ताव प्रस्तुत करने से पहले कम से कम 14 दिन पूर्व सूचना दी जानी चाहिये।                                                                                                                 
    • बहुमत आवश्यक:  
      • प्रस्ताव को राज्यसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के प्रभावी बहुमत से पारित किया जाना चाहिये। 
      • प्रभावी बहुमत एक विशेष प्रकार का बहुमत है, जिसे उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या के आधार पर, रिक्तियों या अनुपस्थित सदस्यों को छोड़कर, गणना किया जाता है।
    • लोकसभा द्वारा अनुमोदन: राज्यसभा द्वारा पारित होने के पश्चात, प्रस्ताव को लोकसभा में साधारण बहुमत से स्वीकृति प्राप्त करनी चाहिये।