जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति
पर्यावरण और पारिस्थितिकी
06-Nov-2024
जैव ईंधन:
- ये हाइड्रोकार्बन ईंधन हैं ।
- इनका उत्पादन कार्बनिक पदार्थों जैसे पौधों, कृषि और घरेलू अपशिष्ट आदि से किया जाता है।
- ये ठोस, तरल या गैसीय प्रकृति के हो सकते हैं।
- ठोस: लकड़ी, सूखे पौधे सामग्री, और खाद।
- तरल: बायोइथेनॉल और बायोडीज़ल।
- गैसीय: बायोगैस
- फायदे:
- ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत।
- इससे प्रदूषण कम होता है।
- औद्योगिक रूप से उत्पादित किया जा सकता है।
- इसका उपयोग परिवहन, स्थिर , पोर्टेबल और अन्य अनुप्रयोगों के लिये डीज़ल, पेट्रोल या अन्य जीवाश्म ईंधन के स्थान पर या इसके अतिरिक्त किया जा सकता है ।
- इनका उपयोग ऊष्मा और विद्युत उत्पन्न करने के लिये भी किया जा सकता है।
- नीति (Policy) की मूल बातें
- लॉन्च: वर्ष 2018
- मंत्रालय: भारत में जैव ईंधन को बढ़ावा देने के लिये नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय।
- नीति का विज़न और लक्ष्य
- घरेलू उत्पादन में वृद्धि के माध्यम द्वारा इथेनॉल/बायोडीज़ल की आपूर्ति को सुदृढ़ करना।
- द्वितीय पीढ़ी (2G) जैव रिफाइनरियों की स्थापना।
- जैव ईंधन के लिये नए फीडस्टॉक का विकास।
- जैव ईंधन में रूपांतरण के लिये नई प्रौद्योगिकियों का विकास।
- जैव ईंधन के लिये उपयुक्त वातावरण का निर्माण और मुख्य ईंधनों के साथ उसका एकीकरण।
टिप्पणी:
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नीति की मुख्य विशेषताएँ
- नीति जैव ईंधन को "मूल जैव ईंधन" के रूप में वर्गीकृत करती है।
- प्रथम पीढ़ी के बायोइथेनॉल और बायोडीज़ल तथा उन्नत जैव ईंधन
- इनका उत्पादन पारंपरिक तकनीक का उपयोग करके चीनी, स्टार्च, वनस्पति तेल या पशु वसा जैसे खाद्य स्रोतों से किया जाता है।
- इनमें बायोएल्कोहल, बायोडीज़ल, वनस्पति तेल, बायोईथर और बायोगैस शामिल हैं।
- प्रथम पीढ़ी के बायोइथेनॉल और बायोडीज़ल तथा उन्नत जैव ईंधन
- दूसरी पीढ़ी के इथेनॉल, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन तक
- इनका उत्पादन गैर-खाद्य फसलों या खाद्य फसलों के उन भागों से किया जाता है जो खाने योग्य नहीं होते और अपशिष्ट माने जाते हैं, जैसे तने, भूसी, लकड़ी के टुकड़े, तथा फलों के छिलके और छिलके।
- ऐसे ईंधनों के उत्पादन के लिये तापरासायनिक अभिक्रियाओं या जैवरासायनिक रूपांतरण प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।
- इनमें सेल्यूलोज इथेनॉल और बायोडीज़ल शामिल हैं।
- प्रथम पीढ़ी के जैव ईंधनों की तुलना में वे कम ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
- तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन, जैव-सीएनजी आदि।
- ये शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों से उत्पन्न होते हैं।
- इनमें ब्यूटेनॉल भी शामिल है।
- शैवाल जैसे सूक्ष्म जीवों को खाद्य उत्पादन के लिये अनुपयुक्त भूमि और जल का उपयोग करके उगाया जा सकता है, जिससे पहले से ही समाप्त हो रहे जल स्रोतों पर दबाव कम हो जाएगा।
- चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन
- इनका उत्पादन उन फसलों से किया जाता है जिन्हें उच्च मात्रा में कार्बन ग्रहण करने के लिये आनुवंशिक रूप से इंजीनियर किया जाता है तथा इन्हें बायोमास के रूप में उगाया और काटा जाता है।
- इसके बाद दूसरी पीढ़ी की तकनीक का उपयोग करके फसलों को ईंधन में परिवर्तित किया जाता है।
- ईंधन को पहले से जलाया जाता है और कार्बन को पकड़ लिया जाता है। फिर कार्बन को भू-संग्रहित किया जाता है, जिसका अर्थ है कि कार्बन को समाप्त हो चुके तेल या गैस क्षेत्रों या खनन न किये जा सकने वाले कोयला सीमों में संग्रहीत किया जाता है।
- इनमें से कुछ ईंधनों को कार्बन-नकारात्मक माना जाता है, क्योंकि इनके उत्पादन से पर्यावरण से कार्बन बाहर निकल जाता है।
- यह गन्ने के रस, चीनी युक्त सामग्री जैसे चुकंदर, मीठी ज्वार आदि के उपयोग की अनुमति देकर इथेनॉल उत्पादन के लिये कच्चे माल के दायरे का विस्तार करता है।
- राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति के अनुमोदन से पेट्रोल के साथ मिश्रण हेतु इथेनॉल के उत्पादन हेतु अधिशेष खाद्यान्न के उपयोग की अनुमति देता है।
- 2G इथेनॉल जैव रिफाइनरियों के लिये 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपए की व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण योजना, अतिरिक्त कर प्रोत्साहन के अलावा 1G जैव ईंधन की तुलना में उच्च खरीद मूल्य।
- यह गैर-खाद्य तिलहनों, प्रयुक्त खाना पकाने के तेल, अल्प अवधि वाली फसलों से जैव-डीजल उत्पादन के लिये आपूर्ति शृंखला तंत्र की स्थापना को प्रोत्साहित करता है।