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भारतीय राजनीति

लोकपाल और लोकायुक्त

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 16-Sep-2024

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  • अधिनियम: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013   
  • इसे भारत में भ्रष्टाचार से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल तथा राज्य स्तर पर लोकायुक्त नामक एक स्वतंत्र प्राधिकरण की स्थापना करके अधिनियमित किया गया था। 
  • ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे के वैधानिक निकाय हैं। 
  • विकास 
    • लोकपाल की अवधारणा की शुरुआत वर्ष 1809 में स्वीडन में हुई थी। 
    • न्यूज़ीलैंड और नॉर्वे ने वर्ष 1962 में इस प्रणाली को अपनाया। 
    • 1960 के दशक के प्रारंभ में, पूर्व कानून मंत्री अशोक कुमार सेन संसद में संवैधानिक लोकपाल का विचार पेश करने वाले पहले भारतीय थे। 
    • डॉ. एल.एम. सिंघवी ने  वर्ष 1963 में लोकपाल और लोकायुक्त शब्द गढ़े थे। 
    • वर्ष 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने दो स्वतंत्र प्राधिकरणों की स्थापना के संबंध में सिफारिशें पारित कीं। 
    • लोकपाल विधेयक 1968 में लोकसभा में पारित हुआ था, लेकिन लोकसभा भंग होने के कारण यह निरस्त हो गया। तब से, यह विधेयक कई बार लोकसभा में पेश किया गया, लेकिन निरस्त हो गया।  
    • अप्रैल 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) आंदोलन ने एक स्वतंत्र भ्रष्टाचार विरोधी निकाय की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2013 में लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक प्रस्तुत किया गया तथा अंततः पारित हुआ। 
    • इसे 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई तथा यह 16 जनवरी 2014 को लागू हुआ। 
  • उद्देश्य: राजनेताओं, नौकरशाहों और अन्य सरकारी कर्मचारियों सहित सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों का समाधान करना तथा सार्वजनिक शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना। 
  • संघटन 
    • लोकपाल नौ सदस्यीय निकाय है, जिसमें एक अध्यक्ष (जो भारत का वर्तमान या पूर्व मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश या भ्रष्टाचार विरोधी विशेषज्ञता वाला कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकता है) और अधिकतम 8 अन्य सदस्य होते हैं। 
    • कम-से-कम 50% सदस्य न्यायिक सदस्य होने चाहिये तथा शेष सदस्य लोक प्रशासन, कानून और भ्रष्टाचार विरोधी जैसे विभिन्न क्षेत्रों से होने चाहिये। 
  • क्षेत्राधिकार 
    • लोकपाल का अधिकार क्षेत्र प्रधानमंत्री (कुछ सीमाओं के साथ), केंद्रीय मंत्रियों, संसद सदस्यों और उच्च-स्तरीय सरकारी अधिकारियों तक है। 
    • लोकपाल सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के कर्मचारियों और अन्य लोक सेवकों के विरुद्ध शिकायतों की भी जाँच कर सकता है, यदि उन पर भ्रष्टाचार का आरोप हो। 
  • इसमें भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों से सीधे पूछताछ, जाँच और मुकदमा चलाने की शक्ति है। 
  • यह कार्यकारी नियंत्रण से मुक्त स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है तथा निष्पक्ष जाँच सुनिश्चित करता है। 
  • यह भ्रष्ट गतिविधियों की सूचना देने वाले मुखबिरों के लिये सुरक्षा उपाय प्रदान करता है तथा उनकी सुरक्षा और गुमनामी सुनिश्चित करता है। 
  • भारत के प्रथम लोकपाल: न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष  
  • भारत के वर्तमान लोकपाल: न्यायमूर्ति अजय माणिकराव खानविलकर