न्यायाधीशों पर महाभियोग

भारतीय राजनीति


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 17-Dec-2024

चर्चा में क्यों? 
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है।  

भारत में न्यायाधीशों के लिये महाभियोग प्रक्रिया क्या है? 

महाभियोग का मतलब है न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया, जिसका उद्देश्य न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए न्यायिक जवाबदेही सुनिश्चित करना है। संविधान में इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन यह अनुच्छेद 124(4) और 218 के प्रावधानों का पालन करता है।  

संवैधानिक सुरक्षा उपाय और महाभियोग के आधार  

  • अनुच्छेद 124(4): सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदच्युति की प्रक्रिया निर्धारित करता है, जो अनुच्छेद 218 के अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर लागू होती है।  
  • महाभियोग के आधार में “सिद्ध दुर्व्यवहार” या “अक्षमता” शामिल हैं।  

महाभियोग प्रक्रिया के चरण  

  1. प्रारंभ: इस प्रस्ताव को 100 लोकसभा सदस्यों या 50 राज्यसभा सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है।
  2. जाँच समिति: तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं।  
  3. समिति की रिपोर्ट और संसदीय चर्चा: यदि दोषी पाया जाता है, तो रिपोर्ट पर संसद में चर्चा होती है। दोनों सदनों को विशेष बहुमत (कुल सदस्यों का बहुमत और उपस्थित लोगों का दो-तिहाई) के साथ प्रस्ताव को मंज़ूरी देनी चाहिये।  
  4. राष्ट्रपति द्वारा अंतिम निष्कासन: यदि प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो उसे अंतिम निष्कासन के लिये राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।  

निष्कर्ष

  • महाभियोग प्रक्रिया न्यायिक जवाबदेही को बनाए रखने, न्यायपालिका की अखंडता को सुनिश्चित करने और स्वतंत्रता तथा सार्वजनिक विश्वास के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।