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भारतीय राजनीति

वन अधिकार अधिनियम, 2006

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 16-Sep-2024

  • इसे अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के नाम से भी जाना जाता है। 
  • उद्देश्य: वन भूमि और संसाधनों पर स्वदेशी और पारंपरिक वन-निवासी समुदायों के अधिकारों को मान्यता देना तथा उन्हें सुरक्षित करना। 
  • इसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को वन भूमि और संसाधनों के स्वामित्व, प्रबंधन एवं उनके आजीविका के लिये उपयोग के कानूनी अधिकार प्रदान करके ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना है, साथ ही सतत् संरक्षण को बढ़ावा देना है। 
  • पात्रता मापदंड: 
    • अनुसूचित जनजाति (ST): वे आदिवासी समुदाय जो 13 दिसंबर 2005 से पहले से वनों में रह रहे हैं, पात्र हैं। 
    • अन्य पारंपरिक वन निवासी (Other Traditional Forest Dwellers- OTFD): गैर-आदिवासी वनवासी जो 13 दिसंबर 2005 से पहले कम-से-कम 75 वर्षों तक वनों में रह रहे हैं और उन पर निर्भर हैं, वे इस अधिनियम के तहत अधिकारों का दावा कर सकते हैं।
  • अधिकारों के प्रकार: 
    • भूमि अधिकार: कृषि या निवास के लिये अधिगृहीत भूमि पर स्वामित्व अधिकार (4 हेक्टेयर तक)। 
    • उपयोग अधिकार: औषधीय पौधों, चारा, ईंधन और चरने वाले पशुओं सहित लघु वन उपज एकत्र करने का अधिकार। 
    • प्रबंधन अधिकार: वनों, जैवविविधता और सांस्कृतिक विरासत के प्रबंधन तथा संरक्षण का अधिकार। 
    • निष्कासन से मुक्ति: इस अधिनियम के तहत उनके अधिकारों को मान्यता दिये बिना वन भूमि से निष्कासन के विरुद्ध संरक्षण। 
  • कार्यान्वयन: ग्राम सभा [ अनुच्छेद-243 (b) ] वन भूमि से उनकी आवश्यकताओं की सीमा का आकलन करने के बाद सीमांत और आदिवासी समुदायों को अधिकार प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है। 
  • यह संविधान की 5वीं और 6वीं अनुसूचियों के अधिदेश का विस्तार करता है, जो स्थानीय समुदायों के भूमि या वनों पर उनके दावों की रक्षा करता है।  
  • वन भारतीय संविधान की 'राज्य सूची' में उल्लिखित विषय है।