26-Feb-2025
प्रवाल भित्ति
पर्यावरण और पारिस्थितिकी
प्रवाल भित्तियाँ: एक महत्त्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र
- प्रवाल भित्तियाँ समुद्र में रहने वाले पॉलीप्स द्वारा निर्मित कठोर कंकालों का समूह होती हैं, जो चट्टानों या एटोल का निर्माण करती हैं।
- हज़ारों सूक्ष्म अकशेरुकी जीवों से बना है जिन्हें पॉलीप्स कहा जाता है।
- वे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में आधार प्रजातियाँ और प्रमुख प्राथमिक उत्पादक हैं।
- प्रवाल भित्तियाँ जैव विविधता के हॉटस्पॉट हैं, जो समुद्र तल के 1% से भी कम क्षेत्र को कवर करने के बावजूद 25% से अधिक समुद्री जीवन को सहारा देती हैं।
प्रवाल भित्ति
प्रवाल भित्तियों का निर्माण
- प्रवाल लार्वा समुद्रतट के निकट तलछटी चट्टानों या कठोर सतहों पर चिपक जाते हैं।
- अवसादन, संहनन, सीमेंटीकरण और ठोसीकरण जैसी प्रक्रियाएँ चट्टान निर्माण में सहायता करती हैं।
भारत में प्रवाल भित्तियों के प्रकार
- फ्रिंजिंग रीफ्स (Fringing Reefs): ये समुद्रतट के निकट विकसित होती हैं तथा उथले लैगूनों द्वारा अलग होती हैं।
- बैरियर रीफ्स (Barrier Reefs): ये समुद्र तट के समानांतर स्थित होती हैं, जिनके बीच में गहरे लैगून होते हैं।
- एटोल (Atolls): मध्य महासागरीय कटकों पर निर्मित गोलाकार चट्टानें, जो उथले लैगून को घेरती हैं।
प्रवाल भित्तियों के विकास के लिये परिस्थितियाँ
- सूर्य का प्रकाश: प्रवालों के अंदर रहने वाले ज़ूज़ैंथेला (शैवाल) के लिये आवश्यक, जो आमतौर पर 50 मीटर से कम गहरे पानी में पाए जाते हैं।
- स्वच्छ जल: सूर्य के प्रकाश के प्रवेश के लिये आवश्यक; तलछट और प्लवक विकास में बाधा डालते हैं।
- गर्म जल: 20-32 डिग्री सेल्सियस तापमान में पनपता है।
- स्वच्छ जल: प्रदूषक और तलछट प्रवालों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- लवणीय जल: अलवणीय जल वाले स्थानों, जैसे नदी के संगम पर, जीवित रहना संभव नहीं है।
प्रवाल भित्तियों का महत्त्व
- प्रति इकाई क्षेत्र में उच्चतम समुद्री जैव विविधता को समर्थन प्रदान करना।
- चिकित्सा उपचार में उपयोग किये जाने वाले यौगिकों के साथ “दवा पेटी (Medicine Chests)” के रूप में कार्य करना।
- मत्स्य पालन, पर्यटन और आजीविका को बनाए रखना।
- लहरों, तूफानों और बाढ़ को रोककर समुद्रतटों की सुरक्षा करना।
- मालदीव और तुवालु जैसे द्वीपीय देशों के लिये आवश्यक।
प्रवाल विरंजन
- समुद्र के बढ़ते तापमान के कारण प्रवालों से शैवाल निकलने लगते हैं और वे सफेद हो जाते हैं।
- विरंजन से प्रवाल संवेदनशील तो होते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे मर जाएँ।
- शीत तनाव से भी प्रवाल मृत्यु हो सकती है।
कोरल ब्लीचिंग (प्रवाल विरंजन) को कम करना
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाना: वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित रखना।
- समुद्री संरक्षण: संरक्षित समुद्री क्षेत्रों की स्थापना और प्रबंधन करना।
- पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली: कृत्रिम संरचनाओं और सहायक प्रजनन तकनीकों का उपयोग करना।
- सतत मत्स्य प्रबंधन: नियंत्रित मत्स्य पालन के लिये नीतियों को लागू करना।
- वैज्ञानिक अनुसंधान: महासागरीय तापमान वृद्धि की निगरानी और अध्ययन में निवेश करना।