केंद्र सरकार ने 5 नई शास्त्रीय भाषाओं को मंजूरी दी

भारतीय राजनीति


 07-Oct-2024

चर्चा में क्यों?  

केंद्र ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है, जिससे उनकी समृद्ध विरासत को मान्यता मिली है। इससे पहले तमिल और संस्कृत समेत छह भाषाओं को यह मान्यता मिली थी, जो संविधान की 8वीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।  

शास्त्रीय भाषा क्या है?  

  • शब्द "भारतीय शास्त्रीय भाषाएँ," "शास्त्रीय भाषा" या "सेमोझी" उन भाषाओं के समूह को संदर्भित करते हैं जिनका एक लंबा इतिहास और एक समृद्ध, अद्वितीय और विशिष्ट साहित्यिक विरासत है।  
  • वर्ष 2004 में, भारत सरकार ने उनकी प्राचीन विरासत को स्वीकार करने और संरक्षित करने के लिये भाषाओं को "शास्त्रीय भाषा" के रूप में नामित करना शुरू किया।  
  • इसकी स्थापना भाषा विशेषज्ञ समिति और संस्कृति मंत्रालय द्वारा की गई थी।  
  • मानदंड   
    • उच्च पुरातनता: प्रारंभिक ग्रंथ और 1,500-2,000 वर्षों तक का लिखित इतिहास।   
    • प्राचीन साहित्य:  प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का संग्रह जिसे पीढ़ियों द्वारा मूल्यवान विरासत माना जाता है।   
    • ज्ञान ग्रन्थ: किसी अन्य भाषा समुदाय से उधार न ली गई एक मौलिक साहित्यिक परंपरा की उपस्थिति।   
    • विशिष्ट विकास:  शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक भाषा से भिन्न होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।

शास्त्रीय भाषा  

घोषणा का वर्ष  

तामिल  

2004  

संस्कृत   

2005  

तेलुगू  

2008  

कन्नडा  

2008  

मलयालम  

2013  

ओडिया  

2014  

मराठी  

2024  

पाली

2024  

प्राकृत   

2024  

असमिया  

2024  

बंगाली  

2024 

  • 1 नवंबर 2004 को जारी एक प्रस्ताव के अनुसार -   
    • शास्त्रीय भारतीय भाषाओं के अनुसंधान, शिक्षण या संवर्द्धन में उल्लेखनीय योगदान देने वाले विद्वानों को प्रतिवर्ष दो अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार दिये जाते हैं।    
      • राष्ट्रपति द्वारा सम्मान प्रमाण पत्र पुरस्कार
      • महर्षि बदरायण सम्मान पुरस्कार।  
    • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) केंद्रीय विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में शास्त्रीय भारतीय भाषाओं पर ध्यान केंद्रित करने के लिये व्यावसायिक पीठों के निर्माण का समर्थन करता है।   
    • इन भाषाई समृद्धियों को सुरक्षित रखने और बढ़ावा देने के लिये, सरकार ने मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (Central Institute of Indian Languages- CIIL) में शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की।