भोपाल गैस त्रासदी
पर्यावरण और पारिस्थितिकी
13-Jan-2025
भोपाल गैस त्रासदी 1984
भोपाल गैस त्रासदी को इतिहास की सबसे भयानक औद्योगिक आपदाओं में से एक माना जाता है। यह 2-3 दिसंबर 1984 की रात को मध्य प्रदेश के भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) के कीटनाशक संयंत्र में हुई थी।
महत्त्वपूर्ण तथ्य
- गैस रिसाव
- UCIL संयंत्र से लगभग 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC), जो एक अत्यधिक विषाक्त गैस है, लीक हो गई।
- MIC वायु में 21 भाग प्रति मिलियन (ppm) की सांद्रता पर भी घातक है तथा साँस लेने के कुछ ही मिनटों में मृत्यु का कारण बन सकता है।
- तत्काल प्रभाव
- गैस के संपर्क में आने से हज़ारों लोग और पशु तत्काल मर गये।
- जीवित बचे लोगों को श्वसन, तंत्रिका संबंधी और प्रजनन संबंधी विकारों के साथ-साथ दीर्घकालिक स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ भी हुईं।
- जन्मजात विकृतियाँ
- गैस के संपर्क में आने वाली महिलाओं से जन्मे शिशुओं में जन्मजात विकृतियाँ (जन्म दोष) होने की संभावना काफी अधिक थी।
- इन विसंगतियों में संरचनात्मक और कार्यात्मक विकार शामिल हैं जो जन्म से पूर्व, जन्म के समय या जीवन में बाद में प्रकट हो सकते हैं।
- आपदा पर प्रतिक्रिया
- सर्वोच्च न्यायालय ने पीड़ितों के लिये अधिक मुआवजे की मांग वाली उपचारात्मक याचिका स्वीकार कर ली।
- जन्मजात दोषों के आँकड़ों ने मुआवज़े में वृद्धि की मांग को दृढ़ किया है।
सरकार की प्रतिक्रिया
- सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम (1991) लागू किया गया, जिसके तहत उद्योगों के लिये रासायनिक आपदाओं की स्थिति में क्षतिपूर्ति हेतु बीमा रखना अनिवार्य कर दिया गया।
- इस अधिनियम ने पीड़ितों की सहायता के लिये पर्यावरण राहत कोष के निर्माण में भी योगदान दिया ।
अविरत प्रभाव
- लगभग चार दशक बाद भी, इस त्रासदी के दुष्प्रभाव क्षेत्र के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर जारी हैं।
- यह घटना औद्योगिक कार्यों में लापरवाही के गंभीर परिणामों की चेतावनी देती है।