सर्वोच्च न्यायालय द्वारा न्याय की देवी की नई प्रतिमा का अनावरण

भारतीय राजनीति


 18-Oct-2024

चर्चा में क्यों?  

सर्वोच्च न्यायालय ने न्याय की देवी (लेडी जस्टिस) की नई प्रतिमा का अनावरण किया । प्रतिमा ने अपनी आँखों पर पट्टी हटाकर तलवार की जगह संविधान रखा है। यह प्रतिमा इस विचार को दर्शाती है कि भारतीय कानून न तो अंधा है और न ही दंडात्मक। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ द्वारा किया गया यह परिवर्तन, न्याय और समानता के समकालीन मूल्यों के अनुरूप, अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण एवं मानवीय कानूनी प्रणाली की ओर बदलाव का प्रतीक है।

पुरानी प्रतिमा के बारे में 

  • परंपरागत रूप से, न्याय की देवी (लेडी जस्टिस) को आँखों पर पट्टी बांधे हुए दिखाया जाता है, जो निष्पक्षता का प्रतीक है और इस विचार का प्रतीक है कि न्याय बिना किसी पक्षपात के किया जाना चाहिये, चाहे इसमें शामिल व्यक्तियों की स्थिति या शक्ति कुछ भी हो। 
  • पुराने चित्रण में तलवार शामिल थी, जो अधिकार और गलत कामों को दंडित करने की शक्ति का प्रतीक थी। यह तत्त्व प्रायः न्याय के प्रति दंडात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता था, जो प्रवर्तन और नियंत्रण पर ज़ोर देता था। 
  • औपनिवेशिक प्रभाव: पुरानी प्रतिमा का वस्त्र औपनिवेशिक युग की न्यायिक प्रतीकात्मकता की विरासत को दर्शाता है। 

नई प्रतिमा के बारे में 

  • आँखों पर से पट्टी हटाई गई: यह सामाजिक वास्तविकताओं के प्रति जागरूकता का प्रतिनिधित्व करता है और न्यायिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है। 
  • संविधान तलवार का स्थान लेता है: यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मानव अधिकारों पर ज़ोर देता है, तथा दंड से हटकर संरक्षण और सशक्तिकरण की ओर अग्रसर होता है। 
  • साड़ी पहने आकृति: भारतीय संस्कृति को प्रतिबिंबित करती है और समकालीन भारतीय समाज के साथ प्रतिध्वनित होती है। 
  • सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक: यह औपनिवेशिक विरासत से हटकर अधिक समावेशी न्याय प्रणाली की ओर बदलाव को दर्शाता है। 

दो प्रतिमाओं के बीच समानता 

  • न्याय का तराजू: नई प्रतिमा में इसे बरकरार रखा गया है, जो न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन, निष्पक्षता और समानता का प्रतीक है। 
  • निष्पक्षता का सिद्धांत: दोनों पक्षों के साक्ष्य और तर्कों के आधार पर निष्पक्ष निर्णय पर निरंतर ध्यान केंद्रित करता है।