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इतिहास
लाल बहादुर शास्त्री की 120 वीं जयंती
« »03-Oct-2024
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
- जन्म: लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर 1904 को मुगल सराय, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
- उनकी शुरुआत बहुत ही साधारण थी और जब वह सिर्फ एक वर्ष के थे तब उनके पिता का निधन हो गया।
- नैतिक मूल्य: उनका पालन-पोषण ऐसे वातावरण में हुआ था जहाँ मज़बूत नैतिक मूल्यों पर ज़ोर दिया जाता था।
- शिक्षा: आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद शास्त्री जी ने अपनी शिक्षा जारी रखने का दृढ़ संकल्प किया और वर्ष 1926 में काशी विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
- जाति-आधारित उपनाम: अपने छात्र जीवन के दौरान, उन्होंने सामाजिक बाधाओं को तोड़ने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने के लिये अपना जाति-आधारित उपनाम श्रीवास्तव छोड़ दिया।
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान
- असहयोग आंदोलन पर प्रतिक्रिया: सोलह वर्ष की आयु में, जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन में भाग लेने का आह्वान किया तो उन्होंने तुरंत अपनी पढ़ाई छोड़ने का निर्णय लिया
- नमक सत्याग्रह के लिये समर्थन: वर्ष 1930 में, उन्होंने महात्मा गांधी के दांडी मार्च का सक्रिय रूप से समर्थन किया, जिसमें शाही नमक कानून की अवहेलना की गई थी।
- सक्रिय भागीदारी: उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के लिये स्वयं को समर्पित कर दिया तथा स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न गतिविधियों में भाग लिया।
भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल
- वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे ।
- नीतियों की निरंतरता: उन्होंने नेहरू की समाजवादी आर्थिक नीतियों को बरकरार रखा, तथा केंद्रीय योजना पर ध्यान केंद्रित किया।
- हरित क्रांति फाउंडेशन: खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता के लिये उनके दृष्टिकोण ने भारत में हरित क्रांति के शुरुआती चरणों में योगदान दिया ।
- श्वेत क्रांति के लिये समर्थन: शास्त्री जी ने गुजरात के आनंद में अमूल सहकारी संस्था का समर्थन करके और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना करके दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से श्वेत क्रांति को बढ़ावा दिया।
- खाद्यान्न की कमी पर प्रतिक्रिया: दीर्घकालिक खाद्यान्न की कमी के मद्देनजर, उन्होंने नागरिकों को जरूरतमंदों तक खाद्यान्न वितरण सुनिश्चित करने के लिये स्वेच्छा से एक समय का भोजन छोड़ने के लिये प्रोत्साहित किया।
- प्रसिद्ध नारा: शास्त्री जी ने “जय जवान, जय किसान” का चिरस्थायी नारा गढ़ा , जो आज भी भारतीयों को प्रेरित करता है।
- भारत-पाक युद्ध में योगदान: वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनकी भूमिका और ताशकंद घोषणा को सुगम बनाने में उनकी भूमिका ने आधुनिक भारतीय इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण क्षण चिह्नित किया।
- शांति के पक्षधर: यद्यपि भारत ने युद्ध जीत लिया, शास्त्री जी ने दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण समाधान का लक्ष्य रखा तथा इस बात पर बल दिया कि उनका ध्यान संघर्ष के बजाय अपने नागरिकों की बुनियादी जरूरतों पर होना चाहिये।