03 सितम्बर, 2024
करेंट अफेयर्स
03-Sep-2024
करेंट अफेयर्स
शंभू बॉर्डर
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने शंभू बॉर्डर पर किसानों से बातचीत के लिये तटस्थ पैनल का गठन किया।
शंभू बॉर्डर
शंभू भारत के पंजाब राज्य के पटियाला ज़िले में हरियाणा की सीमा के पास स्थित एक गाँव है।
तटस्थ उच्चाधिकार समिति (Neutral High-Powered Committee)
- उद्देश्य: शंभू सीमा पर आंदोलनकारी किसानों तक पहुँचना तथा उन पर दबाव डालना कि वे राष्ट्रीय राजमार्ग से अपने ट्रैक्टर/ट्रॉलियाँ, टेंट और अन्य सामान आदि तुरंत हटा लें, ताकि दोनों राज्यों के नागरिक तथा पुलिस प्रशासन राष्ट्रीय राजमार्ग को खोलने में सक्षम हो सकें।
- पीठ की संरचना: न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ
- समिति के सदस्य
- अध्यक्षता: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) नवाब सिंह, शंभू सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से बात करने के लिये।
- अन्य सदस्य
- सेवानिवृत्त IPS अधिकारी- बीएस संधू
- डॉ देविंदर शर्मा
- प्रोफेसर रंजीत सिंह घुम्मन
- सुखपाल सिंह, कृषि अर्थशास्त्री, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना
- विशेष आमंत्रित: बलदेव राज कंबोज, कुलपति, CCS, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय।
सर्वोच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने बुलडोज़र न्याय पर सवाल उठाया है क्योंकि यह उचित प्रक्रिया के लिये ‘अखिल भारतीय’ मानदंड निर्धारित करेगा।
संविधान में नियत प्रक्रिया
- यह कानून के समक्ष व्यवहार में तर्कसंगतता और निष्पक्षता का समर्थन करता है।
- कानून की प्रक्रिया में शामिल कोई भी असमानता अमान्य मानी जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय
- यह भारत के संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायिक न्यायालय और अंतिम अपील न्यायालय है, सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय, न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ।
- भारत एक संघीय राज्य है तथा इसमें तीन स्तरीय संरचना वाली एकल और एकीकृत न्यायिक प्रणाली है, यानी सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालय।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय का संक्षिप्त इतिहास
- वर्ष 1773 के विनियमन अधिनियम के लागू होने से कलकत्ता में न्यायिक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई, जो पूर्ण शक्ति और अधिकार के साथ अभिलेख न्यायालय के रूप में स्थापित हुआ।
- मद्रास और बॉम्बे में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना क्रमशः वर्ष 1800 तथा 1823 में किंग जॉर्ज - III द्वारा की गई थी।
- भारत को वर्ष 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान अस्तित्व में आया।
- भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अस्तित्व में आया और इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून भारत के क्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी है।
- इसके पास न्यायिक समीक्षा की शक्ति है- संविधान के प्रावधानों और योजना के विपरीत विधायी तथा कार्यकारी कार्रवाई को रद्द करने की।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान में भाग V (संघ) और अध्याय IV (संघ न्यायपालिका) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान है।
- संविधान के भाग V में अनुच्छेद 124 से 147 सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों और प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(1) के तहत कहा गया है कि भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें एक भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) होंगे और जब तक संसद कानून द्वारा बड़ी संख्या निर्धारित नहीं करती है, तब तक सात से अधिक अन्य न्यायाधीश नहीं होंगे।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को मोटे तौर पर मूल क्षेत्राधिकार, अपीलीय क्षेत्राधिकार और सलाहकार क्षेत्राधिकार में वर्गीकृत किया जा सकता है।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय की अन्य अनेक शक्तियाँ भी हैं।
सर्वोच्च न्यायालय की संरचना
- संख्या: राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त मुख्य न्यायाधीश सहित 34 न्यायाधीश
- योग्यता: भारतीय नागरिक; 5 वर्ष के लिये उच्च न्यायालय के न्यायाधीश/10 वर्ष के लिये अधिवक्ता/प्रतिष्ठित न्यायविद
- कार्यकाल: 65 वर्ष की आयु तक (जब तक कि राष्ट्रपति द्वारा त्याग-पत्र/महाभियोग नहीं लगाया जाता)
- वेतन: संसद द्वारा निर्धारित
- महाभियोग: संसद के विशेष बहुमत से अनुमोदन पर राष्ट्रपति द्वारा
स्वतंत्रता का अधिकार
चर्चा में क्यों?
- दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में करीब 23 महीने की कैद के बाद सर्वोच्च न्यायलय ने आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व संचार प्रभारी विजय नायर को ज़मानत दे दी।
- न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि स्वतंत्रता “sacrosanct अर्थात् अबाध्य” है और कड़े कानूनों से जुड़े मामलों में भी इसका सम्मान किया जाना चाहिये।
अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण
- किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा।
- यह मौलिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति, नागरिक और विदेशियों को समान रूप से उपलब्ध है।
- अनुच्छेद 21 दो अधिकार प्रदान करता है:
- जीवन का अधिकार
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
अनुच्छेद 21 में वर्णित अधिकारों की सूची:
- निजता का अधिकार
- विदेश जाने का अधिकार
- आश्रय का अधिकार
- एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार
- सामाजिक न्याय और आर्थिक सशक्तीकरण का अधिकार
- हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार
- हिरासत में मृत्यु के विरुद्ध अधिकार
- विलंबित फाँसी के विरुद्ध अधिकार
- डॉक्टरों की सहायता
- सार्वजनिक रूप से फाँसी दिये जाने के विरुद्ध अधिकार
- सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा
- प्रदूषण मुक्त जल और वायु का अधिकार
- प्रत्येक बच्चे का पूर्ण विकास का अधिकार
- स्वास्थ्य और चिकित्सा सहायता का अधिकार
- शिक्षा का अधिकार
- अंडर-ट्रायल्स की सुरक्षा
पैरालंपिक
चर्चा में क्यों?
पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी नितेश कुमार ने पेरिस पैरालिंपिक 2024 में पुरुष एकल SL3 में स्वर्ण पदक जीता।
महत्त्वपूर्ण संक्षिप्तीकरण (Abbreviations)
"SL" का अर्थ है "Standing / Lower (खड़े होकर / नीचे की ओर)": SL3: निचले अंगों में कमज़ोरी और संतुलन की समस्या के साथ खड़े होकर प्रतिस्पर्द्धा करने वाले एथलीट, चलते या दौड़ते हैं।
भारत का सेमीकंडक्टर मिशन
चर्चा में क्यों?
कैबिनेट ने भारत सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) के तहत गुजरात के साणंद में एक और सेमीकंडक्टर इकाई को मंज़ूरी दी।
भारत के सेमीकंडक्टर मिशन के बारे में
- लॉन्च: वर्ष 2021
- मंत्रालय: इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय (MeitY)
- यह देश में सतत् सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले इकोसिस्टम के विकास के लिये व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है।
- उद्देश्य: सेमीकंडक्टर, डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग और डिज़ाइन इकोसिस्टम में निवेश करने वाली कंपनियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
भारत का विधि आयोग
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने 1 सितंबर, 2024 से 31 अगस्त, 2027 तक तीन वर्ष की अवधि के लिये 23वें विधि आयोग का गठन किया है।
भारत के विधि आयोग के बारे में
- यह न तो संवैधानिक निकाय है और न ही वैधानिक निकाय।
- यह भारत सरकार के आदेश द्वारा स्थापित एक कार्यकारी निकाय है।
- यह एक निश्चित कार्यकाल (तीन वर्ष) के लिये स्थापित किया गया है और विधि एवं न्याय मंत्रालय के लिये एक सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।
भारत में विधि आयोग का इतिहास
- प्रथम विधि आयोग
- इसकी स्थापना वर्ष 1834 में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में चार्टर एक्ट 1833 के तहत की गई थी।
- इसने दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता के संहिताकरण की सिफारिश की।
- इसके बाद क्रमशः 1853, 1861 और 1879 में दूसरे, तीसरे एवं चौथे विधि आयोग का गठन किया गया।
- भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, भारतीय अनुबंध अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम आदि पहले चार विधि आयोगों की देन हैं।
विधि आयोग के कार्य
- उन कानूनों की पहचान करना जो अप्रचलित हो गए हैं और जिन्हें निरस्त किया जा सकता है।
- गरीबों को प्रभावित करने वाले कानूनों की ऑडिट करना तथा किसी भी कानून पर अपने विचार देना।
- ऐसे विधानों का सुझाव देना जो निदेशक सिद्धांतों को लागू करने के लिये आवश्यक हो सकते हैं।
- संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना।
- खाद्य सुरक्षा, बेरोज़गारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जाँच करना।
- संवेदनशील लोगों के हितों की सुरक्षा के लिये उपायों की सिफारिश करना।
सामान्य ज्ञान
भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (SEBI)
यह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
SEBI की शक्तियाँ और कार्य
- यह एक अर्द्ध-विधायी और अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जो विनियमों का मसौदा तैयार कर सकता है, जाँच कर सकता है, फैसले पारित कर सकता है तथा दंड लगा सकता है।
- यह तीन श्रेणियों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये कार्य करता है–
- जारीकर्त्ता: एक ऐसा बाज़ार उपलब्ध कराकर जिसमें जारीकर्त्ता अपने वित्त को बढ़ा सकें।
- निवेशक: सटीक जानकारी की सुरक्षा और आपूर्ति सुनिश्चित करके।
- मध्यस्थ: मध्यस्थों के लिये एक प्रतिस्पर्द्धी पेशेवर बाज़ार को सक्षम करके।
- प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम, 2014 के माध्यम से, SEBI अब 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक मूल्य की किसी भी मनी पूलिंग योजना को विनियमित करने और गैर-अनुपालन के मामलों में संपत्ति ज़ब्त करने में सक्षम है।
- SEBI अध्यक्ष के पास "तलाशी और ज़ब्ती अभियान" का आदेश देने का अधिकार है।
- SEBI बोर्ड किसी भी व्यक्ति या संस्था से किसी भी प्रतिभूति लेन-देन के संबंध में जानकारी, जैसे- टेलीफोन कॉल डेटा रिकॉर्ड, मांग सकता है, जिसकी जाँच उसके द्वारा की जा रही है।
- SEBI उद्यम पूंजी कोष और म्यूचुअल फंड सहित सामूहिक निवेश योजनाओं के कामकाज के पंजीकरण एवं विनियमन का कार्य करता है।
- यह स्व-नियामक संगठनों को बढ़ावा देने और विनियमित करने तथा प्रतिभूति बाज़ारों से संबंधित धोखाधड़ी एवं अनुचित व्यापार प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के लिये भी कार्य करता है।
कैसे SEBI अस्तित्व में आया?
- SEBI के अस्तित्व में आने से पहले, पूंजीगत मुद्दों का नियंत्रक नियामक प्राधिकरण था; इसे पूंजीगत मुद्दों (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 से अधिकार प्राप्त था।
- अप्रैल, 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत भारत में पूंजी बाज़ार के नियामक के रूप में SEBI का गठन किया गया था।
- प्रारंभ में SEBI एक गैर-सांविधिक निकाय था जिसके पास कोई वैधानिक शक्ति नहीं थी।
- SEBI अधिनियम 1992 द्वारा इसे स्वायत्त बना दिया गया तथा वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
- SEBI का मुख्यालय मुंबई में स्थित है। SEBI के क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं।
धन शोधन
- यह अवैध रूप से प्राप्त आय की पहचान को छिपाना या प्रच्छन्न करना है, ताकि ऐसा लगे कि वे वैध स्रोतों से उत्पन्न हुए हैं।
- यह अक्सर अन्य, बहुत अधिक गंभीर अपराधों जैसे कि नशीली दवाओं की तस्करी, डकैती या जबरन वसूली का एक घटक होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के अनुसार, वैश्विक मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) का अनुमान विश्व सकल घरेलू उत्पाद के 2 से 5% के बीच है।
धन शोधन कैसे कार्य करता है?
- इसमें तीन चरण शामिल हैं: प्लेसमेंट, लेयरिंग और इंटीग्रेशन (एकीकरण):
- प्लेसमेंट "अवैध धन" को वैध वित्तीय प्रणाली में शामिल करता है।
- लेयरिंग लेन-देन और बहीखाता पद्धति की एक शृंखला के माध्यम से धन के स्रोत को गुप्त रखता है।
- इंटीग्रेशन के मामले में अब लॉन्डरिंग किया गया धन वैध खाते से आपराधिक गतिविधियों के लिये इस्तेमाल करने के लिये निकाल लिया जाता है।
धन शोधन कई रूप होते है, उनमें से कुछ हैं:
- स्ट्रक्चरिंग को स्मर्फिंग भी कहा जाता है
- बल्क कैश स्मगलिंग
- कैश इंटेंसिव बिज़नेस
- ट्रेड बेस्ड लॉन्ड्रिंग
- शेल कंपनियाँ
- राउंड ट्रिपिंग
- जुआ (गैम्बलिंग)
- कला धन
- कर माफी
- लेन-देन शोधन
धन शोधन को रोकने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश (1944 का XXXVIII): यह केवल कुछ अपराधों जैसे- भ्रष्टाचार, विश्वासघात और धोखाधड़ी से प्राप्त आय को शामिल करता है, भारतीय दंड संहिता के तहत सभी अपराधों को नहीं।
- तस्कर और विदेशी मुद्रा हेर-फेर कर्त्ता (संपत्ति ज़ब्ती) अधिनियम, 1976: इसमें तस्करों और विदेशी मुद्रा हेर-फेर कर्त्ताओं द्वारा अवैध रूप से अर्जित संपत्तियों के लिये दंड तथा उससे संबंधित एवं उसके आनुषंगिक मामलों को शामिल किया गया है।
- स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985: इसमें स्वापक औषधियों के अवैध व्यापार में प्रयुक्त या उससे प्राप्त संपत्ति के लिये दंड का प्रावधान है।
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA)
- यह धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) से निपटने के लिये भारत द्वारा स्थापित कानूनी ढाँचे का मूल है।
- इस अधिनियम के प्रावधान सभी वित्तीय संस्थानों, बैंकों (RBI सहित), म्यूचुअल फंड, बीमा कंपनियों और उनके वित्तीय मध्यस्थों पर लागू होते हैं।
- PMLA (संशोधन) अधिनियम, 2012 'रिपोर्टिंग इकाई' की अवधारणा को जोड़ता है जिसमें बैंकिंग कंपनी, वित्तीय संस्थान, मध्यस्थ आदि शामिल होंगे।
- PMLA, वर्ष 2002 में 5 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना लगाया जाता था, लेकिन संशोधन अधिनियम ने इस ऊपरी सीमा को हटा दिया है।
- इसमें ऐसी गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति की संपत्ति की अनंतिम कुर्की और ज़ब्ती का प्रावधान किया गया है।
- फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट-इंडिया: यह एक स्वतंत्र निकाय है जो वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली आर्थिक खुफिया परिषद (Economic Intelligence Council- EIC) को सीधे रिपोर्ट करता है।
- प्रवर्तन निदेशालय (ED):
- यह एक कानून प्रवर्तन एजेंसी और आर्थिक खुफिया एजेंसी है जो भारत में आर्थिक कानूनों को लागू करने तथा आर्थिक अपराध से लड़ने के लिये ज़िम्मेदार है।
- ED का एक मुख्य कार्य धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के प्रावधानों के तहत धन शोधन के अपराधों की जाँच करना है।
- यदि यह पाया जाता है कि संपत्ति PMLA के तहत अनुसूचित अपराध से प्राप्त अपराध है, तो वह संपत्ति ज़ब्त करने जैसी कार्रवाई कर सकता है तथा धन शोधन के अपराध में शामिल व्यक्तियों पर मुकदमा चला सकता है।
- भारत FATF का पूर्णकालिक सदस्य है और उसके दिशा-निर्देशों का पालन करता है।
धन शोधन से निपटने के लिये कुछ वैश्विक प्रयास इस प्रकार हैं:
- वियना कन्वेंशन: यह हस्ताक्षरकर्त्ता राज्यों के लिये मादक पदार्थों की तस्करी से धन शोधन को अपराध घोषित करने का दायित्व बनाता है।
- 1990 यूरोप परिषद कन्वेंशन: यह धन शोधन पर एक आम आपराधिक नीति स्थापित करता है।
- G-10 की बेसल समिति का सिद्धांत वक्तव्य: इसने एक "statement of principles अर्थात् सिद्धांत वक्तव्य" जारी किया जिसका अनुपालन सदस्य देशों के अंतर्राष्ट्रीय बैंकों से अपेक्षित है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन ( The International Organization of Securities Commissions- IOSCO): यह अपने सदस्यों को प्रतिभूति और वायदा बाज़ारों में धन शोधन से निपटने हेतु आवश्यक कदम उठाने के लिये प्रोत्साहित करता है।
- IMF: इसने अपने 189 सदस्य देशों पर आतंकवादी वित्तपोषण को रोकने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अनुपालन करने का दबाव डाला है।
आज के समाचार में प्रमुख हस्तियाँ
नाम |
पदनाम |
छवि |
आर.एन. रवि |
तमिलनाडु के राज्यपाल |
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डॉ. वी. अनंथा नागेश्वरन |
भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार |
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अश्विनी वैष्णव |
भारत के केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री |
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पिनाराई विजयन |
केरल के मुख्यमंत्री |
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बेंजामिन नेतन्याहू |
इज़रायल के प्रधानमंत्री |