जिंदगी भर साइकिल से दुनिया नापने वाले इयान हाईबेल की जिंदगी क्या सिखाती है

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  08-Jan-2024 | संजय श्रीवास्तव




इयान हाइबेल को हममें से शायद ही कोई जानता होगा. कम ही लोग उनके बारे में जानते होंगे. वह नये जमाने के वर्ल्ड ट्रेवलर थे, वो जहाज से यात्रा करने वाले यात्री नहीं बल्कि साइकिल से दुनिया को नापने वाले शख्स. उन्होंने जिंदगीभर में जितनी साइकिल चलाई, उसमें 10 बार भूमध्य रेखा को नापा जा सकता है. भूमध्य रेखा की लंबाई 40075 किलोमीटर मानी जाती है, तो आप समझ गए होंगे कि इस शख्स ने कितनी साइकल चलाई होगी. इतनी लंबाई तो बहुत से लोग अपने वाहन से भी जिंदगीभर में तय नहीं कर पाते होंगे. उनकी 74 साल की उम्र में तब मौत हो गई जब वह साइकिल से ग्रीस के टूर पर थे. उसके एक एक्सप्रेस वे पर साइकल पर अपनी धुन में चले जा रहे थे.

इंग्लैंड के इस साइक्लिस्ट का सफर वर्ष 1963 में शुरू हुआ. बंधी-बंधाई और एक ही ढर्रे पर चलने वाली जिंदगी से वह उकता चुके थे. रोज वही घर से ऑफिस की दूरी नापना. फिर रात तक वापस उसी घर में लौट आना.

बेचैनी जब खासी बढ़ गई तो उन्होंने ऑफिस से दो साल की छुट्टी ली. निकल पड़े साइकल से दुनिया को नापने. पूरी दुनिया नापी भी. वो सुदूर अफ्रीकी के खतरनाक जानवरों वाले घने जंगलों से गुजरे, तो रेगिस्तान की रेत पर धंसती हुई साइकिल को किनारे तक पहुंचाया. कई बार ऐसा लगा कि वह बचकर जिंदा नहीं आएंगे लेकिन हर बार वह लंबे लंबे समय बाद घर लौटकर चकित कर देते थे.

वह नदी, नाले, पहाड़, दलदल से होकर निकले तो सूनसान इलाकों में डाकू और लुटेरों का भी सामना किया. खूंखार कबीलों से भी निकली उनकी साइकिल. जेब में फूटी कौड़ी भी कई बार नहीं होती थी. लेकिन वह कभी कल की चिंता भी नहीं करते थे. कभी भूखे रहे, कभी रूखा-सूखा मिला तो कभी अनजान अतिथियों ने व्यंजनों के ढेर लगा दिये.

दुनियाभर के साइक्लिस्टों के बीच उनका नाम एक आइकन की तरह लिया जाता है. लंबी साइकल यात्राएं करने वाले साइक्लिस्ट से कहा जाता है कि वो इयान हाइबेल के बारे में जरूर पढ़ें. एक तरह से वो साइकल की दुनिया के लीजेंड हैं. उन्होंने इन साइकल यात्राओं से दुनिया को बहुत कुछ दिया. इयान हाइबेल आमतौर पर जब साइकल यात्राओं पर निकलते थे तो उनकी जेब में पैसे नहीं होते थे. उन्हें कभी भूखा सोना पड़ता था तो कभी रुख-सूखा खाना पड़ता था लेकिन कभी व्यंजनों से भी उनका स्वागत होता था.

पहली बार वह दस साल बाद घर लौटे. फिर निकल पड़े दुनिया की सैर करने. एक दो बार नहीं दस से ज्यादा बार वह ऐसा कर चुके थे. चालीस सालों तक ऐसा ही करते रहे. हर साल उनकी साइकिल करीब छह हजार मील का सफर तय करती.

हमारी जुबान पर चढ़ा हुआ एक गाना है-पंछी बनूं, उड़ के चलूं मस्त गगन में…हाइबेल ऐसे ही पंछी थे. जो अपनी तरह से उड़ते हुए दुनिया का चप्पा-चप्पा नापते रहे लेकिन उनके उत्साह ने कभी कम होने का नाम नहीं लिया. बल्कि उनकी हर यात्रा उन्हें अगली यात्रा के लिए प्रेरित और उत्साहित करती थी.

हर यात्रा के साथ अगली यात्रा को लेकर उनका रोमांच उतना ही बढ़ता जाता था. ऐसा नहीं कि वो यात्राओं में मुश्किलों और कठिनाइयों का सामना नहीं करते थे- लेकिन इन सब बातों से उनका हौसला कभी नहीं डिगा. उन्होंने अपनी जान जंगली हाथियों और यहां तक कि शेर से भी बचाई. एक बार जंगल की ख़तरनाक चीटियों ने बुरी तरह काटा. डाकुओं ने उनपर गोली भी चलाई थी.

एक बार तो सफ़र के दौरान उत्तरी केन्या में रहने वाली तुकराना जनजाति के लोगों ने उनका पीछा किया. ब्राजील में कुछ लोगों ने उन पर पत्थर फ़ेंके. चीन में एक वाहन चालक ने उनके हाथ को कुचल दिया. लेकिन इतनी बड़ी बड़ी मुश्किलों के बाद भी वह कभी हिम्मत नहीं हारे. उनका जुनून भी इससे डिगा नहीं.

यकीन मानिये कि अगर सडक़ पर तेजी से भागती कार ने 23 अगस्त 2008 को उनके जीवन का ग्रीस में अंत नहीं किया होता, तो वो अब भी दुनिया का चक्कर लगा रहे होते. हालांकि तब उनकी उम्र 74 साल हो चुकी थी. हो सकता है कि उम्र उन्हें अगर ऐसा नहीं करने देती तो युनिवर्सिटी में पढ़ रहे होते.

इयान हाइबेल ने साइक्लिंग में कई ऐसे काम किए, जो उनसे पहले कोई नहीं कर सका था. उनका जन्म इंग्लैंड की सरे काउंटी के एपसम जिले में हुआ. पहले उन्होंने टेलीफोन विभाग में काम किया लेकिन उस नौकरी से ऊबने लगे. तब उन्हें लगा कि अब उन्हें वो करना है, जिसमें पूरा आनंद भी लें और दुनिया को भी देखें. उन्होंने जितनी यात्राएं कीं, उस पर किताबें लिखीं. अलग अलग कल्चर पर बात की. अमेरिका से लेकर ग्रेट ब्रिटेन तक तमाम यूनिवर्सिटीज में अपनी यात्राओं और इससे जुड़े तमाम पक्षों पर लेक्चर दिए.

अपनी साइकिल की कुछ चीजें उन्होंने खुद डिजाइन कीं. जैसे साइकिल के अगले हिस्से को किन उपकरणों से लैस किया जा सकता है और बगल में कैसे बैगेज रैक बनाकर सामान रखा जा सकता है. दरअसल इसकी शुरुआत इस तरह हुई कि जब उनके परिवार को सप्ताहांत पर समुद्र के किनारे जाना होता था तो सारा परिवार एक साथ ट्रेन का खर्च बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं रहता था, तब वो और उनके पिता साइकिल से वहां जाया करते थे. पार्क की बैंच पर सोते थे.

हालांकि इयान जब साइकल से दुनिया नाप रहे होते थे तो कभी ये नहीं देखते कि क्या ऐसा करते हुए वो कोई रिकॉर्ड बना रहे हैं या कितना समय दे रहे हैं. वो बस इसे अपने आनंद के लिए कर रहे थे. दुनिया और प्रकृति को जानने के लिए कर रहे थे. उन्होंने ऐसा साधन चुना, जो उन्हें किसी पर आश्रित नहीं कराए. कोई ईंधन की खपत इसमें नहीं हो और ये साधन हो, जो तन-मन-क्षमता से जुड़ा रहे. और वैसे अगर आप रिकॉर्ड की बात करेंगे तो उन्होंने साइकल से जितनी दूरी नापी, वो वाकई हैरान करने वाली है. वो इंसानी क्षमताओं के एक नए आयाम से परिचित भी कराती हैं. दुनिया में शायद ही कोई साइकलिस्ट ऐसा कर पाए, जैसा उन्होंने कर दिखाया.

हाइबेल के बारे में जानने के बाद बेशक ये कहा जा सकता है कि दुनिया में कोई भी काम बिना उत्साह या आनंद के नहीं हो सकता. हाइबेल ने तो जो कुछ किया, उसके लिए तो जबरदस्त जीवट और दृढ़ इच्छाशक्ति की भी जरूरत होती है. अगर आप कोई काम रोज करते हैं, बिना किसी उत्साह के, महज ड्यूटी समझकर ऐसे काम का क्या मतलब. ये तो ना केवल ऊब पैदा करेगा बल्कि आपको मशीन में तब्दील कर देगा. आखिर मशीन भी तो वही करती है-अपना काम लगातार.

चलिए अब कुछ साइकल के बारे में भी जान लेते हैं. 1839 में स्कॉटलैंड के एक लोहार किर्कपैट्रिक मैकमिलन ने आधुनिक साइकिल का आविष्कार जरूर किया लेकिन ये पहले से ही अस्तित्व में थी. मैकमिलन ने इसमें पहिये को पैरों से चला सकने लायक व्यवस्था की. ऐसा माना जाता है कि 1817 में जर्मनी के बैरन फ़ॉन ड्रेविस ने साइकिल की रूपरेखा तैयार की. यह लकड़ी की बनी सायकिल थी तथा इसका नाम ड्रेसियेन रखा गया था. तब की उस साइकिल की गति 15 किलो मीटर प्रति घंटा थी.

70 के दशक तक सड़कों पर साइकिलें ज्यादा होती थीं और वाहन कम लेकिन उसके बाद हालात बदलने लगे. अब सड़कों पर साइकिलें नाममात्र की दिखती हैं और वाहन बेतहाशा. साइकिलें अब भी चलती हैं. उनकी बिक्री भी बढ़ रही है लेकिन लोग अब एक्सरसाइज के दृष्टिकोण से इसे ज्यादा खरीदने लगे हैं. इनकी तकनीक भी बदली है.

दुनिया में नीदरलैंड को सबसे ज़्यादा साइकिल-अनुकूल देशों में एक माना जाता है. यहां, सरकार कई सालों से अपने नागरिकों को साइकिल चलाने के लिए प्रोत्साहित करती रही है. नीदरलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में साइकिल चलाने का ऐसा कल्चर है कि यहां के प्रधानमंत्री मार्क रुट भी साइकिल से ही संसद और दफ़्तर जाते हैं. नीदरलैंड के सभी शहरों में साइकिल चलाने का यही कल्चर है.

सीएनबीसी के मुताबिक, 2022 के वैश्विक साइकिल सूचकांक में नीदरलैंड के शहर यूट्रेक्ट को दुनिया में सबसे ज़्यादा साइकिल-अनुकूल शहर बताया गया. सूचकांक के मुताबिक, शहर की लगभग 51 प्रतिशत आबादी साइकिल चलाती है. अमेरिका में पोर्टलैंड, ऑरेगॉन को साइकिल चलाने का राजा माना जाता है. यहां प्रति व्यक्ति सबसे ज़्यादा साइकिल चालक और कॉफ़ी की दुकानें हैं. दुनिया में अनुमानित एक अरब साइकिलें हैं. 2020 में, दुनिया भर में लगभग 44.5 मिलियन लोगों ने सड़क साइकिलिंग में हिस्सा लिया.

वैसे हम सभी ने हम उम्र के किसी पड़ाव पर साइकलें खरीदी होंगी लेकिन थोड़ी बहुत साइकल चलाने पर ही हमारे पैरों में दर्द होने लगता है. दम फूलने लगता है. हमारे लिए 05-07 किलोमीटर की साइक्लिंग ही बहुत हुई हो जाती है. वैसे ये कहा जाता है कि साइक्लिंग दुनिया की सबसे बेहतरीन एक्सरसाइज है, जो पैरों से लेकर कंधों, फेफड़ों सबकी परफेक्ट वर्जिश करा देती है और दिमाग को तरोताजा भी कर देती है. साइकल ये बताती है कि जीवन की बड़ी समस्याओं के हल बहुत आसान होते हैं. ये अलग ही फील कराती है.

हालांकि उनके सारे परिचितों और रिश्तेदारों को शिकायत होती थी कि हाइबेल अपने साइकल के जुनून में ये भी भूल जाते थे कि परिवार में उनक कजन और पारिवारिक समारोह भी होते हैं. कई बार प्रिय कजन की शादी पर भी वह कहीं दूर साइकल से नई नई जगहों पर देख रहे होते थे और साइकल हवाओं से बात कर रही होती थी. हालांकि ये कहना चाहिए हाइबेल की प्रेरणा से दुनिया में हजारों लोगों ने साइकल को अपनाया और इससे लंबी यात्राएं करनी शुरू की. कहा जाता है कि जब साइकल से नेचर के बीच सड़कों या कच्चे रास्तों पर चल रहे होते हैं तो धरती को सबसे ज्यादा महसूस कर रहे होते हैं.

हाइबेल ये भी सिखाते हैं दुनिया की हर चीज और हर बात महत्वपूर्ण है और उसके तब मायने ही बदल जाते हैं, जब आप उसको डूबकर करने लगते हैं और उसके सहारे ऐसे रास्ते गढ़ने लगते हैं, जो दुनिया के लिए खास हो जाते हैं. वो ये भी सिखाते हैं कि अगर कुछ करना है तो निडर होकर करो, बुद्धि से करो, साहस से करो और अपना पूरा समर्पण और सामर्थ्य उसमें झोंक दो. जब आप किसी काम में डूब जाते हैं और उसके जरिए जिंदगी और दुनिया के मायने खुद सीखते हैं और दूसरों को भी सिखाते हैं, तब वो काम असाधारण ही नहीं हो जाता बल्कि आपको भीड़ से अलग खड़ा कर देता है. साइकल यात्री तो बहुत हुए लेकिन इयान हाइबेल जो कर गए, वो दूसरे क्यों नहीं कर पाए, क्योंकि उन्होंने उस काम को अपने तरीके से किया. लकीर के फकीर नहीं बने. दुनिया की परवाह भी नहीं की कि लोग उनके बारे में क्या कहते हैं.

आप वो करिये, जिसमें आप उत्साह महसूस करते हैं, फिर देखिए आपके उसी काम की उत्पादकता क्या होती है. ऐसा करते हुए उस इयान हाइबेल के बारे में भी सोचिए, जो सत्तर साल की उम्र में भी अपने तरीके से दुनिया के अन्वेषण में लगे रहे, ढेरों किताबें लिखीं और दुनिया को बहुत कुछ ऐसा दे गए, जो इससे पहले सोचा तक नहीं गया था. कहा जाता है कि दुनिया के बहुत से मुश्किल इलाकों को जानने के लिए उनकी किताब पढ़नी चाहिए, जो भूगोल से लेकर कल्चर तक बहुत कुछ अपने अंदाज में बता जाती है.



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