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भारतीय कला का समृद्ध इतिहास

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  25-May-2023 | अजय प्रताप तिवारी



भारतीय परंपरा सबसे पुरातन परंपराओं में एक है, यहाँ दुनिया के सांस्कृतिक प्रतीकों का उद्गम स्थल भी हैं। भारत ने अपनी मिश्रित संस्कृति, प्राचीन सभ्यता और समृद्ध कला के माध्यम से दुनिया को समय - समय पर राह दिखाने का काम किया है। भारतीय कला भारतवर्ष के विचार, धर्म, तत्वज्ञान और संस्कृति का दर्पण है। कला संस्कृति की वाहक होती है। कला संस्कृति की सुन्दरतम् अनुभूति है ,जो संस्कृति जितनी उदार होती है, उसकी कला में उतना ही सूक्ष्म सौन्दर्य सहज साकार होता है। भारत में सभी प्रकार की कला और कलाकारों को समय - समय पर संरक्षण मिलता रहा है। उदारता की दृष्टि से भारतीय कला और संस्कृति विश्व में श्रेष्ठ है। कला अपने आप में एक दर्शन है। कला मनुष्य के बाह्य और आंतरिक संसार के प्रभाव की प्रतिक्रिया है , कला के दृश्य का प्रस्फुटन हृदय में होता है, इसलिये कला आत्मा की अभिव्यक्ति भी है। ज्योतिष जोशी लिखते हैं कि - " कला को कल्पना और कलाकार की मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति बनाकर स्वच्छन्दतावाद ने जहाँ पारम्परिक परिपाटियों को ध्वस्त किया, वहीं यथार्थवाद ने कला को जीवन के यथार्थ से जोड़ा और उसे महज मनोरंजन मानने से इनकार किया। भारतीय दर्शन में कला को सत्यं शिवम् सुन्दरम् का रूप में माना गया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर कहते हैं कि " जो सत्य है, जो सुन्दर है, जो कल्याणकारी है वही कला है।

भारतीय कला ,संस्कृति का विश्व विरासत में एक विशेष स्थान है। यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में भारत का छठा स्थान है। राष्ट्र के विकास में कला की अहम भूमिका होती है। यह साझा दृष्टिकोण, मूल्य, प्रथा एवं एक निश्चित लक्ष्य को दिखाता है। साथ ही सामाजिक, आर्थिक, एवं अन्य गतिविधियों में संस्कृति एवं रचनात्मकता का समावेश होता है। कला को मानव जीवन से पृथक करके नहीं देखा जाना चाहिए। भारत में कला के विविध रंग रूप हैं । भारत में गीत-संगीत, नृत्य, नाटक-कला, लोक परंपराओं, कला-प्रदर्शन, धार्मिक-संस्कारों एवं अनुष्ठानों, चित्रकारी एवं लेखन के क्षेत्रों में एक बहुत बड़ा संग्रह मौजूद है जो मानवता की 'अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' के रूप में जाना जाता है। कला मानवनिर्मित है, और मानव की निर्मिति को मानव के सम्पूर्ण जीवन से कैसे पृथक किया जा सकता है। कहते हैं कि "वृक्ष की जड़, तना, शाखा, पत्ता, फूल और फल के जन्म, विकास व कार्य का वृक्ष की कल्पना के बिना पृथक ज्ञान असंभव है। मानव की कला ,ज्ञान ,व्यवहार व कृति को मानव के जीवन से ही अर्थ प्राप्त होता है। " भारतीय कला का विकास कई चरणों में संपन्न हुआ है।

प्रारंभिक काल में भारतीय कला :

संसार में मनुष्य और कला का जन्म एक साथ होता है। कहते हैं मनुष्य का जीवन ही कला है । भारतीय कला का वर्णन शास्त्रों में मिलता है। ऋग्वेद के आठवें मण्डल में "यथा कलां यथा शफं" के रूप में प्रयुक्त हुआ है। भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में शिल्प और कला के रूपों को स्थापित किया है।भारत में सिन्धु घाटी सभ्यता से वास्तुकला ,चित्रकला और मूर्तिकला के साक्ष्य मिलते हैं। मानव निर्मित चित्रकारी भीमबेटका की गुफाओं में देखने को मिलती है, इस चित्रकारी के महत्व को देखते हुए इसे विश्व धरोहर स्थल में सूचीबद्ध किया गया है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांस्य निर्मित नर्तकी की मूर्ति आधुनिक उन्नत मॉडलिंग को दर्शाती है। प्राचीनकाल में भी मनुष्य जानवरों से प्रेम करते और उनके चित्र, मूर्ति बनाते थे.. टेराकोटा से कई मूर्तियाँ गायों, भालू, बंदरों और कुत्ते की मिली हैं जो इस बात की साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं।अशोक अपने स्तंभों पर बड़े जानवरों की मूर्तियाँ निर्मित कराता था। अशोक द्वारा बनवाया गया सिंह लाट आज़ादी के बाद भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया । कला का रूप सजीव होता है जिससे प्रत्येक काल खण्डों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को समझने और सीखने को मिलता है। आचार्य क्षेमराज के कहते हैं " अपने स्व किसी न किसी वस्तु के माध्यम से व्यक्त करना ही कला है और यह अभिव्यक्ति चित्र, नृत्य, मूर्ति, वाद्य आदि के माध्यम से होती है" कला मनोरंजन के साथ इतिहास को भी दर्शाती है।

मध्यकालीन भारतीय कला :

मध्यकाल में मूर्तिकला, वास्तुकला और चित्रकला के विकास में तेजी देखने को मिलती है । मध्यकाल की कला की कई विशेषताएँ हैं। भारतीय और विदेशी शैली का मिश्रण रूप मध्यकालीन कला की पहचान है। मध्यकाल में राजपूतों द्वारा निर्मित मूर्तिकला एक विशेष स्थान रखती है। भारतीय कला संस्कृति और समाज हमेशा समावेशी था, यही वजह है कि मंदिरों की तीन शैलियाँ हैं।

आधुनिक भारतीय कला :

मानव का क्रमिक विकास और कला दोनों एक साथ विकसित होते हैं। जिस तरह से मनुष्य जन्म से सामाजिक आर्थिक विकास करता है और अपने अन्तिम क्षण में अपनी गाढ़ी कमाई को अपने पीढ़ियों को सौंप देता है। ठीक इसी तरह से कला के आन्दोलन एक समय जन्म लेकर फूलते-फलते हैं और वृद्धि को प्राप्ति करते हैं, जल तरंगों की भाँति और अपना वेग दूसरे युग की प्रेरणाओं को सौंप कर विलीन हो जाते हैं। भारतीय कला किसी पहचान की मोहताज नहीं है। वैश्विक स्तर पर भारतीय कला ने अपना प्रतिमान स्थापित किया है। आज कला की दुनिया तेजी से वैश्वीकृत हो रही है ऐसे में भारतीय कला की माँग बढ़ रही है। आज अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में भारतीय कला की लोकप्रियता बढ़ी है। कला को बढ़ावा देने हेतु 2008 से प्रति वर्ष नई दिल्ली में कला मेला आयोजित किया जाता है। भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना नया संसद भवन है। नए संसद भवन में सनातन परंपरा व संस्कृति से जुड़ी हुई मूर्तियाँ व पेंटिंग्स देखने को मिलेंगी।

निष्कर्ष :

भारतीय कला एवं संस्कृति का महत्व वैश्विक स्तर पर बढ़ा है। राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाये रखने में कला, संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान होता है। कला प्रकृति के विषयों से परिपूर्ण है, जो श्रद्धा, प्रेम सद्भावना को दर्शाते हैं। किसी भी राष्ट्र की विविधता मूर्त और अमूर्त उसकी कला, संस्कृति में परिलक्षित होती है। भारत में कला आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ाया जा रहा है जिस से रोजगार सृजन में वृद्धि होगी साथ ही कला का विस्तार भी।

  अजय प्रताप तिवारी  

अजय प्रताप तिवारी, यूपी के गोंडा जिले के निवासी हैं। इन्होंने विज्ञान और इतिहास में पढ़ाई करने के बाद देश के प्रतिष्ठित अखबारों और विभिन्न पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेखन कार्य किया है। इसके साथ ही इन्हें साहित्य और दर्शन में रुचि है।



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